आजकल पटाखों का चलन काफी बढ़ गया है। दीपावली के अलावा, अन्य त्यौहारों एवं विवाह आदि कार्यक्रमों में भी इनका प्रयोग काफी मात्रा में किया जाता है।
लोग आतिशबाजी का प्रयोग हजारों वर्ष पहले से कर रहे हैं। प्राचीन इतिहास में पटाखों के उपयोग का काफी वर्णन किया गया है। भारत में पटाखे निर्माण करने का पहला कारखाना 1600 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने खोला था। पटाखों में ईंधन के साथ-साथ पोटेशियम क्लारेट के बाद 1865 में मैगनीशियम एवं 1864 ई. एल्यूमीनियम का आविष्कार कर लिया गया जो जलने पर तेज रोशनी देते हैं।
पटाखों में बारूद का प्रयोग किया जाता है। बारूद गंधक, लकड़ी, कोयले एवं शोरे का बारीक मिश्रण रहता है। रंगीन पटाखों में विभिन्न धातुओं के लवणों का उपयोग किया जाता है। दिखने में तो इनका रंगीन प्रकाश काफी सुंदर दिखाई देता है लेकिन इनसे निकली गैसें वातावरण को प्रदूषित करती हैं। पटाखों से निकलने वाली तीव्र आवाज ध्वनि प्रदूषण बढ़ाती है।
प्रतिवर्ष पटाखों से हजारों लोग मारे जाते हैं, कई बदशक्ल एवं कई विकलांग हो जाते हैं। भारत में सब से अधिक पटाखे तमिलनाडु के शिवकाशी में निर्मित होते हैं। इसके अलावा नासिक, चंद्रपुर, पटना, कानपुर, पूना, जलगांव, आगरा में भी पटाखों का निर्माण किया जाता है। विकसित देशों में निर्मित पटाखे कई तकनीकी प्रक्रियाओं से जांचे परखें एवं शोधित किये जाते हैं। इससे ये मनुष्य के लिए नुकसानदायक नहीं होते जबकि हमारे देश में ऐसा कुछ नहीं होता है। इसी कारण पटाखों के प्रयोग से दुर्घटनाएं काफी होती हैं। निम्न श्रेणी के मिश्रणों से बनाये गये पटाखे दुर्घटनाओं को आमंत्रित करते हैं।
विकसित देशों में भी पटाखों का काफी प्रयोग किया जाता है लेकिन वहां मरने वालों या घायलों का अनुपात हमारे देश की अपेक्षा काफी कम होता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार विकसित देशों में पटाखों से घायल होने वाले लोगों की संख्या सौ-डेढ़ सौ तक होती है लेकिन हमारे देश में यह संख्या लाखों में होती है। इसमें कईयों की आंखें जाती हैं, कईयों का चेहरा जल कर बदशक्ल हो जाता है।
अपने देश में कुछ समय पहले पटाखों में उपयोग किये गये निम्न स्तरीय मिश्रण के अध्ययन हेतु आई.आई.टी के बायोकेमिकल विभाग के चार सदस्यीय दल ने एक सर्वेक्षण किया था। इस दल ने बगैर लाइसेंस के पटाखे की दुकान लगाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की सरकार को सलाह दी थी। इस सलाह में तीन विस्फोटक पटाखों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।
इस सर्वेक्षण में यह बताया गया था कि हाथ से पकड़कर चलाये जाने वाले पटाखे सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं। पटाखों को हाथ से पकड़कर चलाये जाने पर ये कपड़ों में आग पकड़ लेते हैं और पूरे शरीर को जलाकर कुरूप बना देते हैं। कुछ तीव्र विस्फोटक बमों में हाई वोल्टेज पाउडर उपयोग में लिया जाता है जो केवल छूने या धक्का लगने पर फूट जाते हैं। इससे लोग घायल हो जाते हैं।
वैसे अब स्थिति काफी सुधर रही है। आजकल कुछ वर्षों से दूरदर्शन, रेडियो आदि पर दीपावली से पूर्व पटाखों के प्रयोग में सावधानी रखने की सूचनाएं प्रसारित की जाती हैं। विभिन्न प्रकार के छोटे विज्ञापनों के द्वारा जनता को आगाह किया जाता है कि अगर वे पूर्ण सजगता से पटाखों का प्रयोग नहीं करेंगे तो विज्ञापन के इस पात्रा की तरह नेत्राहीन हो सकते हैं। इन से भी दुर्घटनाओं को रोकने में काफी मदद मिली है।
लेकिन इसके बावजूद भी दुर्घटनाएं कम नहीं हुई हैं। इसका प्रमुख कारण है कि भारत में इससे संबंधित कानूनों का पालन न होना। पटाखे बिक्री अथवा निर्माण का लाइसेंस तभी जारी किया जाता है जबकि संबंधित अधिकारी इस बात की पुष्टि कर लें कि उस व्यक्ति की दुकान या फैक्ट्री आबादी से दूर है लेकिन कुछ घूसखोर अधिकारी इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं और उसकी अनुमति प्रदान कर देते हैं। यही गैर कानूनी कार्य दुर्घटना के लिए रास्ता खोल देते हैं।
उपरोक्त कारणों एवं परिस्थितियों से पटाखों का प्रयोग प्राणघातक सिद्ध होता जा रहा है। हमें चाहिए कि हम पटाखों का प्रयोग सावधानी पूर्वक करें एवं निम्नश्रेणी के पटाखों के प्रयोग से बचें। प्रशासन की भी जिम्मेदारी है कि पटाखों की दुकान या फैक्ट्री आबादी से दूर हो। साथ ही स्तरहीन पटाखों के निर्माण पर भी प्रशासन को रोक लगानी चाहिए। तभी हम सुरक्षित रह सकेंगे।