प्रसन्न रहने के उपाय

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जब व्यक्ति प्रसन्न होता है तो वह नाचता है, गाता है, गुनगुनाता है, हंसता है, मुस्कुराता है, हाथ मिलाता है, चूमता है, दूसरों को स्पर्श करता है, दूसरों को आलिंगनबद्ध करता है तथा इसी प्रकार की अन्य चेष्टाएँ या क्रियाएँ करता है। प्रसन्नता की अवस्था में व्यक्ति अपने प्रियजनों के लिए उपहार खरीदता है अथवा किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति की सहायता के लिए आगे आता है।
जब व्यक्ति किसी भी वजह से प्रसन्न होता है तो वह अपनी प्रसन्नता दूसरों पर प्रकट करना चाहता है, दूसरों से बाँटना चाहता है तथा दूसरों के लिए कुछ करना चाहता है ताकि वे भी प्रसन्नता का अनुभव कर सकें और इस प्रकार अपनी प्रसन्नता को चिरस्थायी बनाना चाहता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रसन्नता की अवस्था में व्यक्ति की मनोदशा में सकारात्मक परिवर्तन आता है। अब यदि व्यक्ति सामान्य अवस्था में अथवा विषम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन क्रियाओं को दोहराता है जिन्हें वह प्रसन्नता की अवस्था में दोहराता है तो भी उसकी मनोदशा पर सकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा।
उपरोक्त किसी भी क्रिया के करने या दोहराने से व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से प्रसन्नता होगी ही और प्रसन्नता का अर्थ है दबाव से मुक्त तनावरहित तथा चिंतारहित मनोदशा। ऐसी अवस्था में शरीर में स्थित अंतःस्रावी ग्रंथियाँ उपयोगी हार्मोंस उत्सर्जित कर हमें रोगमुक्त तथा स्वस्थ बनाती हैं तथा स्वस्थ व्यक्ति की जीवनीशक्ति के स्तर में वृद्धि कर उसे निरंतर आरोग्य प्रदान करती हैं।
अतः उपरोक्त क्रियाओं को अपनी आदत में शामिल कर लें, इनकी कंडीशनिंग कर लें। जब भी अवसर मिले। नाचें-गाएँ, गुनगुनाएँ, हँसें और मुस्कुराएँ। इन क्रियाओं को दोहराने के लिए अवसर तलाश करें और यदि अवसर न भी मिले तो यूँ ही जब जी चाहे, एकांत एवं फुर्सत के क्षणों में इन क्रियाओं को दोहराएँ।
हँसना तो अपने आप में एक चिकित्सा पद्धति है। कई लोगों का अनुमान है कि बनावटी हँसी का कोई लाभ नहीं लेकिन ऐसा नहीं है। रोगों या व्याधियों का स्वरूप भी प्रायः मनोदैहिक होता है जो बनावटी जैसा ही होता है। हमारे मन ने मान लिया तो रोगी और नहीं माना तो निरोग। हंसने में भी यही नियम लागू होता है। हंसने का प्रयास कीजिए। यदि प्रयास करके भी हंसी आ जाती है तो वो भी वास्तविक हंसी से कम नहीं।
हंसने के दौरान जो सबसे महत्त्वपूर्ण घटना होती है वो यह कि उस समय आपका सारा चिंतन समाप्त हो जाता है। मन में किसी भी प्रकार के विचार नहीं आते। मन निर्मल हो जाता है। यही हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य का आधार है। हंसने या उपरोक्त अन्य क्रियाओं का मनःस्थिति पर सकारात्मक प्रभाव अवश्य पड़ेगा। ये क्रियाएं जितना सचेष्ट और सचेत होकर की जाएंगी, उतनी ही लाभदायक होंगी। उसी उत्साह से की जाएँ जिस उत्साह से प्रसन्नता की स्थिति में की गई हैं तो अवश्य प्रसन्नता प्रदान करेंगी।
प्रसन्नता की अवस्था में हम कोई न कोई रचनात्मक या सृजनात्मक कार्य करते हैं तो रचनात्मक कार्य से भी हमें स्वाभाविक रूप से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है। समाज सेवा या कोई हॉबी अपनाने से भी जीवन में प्रसन्नता के अवसर आते हैं। इन कार्यों से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है जिससे हमारी स्वाभाविक उपचारक शक्ति का विकास होता है जो हमारी प्रसन्नता का मूल है।
इसके अतिरिक्त अन्य मनोरंजक क्रियाएँ खेल-कूद तथा शिल्प कलाओं का अभ्यास भी व्यक्ति की प्रसन्नता के स्तर में वृद्धि करता है। कई बार जब हम प्रसन्न होते हैं तो फिल्म देखने या कहीं बाहर घूमने चले जाते हैं अथवा मनोरंजन का अन्य कोई विकल्प तलाशते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रसन्नता और मनोरंजन भी एक दूसरे के पर्याय हैं, पूरक हैं।
इसके विपरीत स्थिति देखिए। काम का बोझ है अतः मानसिक तनाव भी स्वाभाविक है। ऐसी दशा में प्रसन्नता कहाँ? लेकिन इस स्थिति में परिवर्तन ला दिया जाए तो प्रसन्नता दूर नहीं। कार्य करने के स्थान को छोड़कर कहीं अन्यत्रा चले जाएँ, कहीं घूमने, पिकनिक पर अथवा फिल्म देखने। आप लौटेंगे तो प्रसन्नचित्त और उत्साहित होकर और इस मानसिक दशा में शेष कार्य को शीघ्र समाप्त कर लेंगे। इस प्रकार का स्थान परिवर्तन मन में भाव परिवर्तन के लिए आवश्यक है, अतः थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद बाहर घूमने जाएं। साल में एक दो बार पूरे परिवार के साथ लंबी छुट्टियां लेकर भी बाहर घूमने जाएं।