नियुक्ति में विभागीय गलती को कर्मचारियों पर नहीं थोपा जा सकता: उच्च न्यायालय

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नैनीताल, चार सितंबर (भाषा) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि नियुक्ति प्रक्रिया में हुई विभागीय गलती का खामियाजा किसी कर्मचारी को नहीं भुगतने देना चाहिए और ऐसी गलती के आधार पर कर्मचारी को कष्ट नहीं दिया जा सकता।

अदालत ने यह निर्णय उत्तराखंड जल निगम में अधिशासी अभियंता (सिविल) सरिता गुप्ता के मामले में दिया, जिन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

उनकी बर्खास्तगी को ‘‘गैरकानूनी’’ करार देते हुए अदालत ने कहा कि यदि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई त्रुटि हुई है, तो उसका दोष किसी निर्दोष कर्मचारी पर नहीं डाला जा सकता।

न्यायालय ने आदेश दिया कि अभियंता को सभी लाभों सहित सेवा में बहाल किया जाए।

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की एकल पीठ ने की।

सरिता गुप्ता का चयन 2007 में सामान्य (महिला) श्रेणी के अंतर्गत आरक्षित पद के लिए हुआ था। पद के लिए जारी विज्ञापन में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि क्षैतिज आरक्षण केवल उत्तराखंड मूल की महिलाओं पर ही लागू होगा। सेवा में आने के बाद 2018 में उन्हें अधिशासी अभियंता के पद पर पदोन्नति भी दी गई थी।

हालांकि, 2021 में उन्हें एक नोटिस जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि चूंकि वह मूलरूप से उत्तराखंड की निवासी नहीं हैं, इसलिए उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए था।

विभागीय जांच में यह पाया गया कि गुप्ता ने न तो कोई झूठे दस्तावेज जमा किए थे और न ही किसी प्रकार की धोखाधड़ी की थी। इसके बावजूद, सरकारी निर्देशों के आधार पर जल निगम ने जून 2024 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया।

मामले की सुनवाई के बाद न्यायालय ने पाया कि उनकी नियुक्ति से लेकर पदोन्नति तक, विभाग को उनके स्थायी निवास की स्थिति की जानकारी थी, इसके बावजूद उन्हें नियुक्ति पत्र जारी किया गया, सेवा में स्थायी किया गया और पदोन्नति भी दी गई।

अदालत ने कहा कि लगभग दो दशक बाद उन्हें सेवा से हटाना ‘‘राज्य द्वारा अपनी ही गलती का फायदा उठाने’’ जैसा है, जो अन्यायपूर्ण और अनुचित है।

न्यायालय ने इस बर्खास्तगी को मनमाना और अन्यायपूर्ण बताया।