शरीर स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से मांसाहार मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है। उसके शरीर की बनावट शाकाहारी प्राणी की है। संत मुनि करूणा सागर का कहना है कि यदि अपनी मूल प्रकृति के विपरीत आहार लिया जायेगा, वह हानिकारक ही होगा क्योंकि पाचन यंत्रा में उत्पन्न होने वाले रस प्रकृति के विरूद्ध वस्तुओं को हजम करने को उपयुक्त नहीं होते।
यदि मांसाहारी जीव बाघ, शेर इत्यादि को शाकाहारी भोजन दे दिया जाये तो पहले तो वह उसे खायेंगे ही नहीं, यदि बलात् खिला भी दिया जाए तो उनके पाचन तंत्रा उसे स्वीकार नहीं करेंगे।
यही बात मनुष्य के मांसाहार के सम्बन्ध में कही जानी चाहिए। मांस खाने वाले प्राणियों की आंतों से मनुष्य और अन्य शाकाहारी प्राणियों की आंतें छोटी होती हैं। मांसाहारी प्राणियों की आंतें लम्बी होती हैं। मांस दुष्पाच्य होता है। वह मांसाहारी प्राणियों के पाचन तंत्रा में इसीलिए हजम हो जाता है। शाकाहारी प्राणियों की आंतों में वह पचे बिना रह जाता है। बिना पचा आहार तरह-तरह से हानिकारक सिद्ध होता है। जिन्होंने मानव शरीर शास्त्रा का गहन अध्ययन किया है उनका निष्कर्ष है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से मांसाहार विपरीत असर देता है। हेंग का कहना है कि ‘शाकाहार ही शक्ति उत्पन्न करता है। मांस से केवल उत्तेजना बढ़ती है। शोधकर्ता मेनरी पड़री ने लिखा है-शाकाहारियों की तुलना में मांसाहारी अधिक बीमार पड़ते और जल्दी मरते हैं। डाक्टर पारकर ने कहा है ‘सिरदर्द, अपच, गठिया, थकान, रक्तचाप, मधुमेह आदि का कारण यूरोप, अमेरिका में बढ़ा हुआ मांसाहार ही है। यदि मांसाहार बन्द कर दिया जाए तो दुनिया की आधी बीमारियां स्वतः ठीक हो जाएंगी।’
डाक्टर एन. चर्चित ने सिद्ध किया है कि मांस में जो प्रोटीन पाया जाता है वह प्रोटीन इतना घटिया होता है जिससे हानि की संभावना है। प्रोफेसर वेज्ज़ का मानना है कि-मनुष्य की प्रकृति में क्रोध, उद्दण्डता, आवेश, अविवेक, कामुकता और अपराधी प्रवृति उत्पन्न करने तथा भड़काने में मांसाहार का बहुत बड़ा हाथ है।
धार्मिक दृष्टि से तो इसे सदा निन्दनीय पाप कर्म बताया जाता रहा है। बौद्ध और जैन धर्म तो अहिंसा पर ही आधारित हैं। वैष्णव धर्म भी इस सम्बन्ध में इतना ही सतर्क है। वेद, पुराण, स्मृति, सूत्रा आदि हिन्दू धर्म ग्रंथों में पग-पग पर मांसाहार की निन्दा और निषेध भरा पड़ा है। बाइबिल में कहा गया है ‘ऐ देखने वाले, देखता क्यों है, इन काटे जाने वाले जानवरों के विरोध में अपनी जुबान खोल।’ ईसा कहते थे-किसी को मत मार। प्राणियों की हत्या न कर और मांस न खा। कुरान में लिखा है-हरा पेड़ काटने वाले मनुष्य, बेचने वाले, जानवरों को मारने वाले और स्त्रागामी को खुदा माफ नहीं करता। जो दूसरों पर रहम करेगा, वही खुदा की रहमत पायेगा।