भारतीय विदेश नीति की परीक्षा की घड़ी

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राजेश कुमार पासी
 
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री और कूटनीतिज्ञ हेनरी किसिंजर ने कहा था कि अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक है लेकिन अमेरिका का दोस्त होना उससे भी ज्यादा खतरनाक है। यह बात पहले भी सही थी लेकिन अब तो सारी दुनिया इसे देख रही है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के दोस्तों पर ही सबसे ज्यादा हमलावर हैं । सत्ता में आने के बाद वो रूस, चीन, उत्तर कोरिया जैसे देशों के खिलाफ कुछ नहीं कर  पाये हैं जिन्हें अमेरिका का दुश्मन माना जाता है । इसके विपरीत ट्रंप ने यूरोप, कनाडा,जापान, दक्षिण कोरिया और भारत जैसे अमेरिकी दोस्तों पर  जोर आजमाइश की है ताकि इन्हें झुका कर वो अमेरिका के हित में मनमाना समझौता कर सकें । यूरोपीय देश, जापान, दक्षिण कोरिया और कई अन्य देश ट्रंप के दबाव में आकर अपने देशहित के खिलाफ जाकर अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौता कर चुके हैं ।  यही कोशिश ट्रंप ने भारत के साथ की थी लेकिन उन्हें इसमें सफलता मिलने की जगह चुनौती मिल गई है । भारत अमेरिका के सामने किसी भी प्रकार से झुकता नजर नहीं आ रहा है ।


 ट्रंप की भारत से नाराजगी सिर्फ व्यापारिक समझौते को लेकर नहीं है बल्कि वो निजी कारणों से भी भारत से नाराज हैं । ट्रंप की नाराजगी की बड़ी वजह यह है कि मोदी सरकार ने भारत-पाक संघर्ष में हुए युद्ध-विराम का  श्रेय उन्हें नहीं लेने दिया है । वो लगभग 30 बार यह दोहरा चुके हैं कि उनके दबाव में आकर ही दोनों देशों के बीच युद्ध-विराम हुआ था अन्यथा दोनों देशों का संघर्ष परमाणु युद्ध में तब्दील हो सकता था । मोदी सरकार कई बार उनके इस दावे को नकार चुकी है जिससे उनकी हताशा बढ़ती जा रही है । मोदी की ट्रंप से नाराजगी की भी यही वजह है कि ट्रंप लगातार झूठ बोलते जा रहे हैं ।
 
                ट्रंप सीधे तौर पर यह नहीं कह सकते कि भारत युद्ध-विराम का श्रेय उन्हें नहीं लेने दे रहा है,  इसलिए वो भारत के खिलाफ अन्य मुद्दों को लेकर जहर उगल रहे हैं । उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को मृत करार दे दिया है और भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाला देश बता रहे हैं । उन्होंने भारत पर जो टैरिफ लगाया है, उसे अमेरिका का जवाबी टैरिफ कहा है । रूस से तेल  खरीदने को लेकर उन्होंने 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है जिससे अब भारतीय निर्यातों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लग गया है । ट्रंप के ऐसा करने की वजह यह है कि वो भारत को झुकाकर अमेरिकी हितों में वैसा ही व्यापारिक समझौता चाहते हैं, जैसा उन्होंने कई देशों के साथ कर लिया है ।  दूसरी तरफ अमेरिका को मोदी यह अहसास दिला रहे हैं कि भारत अपनी स्वायत्तता के लिए कोई भी कीमत चुका सकता है। अमेरिका यह भूल जाये कि वो प्रतिबंधों के सहारे भारत को मनमाना समझौता करने के लिए विवश कर सकता है । यह बात धीरे-धीरे अमेरिका में कुछ लोगों को समझ आ रही है लेकिन ट्रंप समझने को तैयार नहीं है।


 ऐसा नहीं है कि मोदी एक जिद्दी नेता हैं जो ट्रंप के सामने अड़ गए हैं । मोदी कई बार सार्वजनिक रुप से कह चुके हैं कि वो अपने किसानों, मछुआरों और छोटे उद्योगों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं कर सकते । वास्तव में अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिकी कंपनियों के लिए अपना कृषि, डेयरी और मत्स्य उद्योग खोल दे । मोदी के लिए समस्या यह है कि इस सेक्टर से भारत में करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं. अगर मोदी अमेरिका के सामने कमजोर पड़ जाते हैं तो भारत के करोड़ों किसानों की जिंदगी बदतर हालत में जा सकती है । मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि अमेरिकी टैरिफ से होने वाले नुकसान की भरपाई एक-दो साल में हो जाएगी लेकिन इन क्षेत्रों में अमेरिकी कंपनियों के आने से जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती । देखा जाए तो अमेरिका के सामने खड़े होना मोदी की जिद्द या कूटनीति नहीं बल्कि मजबूरी है । अगर मोदी इस मुद्दे पर अमेरिका के सामने झुक जाते हैं तो ये सिर्फ  उनकी नहीं बल्कि भाजपा की राजनीतिक आत्महत्या होगी ।  
 
                 सबसे बड़ी आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य शक्ति का राष्ट्रपति होने के कारण ट्रंप अंहकार से भरे हुए हैं और वो एक रिंगमास्टर की तरह पूरी दुनिया को अपने इशारों पर नचाना चाहते हैं लेकिन चीन, रूस, भारत और ब्राजील ने उनको आइना दिखा दिया है । रूस पर तो पहले ही प्रतिबंध लगे हुए हैं और चीन के खिलाफ अमेरिका कुछ करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। भारत के बारे में भी ट्रम्प की यही सोच थी कि वो टैरिफ का डर दिखाकर मोदी से मनमाना समझौता साइन करवा लेंगे लेकिन ट्रम्प मोदी को समझने में बड़ी भूल कर बैठे । अब ट्रम्प इतना आगे बढ़ चुके हैं कि उनके लिए पीछे हटना भी मुश्किल हो गया है। दुनिया ने देखा कि यूरोपीय संघ के बड़े नेता रिंगमास्टर ट्रंप के सामने स्कूली बच्चों की तरह बैठे हुए थे । उन देशों में दुनिया के सबसे अमीर और ताकतवर देश शामिल हैं जिसमें से किसी की अर्थव्यवस्था तीसरे नम्बर पर है तो किसी की पांचवे छठे नम्बर पर है और दो देश तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं । इनके  साथ दुनिया के दूसरे सबसे बड़े आर्थिक संगठन की नेता भी बैठी हुई है । देखा जाए तो वो तस्वीर ट्रंप के अहंकार को तुष्ट करने वाली है । इससे वो संदेश दे रहे हैं कि वो ही दुनिया को चला रहे हैं ।


 यूरोप ने वर्तमान हालातों को देखते हुए ट्रंप के सामने घुटने टेक दिये हैं, कुछ ऐसी ही उम्मीद ट्रंप मोदी जी से कर रहे थे । ट्रंप के भारत के प्रति गुस्से को हमें समझना चाहिए लेकिन सच यह भी है कि मोदी जैसा नेता इस तरह से आत्मसमर्पण नहीं कर सकता । मोदी जानते हैं कि वो 140 करोड़ की आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. अगर उनकी ऐसी ही तस्वीर  मीडिया में आ जाती तो भारत में हंगामा हो जाता । जिस तरह से नरेंद्र-सरेंडर का नारा राहुल गांधी ने लगाया है और ये विमर्श चलाया है कि मोदी ट्रंप के सामने झुक रहे हैं,  अगर मोदी कहीं से भी ट्रम्प के सामने झुक जाते हैं तो विपक्ष को हंगामा करने का  मौका मिल जाएगा ।
 
               ग्लोबल राजनीति बहुत जटिल होती है जहां हर कदम के कुछ फायदे और कुछ नुकसान होते हैं । भावनाओं को काबू रखना पड़ता है और कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ता है । कोई कुछ भी कहे लेकिन यह सच है कि अमेरिका भारत का मित्र राष्ट्र है, सिर्फ उसके नेतृत्व के रवैये के कारण भारत अमेरिका को दुश्मन नहीं बना सकता । अमेरिका चीन के खिलाफ चुप है क्योंकि वो भारत और चीन के खिलाफ एक साथ मोर्चा नहीं खोल सकता । भारत को अमेरिका की जरूरत है लेकिन अमेरिका को भारत की उससे ज्यादा जरूरत है । हम रूस-चीन में अमेरिका का विकल्प नहीं तलाश सकते क्योंकि अमेरिका से भारत के भविष्य के हित जुड़े हुए हैं । बेशक रूस भारत का बहुत पुराना और भरोसेमंद दोस्त है लेकिन वो एक इतिहास है, भारत का भविष्य अमेरिका के साथ जुड़ा हुआ है । बेशक हम चीन के साथ दोस्ती बढ़ा रहे हैं लेकिन चीन पर विश्वास करना भारत के लिए घातक साबित हो सकता है । चीन के खिलाफ हमारा मददगार सिर्फ अमेरिका हो सकता है, रूस इस मामले में हमारी मदद नहीं कर सकता।


 भारत की आर्थिक ताकत इतनी है कि वो अमेरिकी टैरिफ का मुकाबला कर सकता है । अगर भारत को विकसित राष्ट्र बनना है तो इसमें सबसे ज्यादा मददगार यूरोप और अमेरिका  ही हो सकते हैं । वैसे देखा जाये तो ट्रंप ने एक सोते हुए शेर को जगा दिया है । उन्होंने बता दिया है कि वैश्विक राजनीति में स्वार्थ सबसे ऊपर है । भारत को अगर ताकतवर बनना है तो उसे आत्मनिर्भर बनना होगा । हमें आपदा को  अवसर बनाना होगा. आज ट्रंप  के कारण आपदा आई है, कल किसी और के कारण आ सकती है । हम खुद को आईटी सुपरपॉवर कहते हैं लेकिन हमारे पास अपनी ईमेल, सोशल मीडिया और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग  की एप्प तक नहीं है । गूगल, माइक्रोसोफ्ट, फेसबुक जैसी कंपनियां हमारे देश  पर राज कर रही हैं । जिस तरह से रक्षा क्षेत्र में हमने आत्मनिर्भरता हासिल की है, अन्य तकनीकी क्षेत्रों में भी आत्मनिर्भरता हासिल करनी होगी । भारतीय विदेश नीति की परीक्षा की घड़ी है कि वो कैसे अमेरिकी नेतृत्व के रवैये से  भारत-अमेरिकी संबंधों को बचाती है । अमेरिका के  लोग यह समझ रहे हैं कि  भारत उनका एक मूल्यवान साझेदार है लेकिन ट्रंप की नीतियों से यह साझेदारी टूट सकती है ।


भारत को अपनी भावनाओं पर काबू रखना होगा ताकि अमेरिका के साथ संबंधों को सामान्य करने का रास्ता खुला रहे । हम अपनी तरफ से रिश्तों को इतना खराब करने से बचे कि रिश्ते सुधरने की उम्मीद खत्म हो  जाए । अमेरिका पाकिस्तान या चीन नहीं है जो मूल रुप में भारत  विरोधी हैं । अमेरिकी  नेतृत्व के कारण वर्षों से बने संबंधों को बचाने की कोशिश भारतीय नेतृत्व को करनी होगी । चीन के प्रति अमेरिकी नीति उसकी बढ़ती शक्ति को रोकने और उसे रूस से दूर करने की रही हैं । ट्रंप की नीतियों के कारण रूस और चीन करीब आ गए हैं और अब ट्रंप भारत को भी  इस खेमे में धकेल रहे हैं । ऐसा कैसे हो सकता है कि अमेरिका के थिंक टैंक को यह समझ नहीं आ रहा होगा । जल्दी ही उम्मीद करनी चाहिए कि अमेरिका  अपने कदम पीछे हटाएगा क्योंकि इससे आगे बढ़ने पर उसके लिए ही मुसीबतें शुरू होने वाली हैं ।

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