बच्चों एवं बड़ां में तुतलाहट और कम सुनाई देने की समस्या का निदान आज के दौर में काफी आसान हो गया है। अब कम सुनाई देने वाले व्यक्तियों के लिए अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं।
बच्चे में तुतलापन अगर चार साल तक रहता है तो परेशानी की बात नहीं है क्योंकि इस दौरान स्वरतंत्रा के विकास की उम्र होती है लेकिन चार साल बाद भी तुतलाहट रहने पर बच्चे को स्पीच थेरेपिस्ट को दिखना चाहिए। तुतलाहट के इलाज के तौर पर स्पीच थैरेपी दी जाती है जिससे यह ठीक हो जाता है।
स्वर विकार की समस्या बालपन से ही तब शुरू होती है जब घर-परिवार के लोग बच्चे की हकलाहट या तुतलाहट को बाल प्रवृत्ति या बाल स्वभाव मान कर उसकी तरफ ध्यान नहीं देते।
हकलाने वाले बच्चे या वयस्क आम लोगों की तरह धारा प्रवाह और स्पष्ट बोलकर बीच-बीच में रूककर, शब्दों को तोड़ मरोड़ कर या मुख्य शब्द को दुहरा कर बोलते हैं। बोलते समय उनमें कभी-कभी हिचक भी आ जाती है या वे झिझक का भी अनुभव करते है। ऐसे बच्चे कई बार बोलना चाहते हैं लेकिन बोल नहीं पाते। हकलाहट शारीरिक विकार नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक विकार है। हकलाने वाले व्यक्ति के शरीर के अंग या स्वरतंत्रा में कोई खराबी नहीं होती।
कई बच्चे किसी व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर हकलाने लगते हैं। जब किसी बच्चे का कोई दोस्त या रिश्तेदार हकलाता है तो जाने-अनजाने बच्चा भी उसकी नकल करता है और धीरे-धीरे यह उसकी आदत बन जाती है।
हकलाने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व सामान्य व्यक्ति से भिन्न होता है। आमतौर पर हकलाने वाले बच्चे या व्यक्ति दिमाग से कमजोर नहीं होते बल्कि उनकी बुद्धि सामान्य से अधिक होती है। हकलाने वाले बच्चे भावुक और अंतर्मुखी किस्म के होते हैं। बच्चे के मन में यह भावना आ जाए कि किसी व्यक्ति के सामने रूक रूक कर बोलूंगा तो मेरी हंसी उड़ाएंगे, तब उनमें हकलाने की प्रवृत्ति और बढ़ जाती है। ऐसे लोग टेलीफोन पर बात करने या इंटरव्यू का सामना करने में घबराते हैं। उन्हें लगता है कि कि जब लोग मुझसे सवाल करेंगे तो मैं जवाब नहीं दे सकूंगा।
हकलाने वाले बच्चे या वयस्क हर समय नहीं हकलाते बल्कि उनका हकलाना परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे कोई बच्चा किसी खास वाक्य को सामान्य परिस्थिति में बोलने पर नहीं हकलाता लेकिन उसी वाक्य को विपरीत परिस्थिति में बोलने पर हकलाने लगता है।
हकलाने की कोई उम्र नहीं होती। यह किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है। इसका 95 प्रतिशत तक इलाज संभव है। इलाज के तौर पर मरीज की काउंसलिंग करनी पड़ती है और स्पीचथेरेपी दी जाती है। स्पीच काउंसलिंग के तहत रोगी को यह बताया जाता है कि उसके स्वरतंत्रा में कोई खराबी नहीं है, केवल मन में डर बैठा है।
व्यक्ति को समझा-बुझाकर उसमें आत्मविश्वास पैदा किया जाता है। स्पीचथेरेपी द्वारा रिलेक्सेशन (तनाव रहित होने) के उपाय बताए जाते हैं।
जब किसी बच्चे का उच्चारण साफ नहीं होता तो उसे तोतलापन कहते हैं। बच्चा जब कापी को तापी, रोटी को लोटी बोलता है तब माना जाता है कि वह तुतलाहट से ग्रस्त है।
कुछ बच्चे या व्यक्ति एक अक्षर की जगह दूसरा अक्षर बोलते हैं जैसे कापी को तापी, खाओ को थाओ, गाय को दाय, रोटी को लोती बोलते हैं। बच्चों और बड़ों में सबसे सामान्य किस्म की तुतलाहट यही है।
कुछ व्यक्ति बोलते समय बीच में ंकिसी एक अक्षर को खा जाते हैं जैसे वे कापी को आपी, रोटी को ओटी बोलते हैं। इसमें शब्द का पहला घटक बिल्कुल गायब हो जाता है जबकि कुछ बच्चे कुछ अक्षरों का उच्चारण साफ नहीं करते।
तुतलाने का पहला कारण शारीरिक विकार (आर्गेनिक डिफेक्ट) है। इसमें व्यक्ति के स्वरतंत्रा में किसी न किसी तरह की खराबी होती है। जब किसी व्यक्ति की जीभ टन्काई तरह की होती है अर्थात जुड़ी हुई होती है और ऊपर तालु को छूती है तो वह व्यक्ति रोटी को रोती बोलता है।
इसमें व्यक्ति के स्वर तंत्रा जैसे जीभ, तालु, दांत, जबड़े, हांठ आदि में खराबी होती है। कभी भी तालु छोटा हो सकता है या तालु में छेद हो सकता है। इसके अलावा होंठ कटे फटे रहने से भी यह दोष हो सकता है।
दूसरा कारण फंक्शनल विकार है। इसमें स्वरतंत्रा बिलकुल ठीक होता है, फिर भी बच्चा साफ नहीं बोलता है।