खेलने की उम्र में चोट लगना एक आम बात है। बच्चे भी इस बात को समझते हैं कि कुछ दवा लगाने से, दवाई खाने से, कुछ आराम करने से ठीक हो जाएगा और माता-पिता भी छोटी मोटी चोट लगने पर अधिक चिंतित नहीं होते पर यही कुछ चोट किसी खिलाड़ी बच्चे को लगती है तो मां-बाप और बच्चा बहुत चिंतित होते हैं।
बच्चे और मां-बाप के मन में आता है कि क्या बच्चा फिर से भागदौड़ कर पाएगा, मैच खेल पाएगा आदि। मन इसी उधेड़बुन में लगा रहता है क्योंकि खिलाड़ियों को कई बार गुम चोटें लग जाती हैं और उनका इलाज और आराम लंबा होता है।
जब खिलाड़ी व्यवसायिक रूप से खेल रहा हो और उसे चोट लगे तो उसके करियर पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। जब वो ठीक भी होता है तो उसे मैच से बाहर एक्सट्रा में बैठा दिया जाता है क्योंकि ऐसा टीम के लिए जरूरी होता है नहीं तो चोटिल खिलाड़ी टीम और मैच दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है।
ऐसे में कई खिलाड़ी थोड़ी बहुत चोट लगने पर बिना ध्यान दिए जोश में खेलते रहते हैं तब उनकी चोट गंभीर रूप ले लेती है। अगर यदि समय पर इलाज हो जाए तो खिलाड़ी जल्दी फिट हो जाता है। अधिकतर खिलाड़ियों को चोटें टखने, कोहनी, कलई, कंधे और घुटनों पर लगती हैं। कई खिलाड़ी अपनी क्षमता से अधिक प्रैक्टिस करते हैं तो इन चोटों के अलावा उनके शरीर की मांसपेशियों में भी कई तरह के खिंचाव पड़ जाते हैं जिन्हें डॉक्टरी भाषा में ओवरयूज सिन्ड्रोम‘ कहते हैं।
इसके लिए खिलाड़ी और कोच दोनों को ध्यान रखना चाहिए कि खिलाड़ी अपनी क्षमता से अधिक प्रेक्टिस न करें और थोड़ी सी चोट को भी गंभीरतापूर्वक लेकर सही समय पर डॉक्टरी सहायता लें।
चोटों से बचाव के कुछ तरीके
खेल प्रारंभ करने से पहले वार्म अप एक्सरसाइज अवश्य करें।
स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज भी करें।
खेल खेलते समय और प्रेक्टिस के दौरान सही कपड़े जूते और अन्य सुरक्षा कवच अवश्य पहनने चाहिए।
वार्म अप और स्ट्रेचिंग करने के तुरंत बाद न खेलें। दो मिनट का आराम अवश्य लें।
गेम खत्म होने के बाद अपने आप को कूल डाउन भी अवश्य करें।
खेलने के सही तरीके अपनाएं। इससे चोट लगने की संभावना कम होती है।
प्रोफेशनल खिलाड़ियों को मैचों के अतिरिक्त भी व्यायाम एवं प्रेक्टिस करते रहना चाहिए।
खेल के दौरान प्यास लगने पर थोड़ा-थोड़ा पानी, नींबू पानी या एनर्जी ड्रिंक्स लेते रहना चाहिए ताकि शरीर में एनर्जी का संचार होता रहे।