भारतीय संस्कृति के प्रतीक श्रीराम

हिंदू संस्कृति और सभ्यता की सुरक्षा करने की स्वयं स्वीकृत प्रतिबद्धता के कारण समाज श्रीराम को भारत का आदर्श पुरुष मानता है। हिन्दू समाज के विस्तृत पर्वों में सीताष्टमीए रामनवमीए कृष्ण जन्माष्टमीए विजयादशमी और दीपावली है। जिसका इन महापुरुषों से संबंध है। श्रीराम का संबंध तीन पर्वो से है। आर्य संस्कृति के आदर्श के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से बढ़कर अन्य कोई आदर्श नहीं मिलता। राम आर्यावर्त अर्थातए भारतीय इतिहास के प्रतिनिधि के रूप में प्रेरणा के अजस्त्र स्रोत रहे हैं। मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं के जो आदर्श हो सकते हैं वे सर्वोत्तम रूप से श्रीराम में घटित होते हैं। राम आदर्श राजा हैंए आदर्श पुत्र हैंए आदर्श पति हैंए आदर्श भाई हैं और आदर्श स्वामी हैं। ऋषियों द्वारा निर्धारित मर्यादाओं का जितना सुंदर रीति से राम ने पालन किया हैए उतनी सुंदर रीति से कदाचित ही किसी अन्य ने किया है। इसलिये राम को रामोविग्रहवान धर्म राम धर्म साक्षात प्रतिमा हैए कहा गया है।


इतने सारे गुणों से युक्त होने के कारण ही भारतीय मानस राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में स्मरण करता है। वाल्मीकि रामायण संस्कृत का प्रथम काव्य है। राम और राम कथा हमारे जीवन में इतनी अंदर तक समा गई है कि वे हमारे दैनिक जीवन के अंग बन गये हैं। दक्षिण एवं भारत के अनेक क्षेत्रों में माप व वोरियां गिनते समय पहली संख्या एक न बोलकर राम बोलते हैं। दक्षिण राज्यों में आज भी विवाह संस्कार मेंए पिता कन्यादान करते हुए कहता है कि मेरी इस कन्या सीता को स्वीकार  करें। छत्तीसगढ़ के प्रायरू गांवों में रामायण मण्डली वर्षाकाल में दो दिनए तीन दिनए नौ दिन तक रामायण कथा करते हैं। भारतीयों के अधिकांश नामए राम पर उसके समानार्थक या पर्यायों पर रखे जाते हैं। कितने व्यापक ऋणी हैं हम भारतीय श्रीराम और श्रीकृष्ण के।


श्री राम भारत के पहले ऐसे राष्ट्र नायक हैंए जिनके पगचिन्ह सारे भारत के उत्तर से लेकर सुदूर दक्षिण मेंं श्रीलंका तक विभिन्न स्थानों में आज भी विद्यमान है। इन स्थानों के कारण ही भारत की एकता के इतिहास को एक स्वरूप मिलता है। ये स्थल हमारे इतिहास के साथ ही हमारी आस्था के प्रतीक भी हैं एवं आस्था के स्मारक हैं। कौशल्या नंदन और यशोदानंदन के रूप में राम और कृष्ण नाम हैं।


इन दोनों के प्रति भारत में सांस्कृतिकए सामाजिक एवं धार्मिक आस्था की जो अन्तर्धारा प्रवाहित है उसका ही प्रकटीकरण राम और कृष्ण के व्यापक चरित्र में मिलता है इसलिये सारा भारत श्रीराम और श्रीकृष्णमय है। वे देश के चप्पे.चप्पे में व्याप्त है। भारत की नदियांए पर्वत और वनप्रांत श्रीराम और श्री कृष्ण की सत्ता के साक्षी हैं। श्रीराम और श्री कृष्ण के बिना भारत की कल्पना संभव नहीं है। ये दोनों भारत के निर्मल चरित्र के केंद्र हैं। ये युगों से हमारे तक चली आई आध्यात्मिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परम्परा की धरोहर हैं।
राष्ट्रीय अस्मिता एवं गौरव के प्रतीक हैं। आज दुर्भाग्य से उनकी जन्मभूमि विवादों से घिरी है। इसका प्रतिरोध सांस्कृतिक और धार्मिक एकजुटता से करना होगा।


आर्यो उठो जाग उठा है आज देश का फिर सोया अभिमान।
रामकृष्ण की धरती को करना है स्वाभिमान।।
संस्कृति का अंत शुरू हो गया हैए यह समझना चाहिए। श्रीराम का विजयोत्सव दशहरा हम लोगों में ऐसी सच्ची आस्था पैदाकर जिसमें अज्ञान व अंधविश्वास न हो तथा मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह हम चरित्र के धनी तथा धर्म की मर्यादा मानने वाले बनेंए ऐसे सत्यप्रयास होना ही चाहिये