देवताओं के वाहक पशु पक्षी

मनुष्य आज जिस तरह रेल, वायुयान, कार, साइकिल, मोटर साइकिल, रिक्शा आटो रिक्शा आदि विभिन्न सवारियों का प्रयोग करता है उसी तरह देवी-देवताओं की भी सवारियां हुआ करती थीं। कुछ देवी-देवता पुष्पक विमान या उड़नखटोला जैसी वैज्ञानिक सवारियों का भी प्रयोग करते थे। आवश्यकता, अधिकार और हैसियत के अनुरूप ही किसी को सवारी की सुविधा प्राप्त होती है। देवी-देवताओं को भी इसी आधार पर सवारी की सुविधा हुई थी।
हाथी धरती पर रहने वाला विश्व का सर्वाधिक विशाल प्राणी है। शरीर के अनुसार इसे भोजन की प्रचुर आवश्यकता पड़ती है। घूमने के लिये भी इसे व्यापक क्षेत्रा चाहिये। चुना यह माना जाता है कि विश्वकर्मा के जिम्मे पूरे विश्व के उद्योग का भार है। एक तो उद्योग और उस पर पूरे विश्व की जिम्मेवारी। विश्वकर्मा के इस महान कार्य संचालन के लिये अपनी सवारी के लिये विशाल हाथी का चुनाव किया। उद्योगों के देवता विश्वकर्मा द्वारा मजबूत और विशाल उदयमशी प्राणी हाथी का सवारी के रूप में प्रयोग व्यावहारिक ही है।


दुर्गा को जगत जननी और जगदंबा कहा गया है और इन्हें शक्ति का प्रतीक माना गया है। देवताओं की रक्षा करने का भार संभालने के कारण दुर्गा का यह नाम पड़ा है। शक्ति रूपा जगतजननी दुर्गा की सवारी सिंह है। सिंह एक शक्तिशाली प्राणी है। बात केवल शक्तिशाली होने तक ही नहीं है। हाथी से छोटा होने के बावजूद सिंह अधिक खतरनाक प्राणी है क्योंकि इसमें चंचलता अधिक पायी जाती है। जगदंबा की नारी सुलभ विशेषताओं के अनुरूप ही उनकी सवारी सिंह का व्यक्तित्व भी आकर्षक और सुन्दर लगता है।


जिस तरह दुर्गा सिंह की सवारी करती है, उसी तरह पार्वती शेर की सवारी करती है। पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती को पर्वत पर रहने वाला शेर ही अपनी सवारी के रूप में उपयुक्त लगा।


तेज दौड़ने वाले कुछ प्राणियों में घोड़े का विशेष महत्त्व है। यह न केवल तेज दौड़ता है वरन भारी वाहनों को खींचने में भी इसका महत्त्वपूर्ण उपयोग है। इसकी पीठ पर सवारी भी जाती है। यह रथ और टमटम आदि वाहन खींचने में भी प्रयुक्त होता है। सुबह सुबह पूरब दिशा में उगने वाले सूरज के रथ को भी घोड़े ही खींचते हैं।


सूरज की तरह चांद भी अपने रथ में बैठकर आकाश में पूरब से पश्चिम की ओर जाता है। चूंकि चांद वनस्पतियों का पोषक है, इसलिये उसके रथ में भी शाकाहारी और चपल हिरन जुता हुआ है। हिरन की कुलाल और शांत मधुर चाल में जो आकर्षण पाया जाता है, वह शांत मधुर चांद की प्रकृति के अनुरूप है।


बैल का कृषि कार्यों में विशेष प्रयोग किया जाता है। कृषक खेत से लेकर खलिहान तक बैलों का उपयोग करते हैं। भगवान शंकर की सवारी के रूप में यही बैल प्रयुक्त होता है। यों तो खेती पूरे साल होती है मगर श्रावण माह में विशेष तौर पर खेतों में हरियाली देखी जा सकती है। श्रावण माह में बोल बम का नारा विशेष तौर पर सुनाई पड़ता है।


यमराज का नाम सुनने से मौत भले निकट नहीं आ जाती है मगर मौत की याद तो आ ही जाती है। लाल-लाल आंखें, हाथ में यमपाश तथा कांटेदार गदा और भैंसे पर सवार, यही तो है यमराज का रूप। यमराज वाली प्रायः सारी विशेषताएं उनकी सवारी भैंसा में पायी जाती है। गुस्सैले भैंसे की लाल-लाल आंखें, लंबे घुमावदार सींग और फुंकार छोड़ते भैंसे को देखकर यमराज की याद का आ जाना असंगत नहीं है।


भैरव भी यमराज की तरह के ही एक देवता हैं। यमराज मौत से संबंधित हैं तो भैरव बीमारियों से। भैरव की सवारी कुत्ता है।


शीतला माता की सात बहनें और एक भाई की बात प्रचलित है। भैरव उन्हीं के भाई का नाम है। शीतला माता की सवारी गधा है। शीतला माता की सातों बहनें चेचक आदि से संबंधित हैं।


गंगा एक पवित्रा नदी का नाम है। पवित्राता का ही परिणाम है कि गंगाजल में कीड़े पैदा नहीं होते थे। इस पवित्राशील गंगा की सवारी उसमें विचरने वाला घड़ियाल है। जल की देवी जलयान पर ही तो चलेगी। घड़ियाल गंगा को बखूबी जल में घुमाने में सक्षम हैं।


यह एक आश्चर्यजनक बात लगती है कि नन्हा सा प्राणी चूहा भी सवारी के रूप में प्रयुक्त होता है। यही नहीं, इस नन्हें से प्राणी की सवारी और कोई हल्का फुल्का देवता नहीं बल्कि लंबोदर गणेश करते हैं। एक तो नन्हा सा चूहा और उस पर गणेश का भारी भरकम शरीर, सवार होकर कैसे चलते होंगे, यह या तो उनको पता होगा या उनकी सवारी को।


भगवान विष्णु की सवारी गरूड़ हैं जो विशाल पक्षियों की श्रेणी में आता है। अपने एक हाथ में चक्र, दूसरे में शंख, तीसरे में गदा और चौथे में कमल लिये लक्ष्मीपति विष्णु को गंडकी में घड़ियाल से प्रताड़ित गज पुकार ले और दुःशासन द्वारा चीर हरण किये जाने पर द्रौपदी पुकार ले, पता नहीं। इसलिये इन्हें तेज वाहन रखना जरूरी हो जाता है।


सरस्वती और लक्ष्मी के बैर की बात प्राचीन काल से कही जाती है अर्थात विद्वान धनवान नहीं हो सकता और धनवान विद्वान नहीं हो सकता। बिरले ही लोगों के पास सरस्वती और लक्ष्मी एक साथ रह पाती है। वैसे भी सरस्वती की सवारी हंस है जिसे दिन में दिखाई देता है और लक्ष्मी की सवारी उल्लू है जिसे केवल रात्रि के अंधेरे में ही दिखाई देता है। इसका तात्पर्य यह लगता है कि लक्ष्मी उसी के पास रह सकती है जो उल्लू की तरह दिन में अंधा हो अर्थात जिसे दूसरों की समस्या दिखलायी नहीं पड़े और जो धन संचय को ही अपने जीवन का उद्देश्य मानता हो।


कार्तिकेय को शंकर का पुत्रा माना गया है। इनका नाम एक कुशल योद्धा के रूप में लिया जाता है। इनकी सवारी है सुन्दर और नयनाभिराम मोर।


कबूतर-कबूतरी का प्रेम विश्व प्रसिद्ध है। कामदेव मानवीय प्रेम संबंध के देवता माने जाते हैं। इसलिये कामदेव की सवारी गुटर गूं गुटर गूं करने वाला सुंदर गरदन वाला प्रेमी पक्षी कबूतर है।


वाहन के रूप में पशु-पक्षियों का प्रयोग मानव के रूप में पृथ्वी पर अवतरित सभी देवी देवताओं द्वारा किया जाता दिखलाया गया है। मनुष्य भी इन पशु पक्षियों का प्रयोग करता है। मनुष्य द्वारा न केवल वाहन के रूप में बल्कि आहार, कृषि, सुरक्षा आदि कार्यो के लिये भी पशु-पक्षियों का प्रयोग प्राचीन काल से किया जाता रहा है।


पशु पक्षियों का उपयोग उतना ही पुराना है, जितना धरती पर मनुष्य का अस्तित्व ।