भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परिवेश में त्यौहारों का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे त्यौहार नैतिक आदर्शों की स्थापना तथा परम्पराओं के निर्वहन में सार्थक भूमिका निभाते हैं। भारतीय त्यौहारों के विभिन्न स्वरूप हैं। भाई-बहन के स्नेह से परिपूर्ण रक्षाबंधन, बुराई पर अच्छाई की विजय स्वरूप होलिका-दहन तथा राष्ट्र प्रेम से सराबोर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस में हमें इन विविध स्वरूपों की अनुभूति होती है। इसी प्रकार विजयादशमी का त्यौहार भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की राक्षसराज रावण पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हमारे त्यौहार हमें सत्य के पथ पर चलने की प्रेरणा तो देते हैं साथ ही यह भी संदेश देते हैं कि शांति, प्रेम, भाईचारा और आपसी सद्भाव ही हमारी संस्कृति और सभ्यता का आधार स्तम्भ है। विजयादशमी का पर्व आश्विन माह की दशमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने दशानन रावण का वध किया था इसीलिये यह दिन दशहरा भी कहलाता है। भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं, वे भगवान विष्णु के मानव अवतार थे। अवतारी पुरुष होने के बाद भी श्री राम अपने अवतार रूप को प्रगट नहीं होने देते थे और एक सामान्य पुरुष की ही भांति आचरण करते थे। एक सामान्य पुरुष संकट के दौर में घबराने लगता है और अपने इष्ट देव की याद करने लगता है। यही स्थिति भगवान राम की भी थी। महाकवि निराला जी के अनुसार जब राम-रावण युद्ध के समय राम चिन्तित, व्याकुल और निराश होने लगे थे तब जामवन्त ने उनसे इसका कारण पूछा भगवान श्रीराम ने कहा कि मैंने युद्ध में देखा-
महाशक्ति रावण को, लिये अंक लांछन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक।
भगवान राम के मुंह से ऐसी निराशा भरी बातों को सुनकर जामवन्त ने ही उनसे युद्ध छोड़कर शक्ति पूजा की प्रेरणा दी और कहा-
रघुवर, विचलित होने का, नहीं देखता मैं कारण
हे पुरुष सिंह तुम भी, यह शक्ति करो धारण
शक्ति की करे मौलिक कल्पना, करो पूजन
छोड़ दो समर, जब तक न सिद्ध हो रघुनंदन
जामवन्त के शब्दों ने भगवान राम पर असर किया और वे युद्ध का भार लक्ष्मण को सौंपकर शक्ति पूजा में लीन हो गये। राम ने जिस दिन शक्ति पूजा आरंभ की वह आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पड़वा) तिथि थी। लगातार नौ दिन तक भगवान राम शक्ति पूजा में लीन रहे तथा अंतिम दिन जब भगवान राम देवी को कमल का फूल चढ़ाने वाले ही थे कि वह फूल वहां से गायब हो गया। इस पर भगवान ने कहा कि उनकी मां उन्हें राजीव नयन कहा करती थी इसलिये उनकी आंखें भी कमल ही हैं। देवी के चरणों में समर्पित करने के लिए अपनी आंखें निकालनी चाहीं तो देवी प्रकट होकर बोली कि तुम्हारी साधना सफल हुई। मैंने तुम्हारी तपस्या और साधना से प्रसन्न होकर स्वयं ही कमल का फूल उठा लिया है। तत्पश्चात महाशक्ति ने भगवान राम को विजय का वरदान दिया। निराला जी के ही शब्दों में देखें-
होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन
कह महाशक्ति राम के बदन में हुई लीन।
भगवान राम को साधना, तपस्या और त्याग के बल पर ही महाशक्ति प्राप्त हुई और इसी से उन्होंने अगले दिन महाबली राक्षसराज रावण का वध किया। आज भी दशहरे के पूर्व शक्ति पूजा शायद इसीलिये की जाती है कि भगवान राम जैसे अवतारी पुरुष की सहायता करने वाली महाशक्ति सदैव सहायक सिद्ध हो। आज भी श्रद्धालु जन नौ दिन कठोर व्रत, उपवास रखकर देवी की आराधना करते है और दसवें दिन राम की विजय तथा रावण के वध के प्रतीक स्वरूप उल्लासपूर्वक दशहरा मनाते हैं।