जब मुंह में हो जाएं छाले

मुंह में होने वाले छालों को मुखपाक या मुखव्रण या माउथ अल्सर के नाम से भी जाना जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे मुंह आना भी कहते हैं। इस रोग में मुख की अंतरीय झिल्ली सूज जाती है और उस पर घाव भी हो जाते हैं। छालों में अक्सर पीला सा पस पड़ जाता है। इस स्थिति में छाले बहुत तकलीफदेह हो जाते हैं।


फंगल इंफेक्शन से होने वाले छाले कैंडिडा अल्बीनकन नामक फंगल से होते हैं। इसे थ्रश कहते हैं। ये अक्सर छोटे बच्चों में अधिक देखने को मिलते हैं। ठीक से दूध की बोतल धुली न होना, बच्चों का मुख ठीक से साफ न होना, बच्चों की पाचनशक्ति कमजोर होना, विटामिन व पोषक तत्वों का अभाव होना एवं अंधेरे, सीलनभरे कमरे में रहना जहां पर्याप्त मात्रा में धूप व रोशनी न पहुंच पाती हो आदि इसके कारण होते हैं।


फंगल इंफेक्शन से होने वाले मुख के संक्रमण में रोगी बच्चा अस्वस्थ व चिड़चिड़ा हो जाता है। उसका मुंह व जीभ अत्यधिक शुष्क हो जाती है। होंठ, गाल का भीतरी भाग, तालू, जीभ आदि पर छोटे-छोटे घाव हो जाते हैं। जीभ, तालू आदि में सफेद-सफेद दही के समान तह जम जाती है। फंगल इंफेक्शन से होने वाले छाले बड़े व्यक्तियों में भी हो सकते हैं। अधिक दिनों तक एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करने वाले एवं मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को फंगल इंफेक्शन अधिक होता है।


वायरस जनित मुखपाक एक प्रकार के फिल्ट्रैबल वायरस द्वारा होता है। यह वायरस आंतों के रोग, लंबे समय तक अजीर्ण से पीड़ित रहने, पाचन संबंधी अनियमितताओं एवं दूसरों के साथ एक ही थाली में खाने आदि से पनप सकता है। वायरस जनित मुखपाक में होंठ, गाल या जीभ पर वेदना युक्त छाले हो जाते हैं जो बाद में व्रण का रूप ले लेते हैं और तब खाने-पीने में कठिनाई होती है व लार अधिक मात्रा में निकलती है।


छाले होने का सही-सही कारण जाने बिना उनसे छुटकारा पाना संभव नहीं है। बिना सही कारण जाने, अंधाधुंध एंटीबायोटिक के प्रयोग से फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है। इससे फंगल इंफेक्शन बढ़ने का जोखिम भी रहता है। वैसे भी अधिक एंटीबायोटिक आंत में पाए जाने वाले स्वाभाविक व लाभदायक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं। इसके अधिक प्रयोग से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी घटती है। छालों का इलाज न करके यदि उसके होने वाले कारण का उपचार किया जाए तो रोगी को जल्दी राहत मिलती है। वैसे भी जब तक स्थिति गंभीर न हो, हमें दवाइयों की अपेक्षा नैसर्गिक उपचार को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
छालों से छुटकारा पाने के लिए मुंह की ठीक से साफ-सफाई करें। कभी-कभी इतना कर लेने भर से ही हमें छालों से राहत मिल जाती है। मुंह की साफ-सफाई रखने से वहां पर बैक्टीरिया, फंगस एवं वायरस नहीं पनप पाते हैं जिससे उनसे होने वाले छालों से निजात मिल जाती है। हर मुख्य भोजन के बाद ठीक से दांतों की सफाई एवं कुल्ले करने से भी मुंह साफ-सुथरा रहता है। इससे मुंह की बदबू व सांस की दुर्गंध से भी छुटकारा मिल जाता है।
कब्ज बने रहना मुंह के छालों का एक चिरपरिचित सा कारण है। लगातार कब्ज बने रहना हमारी खराब पाचनशक्ति का परिचायक है। इससे पेट में गैस बन सकती है और खट्टी डकारें आती हैं। एसिडिटी की शिकायत बनी रहती है जिससे पेट के ऊपरी हिस्से से ले कर गले तक जलन हो सकती है। अधिक दिनों तक ऐसा बने रहने से मुंह में छाले होने की संभावना बढ़ जाती है जिसका सही उपचार कब्ज का निराकरण ही है।
छालां से निजात पाने के लिए कभी-कभी हमें अपने खान-पान की आदतों को भी बदलना पड़ सकता है। अधिक तला व मसालेदार खाना हमारी पाचन क्रिया को प्रभावित करता है। सिगरेट-बीड़ी पीने से, दिनभर तंबाकू या सुपारी चबाने से, शराब आदि का सेवन करने से भी मुख में घाव बन जाते हैं सो, ऐसी चीजों का सेवन न करना ही उचित है।
छालों का उपचार करने की अपेक्षा उनकी रोकथाम करना अच्छा विकल्प है। छाले न हों, इसके लिए हमेशा ताजा व कम मिर्च-मसालेदार भोजन करें। हरी व पत्तेदार सब्जियां, सलाद, फल आदि अपने भोजन में अवश्य शामिल करें। चोकरयुक्त आटे की रोटियां व अंकुरित अनाज खाएं। इस सबसे मुंह के छालों के साथ-साथ कब्ज भी दूर होगा जो छालों का एक मुख्य कारण है।


सुबह उठ कर ढंग से मुंह व दांत साफ करके एक-दो गिलास पानी पिएं और कुछ देर तक खुली छत पर टहलें। इससे भी कब्ज का निवारण होगा। सुबह की चाय की जगह एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ कर पिएं। नींबू विटामिन सी से भरपूर होता है और छालों में राहत देता है। सुबह  खाली पेट थोड़ा व्यायाम कर लेना सोने पर सुहागे की तरह है। इससे पाचन क्रिया दुरूस्त बनी रहती है और शरीर में चुस्ती-फुर्ती रहती है।


यों तो खान-पान में परहेज व मुंह की ठीक ढंग से साफ-सफाई रखने भर से ही छाले सात-आठ दिनों में खुद ब खुद ठीक हो जाते हैं और अक्सर हमें किसी तरह के उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है पर कभी-कभी किसी खास तरह के संक्रमण के कारण छाले बहुत अधिक बढ़ कर कष्टदायक हो जाते हैं और उनमें पस पड़ जाने के कारण सेकंडरी संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में उनका उपचार किया जाना आवश्यक हो जाता है। सही उपचार से जल्द ही आराम मिल जाता है।