
काशी! महादेव की काशी! भोलेनाथ के त्रिशूल पर बसी काशी! या कहें तो सनातन की आत्मा है काशी! काशी कबसे है, यह इतिहास को भी ज्ञात नहीं! काशी तबसे काशी है जब आर्यावर्त भी आर्यावर्त नहीं था।
काशी ने भारत को बनते हुए देखा है। काशी ने देखा है भारत को संवरते हुए! काशी ने अपनी गोद में बैठा कर सँवारा है सनातन को, काशी ने ही रचना की है इस सर्वश्रेष्ठ संस्कृति की… काशी, काशी है।
काशी ने प्राचीन काल में अपने प्रति समूचे जम्बूद्वीप में वह निष्ठा और श्रद्धा देखी है कि कोई भी राजा कभी काशी पर आक्रमण नहीं करता था। और काशी ने मध्यकाल का वह अंधेरा कालखण्ड भी देखा है जब दर्जनों बार क्रूर आतंकियों ने बाबा विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त कर दिया। गौरी, रजिया, औरंगजेब… सबकी क्रूरता देखती रही काशी, फिर भी निश्चिन्त रही और निर्द्वंद्व की लहरों के साथ उछलती कूदती निर्द्वंद्व बहती रही क्योंकि काशी को ज्ञात था कि उसकी पराजय सम्भव नहीं। वह सृष्टि के अंत तक अपनी जानी पहचानी ठसक के साथ खड़ी रहेगी।
काशी मुस्कुराती रही शैव और वैष्णव के द्वंद्व के बीच, काशी मुस्कुराती रही द्वैत और अद्वैत के शास्त्रार्थ के मध्य, काशी हंसती रही निर्गुण और सगुण परम्पराओं के विभेद के साथ।
काशी ने केवल गंगा, वरुणा और अस्सी की लहरों को उठते और गिरते नहीं देखा, काशी ने असंख्य दार्शनिक मान्यताओं को उठते और गिरते देखा है। महादेव शंकर को सुनने वाली काशी ने सुना है आदि शंकराचार्य को भी, महावीर के स्वर को भी, बुद्ध के दर्शन को भी! काशी ने तुलसी और कबीर को भी सुना है। काशी ने देखा है तमाम विरोध के बावजूद डटे रह कर अपनी बात मनवाते पण्डितराज जगन्नाथ शास्त्राी तैलंग और तुलसीदास को और काशी ने देखा है किनारे से ही चुपके से निकल जाते गौतम को। काशी ने भारत को सबसे अधिक देखा है।
जाने कितनी बार उजड़ी और संवरी है काशी। महत्वपूर्ण यह है कि जब जब किसी राक्षस ने काशी को उजाड़ने का प्रयास किया, महादेव की कृपा से हर बार कोई न कोई संवारने वाला भी मिल ही गया।
जब मोहम्मद गौरी ने उजाड़ा तो कन्नौज नरेश जयचंद के सुपुत्रा हरिश्चन्द ने सँवारा था काशी को। सारे ध्वस्त मन्दिरों और घाटों को नए सिरे से बनवाया था उस धर्मनिष्ठ राजा ने। काशी उन्हें कभी नहीं भूलती।
औरंगजेब ने जब महादेव मंदिर पर प्रहार किया तो सदियों बाद महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने भारत की आत्मा पर लगे उस घाव पर अपनी तपस्या से मरहम लगाया था। महादेव का भव्य मंदिर उन्हीं राष्ट्रमाता की तपस्या का फल है। काशी उन्हें भी कभी नहीं भूलती।
महाराजा रंजीत सिंह जी ने भी काशी को संवारने में योगदान दिया। विश्वनाथ मंदिर का स्वर्ण शिखर उस सिख शासक की महादेव भक्ति का प्रतीक है। काशी उन्हें भी कभी नहीं भूलती। काशी अपने किसी योग्य और कर्मठ सेवक को नहीं भूलती।
समय बदलता है। हर पीढ़ी को अपने हिस्से का श्रम करना ही होता है। समय हर वैभवशाली नगर को कुछ अंतराल पर धूल से पाट देता है, ताकि किसी नए नायक को अपनी सामर्थ्य दिखाने का अवसर मिले। ताकि आने वाली पीढि़यों में कर्तव्यबोध रहे। काशी के साथ भी यही होता है।
समय की मार झेलती काशी की संकरी गलियां, जिन्हें देख कर कभी महात्मा गाँधी विचलित हुए थे, उन्हें साफ करने का सौभाग्य शैव परम्परा के प्रतिष्ठित नाथ सम्प्रदाय के महंत योगी आदित्यनाथ को मिलना था। समय ने देश की सत्ता नरेंद्र मोदी को दी और उत्तर प्रदेश को मिले महंत योगी आदित्यनाथ।
योगी-मोदी को समय ने अवसर दिया तो उन्होंने काशी के प्रति अपना समर्पण और अपना सामर्थ्य दिखाया भी। संसार का पहला नगर अपनी कई हजार वर्षों की यात्रा के दौरान यदि संकरी गलियों में बदल गया था तो उसे पुनः सुन्दर और भव्य बनाने की जिम्मेवारी खूब निभाई इस जोड़ी ने। हमेशा जाम में फँसी रहने वाली काशी को जाम से मुक्ति दिलाने की बात हो या मिट्टी में दब चुके प्राचीन घाटों की सीढि़यों की सफाई हो, काशी में इस जोड़ी ने खूब श्रम किया। और जब नगर को साफ करने के बाद सरकार बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुँची तो क्या खूब सजाया मन्दिर प्रांगण को। युगों बाद बाबा विश्वनाथ का दरबार उस तरह जगमगाया है जैसे उसे जगमगाना चाहिये। यह मोदी-योगी की काशी में निष्ठा का फल है।
मोदी जब काशी आये तो कहा था कि मुझे माँ गंगा ने बुलाया है। यह बिल्कुल सही है। काशी स्वयं ही चुन कर बुला लेती है अपने प्रिय सेवक को।
काशी को युगों युगों तक रहना है। उसकी यात्रा बहुत लंबी है। आज की बात कल को याद नहीं रहती पर इतना अवश्य है कि मोदी-योगी की जोड़ी ने काशी के उस रजिस्टर में अपना नाम लिखा लिया है जिसमें महाराज हरिश्चन्द्र, महाराजा रंजीत सिंह और माता अहिल्याबाई आदि के नाम दर्ज हैं। वे भी काशी को लम्बे समय तक याद रहेंगे, सैकड़ों वर्षों तक! यही उनकी विजय है।