नवरात्र व कुँआरिका पूजन

सारे दुर्गुण नष्ट हों, सद्गुण विकसित हो इसके लिए साधना रत होने के दिन हैं. नवरात्र। माता के गर्भ में नौ मास पलने के पश्चात् मनुष्य नामक जीव का निर्माण होता हैए उसी प्रकार नवरात्र के नौ दिन हमें अपने मूल रूपए अपनी जड़ों तक वापस ले जाने में अहम भूमिका निर्वहन करते हैं। वस्तुतरू नवरात्र हमें अपने भीतर की मूलभूत अश्छाइयों के बल पर अपने ऊपर हावी नकारात्मक पर विजय प्राप्त करने की सीख देता है। हमें अपने स्वयं के अलौकिक स्वरूप से साक्षात्कार कराता है। अतरू यह शास्त्रोक्त है कि नवरात्र के दिनों का उपयोग ध्यानए जपए तपए सत्संगए शांति और ज्ञान प्राप्ति के लिए करना चाहिए।


भारत में सर्वाधिक मान्यता दो नवरात्रों. शारदीय व वासंतिक की हैंए इन्हें प्रत्यक्ष नवरात्र माना गया हैए बाकी दो नवरात्र गुप्त माने गए हैंए कुछ पांचवां नवरात्र भी मानते हैं। सनातन हिन्दू धर्म में नव मातृका पूजनए  षोड़श मातृका पूजन व चौसठ योगिनी पूजन की परम्परा है। यहां शक्ति की दसमहाविद्या के स्वरूपों की भी पूजन की जाती है। भारतीय शास्त्र सिखाते हैं. जहां स्त्रियों ;नारियों.देवियोंद्ध की पूजा की जाती हैए उनका आदर.सत्कार किया जाता हैए वहां देवता सदा रमन करते हैं। नवरात्र में कुँआरी कन्याओं के पूजन की परम्परा है जो अनादि काल से चली आ रही हैं।


कुआँरिका पूजन से घर.परिवार में सुख.समृद्धि की वृद्धि होती है। यह पूजन कहीं सप्तमी कोए कहीं अष्टमी को तो कहीं नवमी को की जाती हैए परन्तु अधिकतर महाअष्टमी को ही करते हैं। 2 वर्ष आयु से लेकर 9 वर्ष या दस वर्ष की आयु की कुँआरी कन्याओं को निमंत्रण देते हैं। उन्हें शुद्ध पवित्र करकेए नए वस्त्र व अलंकरण से सजाकर उनको योग्य स्थान में बिठाकर उनका पूजन करते हैं। उनकी आरती उतारते हैंए उन्हें भोग.प्रसाद खिलाते हैंए पश्चात् दान.दक्षिणा देकर विदा करते हैं। श्रद्धालु उनके पाँव छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शास्त्रानुसार कुँआरी कन्याओं में देवी के जिन नौ स्वरूपों की पूजा का विधान हैए वे इस प्रकार हैं. 1ण् दो वर्ष. आयु की कन्या को देवी का कुँआरी स्वरूप कुमारिका माना जाता है। इस आयु की कन्याओं को पूजने से जीवन की दुरूख.दरिद्रता दूर होती है तथा धनए आयु व बल की प्राप्ति होती है।


2ण् तीन वर्ष आयु की कन्याएँ साक्षात त्रिमूर्ति मानी जाती हैं। इनके पूजन से धन.धान्य तथा पारिवारिक सुख.समृद्धि में वृद्धि होती है।


-ण् चार वर्ष. आयु की कन्याओं को कल्याणी रूप माना जाता है। इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। विद्याए  और सुख की प्राप्ति होती है। 4ण् पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। इस आयु की कन्याओं को पूजने से रोगों से मुक्ति मिलती है। 5ण् छरू वर्ष की कन्या को कालिका माना जाता है। इस स्वरूप के पूजने से व्यक्ति को विद्याए विजय व राजयोग की प्राप्ति होती है। 6ण् सात वर्ष की कन्या देवी चण्डिका का स्वरूप माना जाता है। शास्त्रानुसार पूजने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 7ण् आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इनको पूजने से वाद.विवाद तथा युद्ध में विजय प्राप्त होती है। 8ण् नौ वर्ष की कन्या को साक्षात दुर्गा का अवतार माना गया है। इनके पूजन से शत्रुओं का नाश होता है। असाध्य कार्य पूर्ण होता है। 9ण्दस वर्ष की कन्याओं को सुभद्रा माना गया है। देवी के इस स्वरूप को पूजने से सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं।


देवी भागवत में नौ कुआँरियों को नवदुर्गा का साक्षात प्रतिनिधि माना गया है। ये नवदुर्गा भगवती के नवरूपों की प्रत्यक्ष जीवन्त मूर्तियां हैं। देवी भक्तों को इन पर सदैव सुदृष्टि रखनी चाहिएए इनका आदर करनी चाहिएए कभी भी इन पर अनाचार व अत्याचार नहीं हो।
भारतवर्ष में माँ भारती यानी भारत माता को साक्षात सिंहवाहिनी दुर्गा माना गया है और उनके इसी स्वरूप की पूजा भी होती है। वैसे भी इसे विष्णुप्रिया ;महालक्ष्मीद्ध कहते हैं क्योंकि इनकी सन्तति के पिता स्वयं भगवान विष्णु हैं।