शिशु के स्वास्थ्य का रक्षक है स्तनपान

मां और बच्चे के बीच अगर गहरा रिश्ता कायम करता है तो वह है स्तनपान। मां के दूध में शिशु के लिए जो पौष्टिकता होती है वह डिब्बाबंद दूध में नहीं होती ।


मां का दूध शिशु का बौद्धिक  विकास करता है तथा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला होने के कारण शिशु में फेफड़े व पाचनतंत्रा की बीमारियों के होने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। डाक्टरों का मानना है कि नवजात शिशु को प्रारंभ से ही अगर मां का दूध मिलता है तो वह स्वस्थ एवं लम्बी आयु का होता है।


सर्वविदित है कि दूध एक संपूर्ण आहार है अतः नवजात शिशुओं को जन्म के कुछ घंटे के अंदर अगर मां स्तनपान कराती है तो उनमें मिर्गी और मस्तिष्क की विभिन्न बीमारियों से रक्षा होती है। एक ताजा रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट हुई है कि स्तनपान करने वाले शिशुओं में पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज होता है।


ऊपरी या डिब्बाबंद दूध पिलाने के अनेक नुक्सान हैं।

डिब्बाबंद दूध कभी ताजा नहीं होता और पूर्णतः शरीर के अनुकूल भी। उससे क्या नुक्सान हो सकते हैं, आप भी नहीं जानते।
  •  वसा की मात्रा संतुलित नहीं होती।
  • ऊपरी दूध हर बच्चा पचा ले यह आवश्यक नहीं अतः इससे उसे पेट में ऐंठन, गैस, कब्ज, जैसे समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • डिब्बाबंद दूध पिलाना, बच्चे का पेट भरना ही है। उसका शारीरिक विकास अवरूद्ध होता है।
  • बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी पायी जाती है। ऐसे बच्चे पूर्णतः स्वस्थ नहीं होते।
  • यकृत संबंधी रोग ऐसे ही बच्चों में देखने में आते है।
  • डिब्बाबंद दूध कई दिनों पूर्व पैक कर दिया जाता है जो शिशु के स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल नहीं होता।


दुग्धपान कराने हेतु हम जिस बॉटल का इस्तेमाल करते हैं उसकी साफ-सफाई में जरा सी चूक शिशु को हानि पहुंचा सकती है। उसे डायरिया, उल्टी जैसी शिकायतें हो सकती हैं, अतः शिशु को बोतल से दुग्धपान के पूर्व 8 घंटे में एक बार बोतल व निप्पल को पानी में उबालकर ही पिलाना चाहिए।


चूंकि बाजारों में उपलब्ध प्लास्टिक के निप्पल मां के स्तन-निप्पल के अनुकूल नहीं होते जिससे शिशु को दूध खींचने के लिए अधिक जोर लगाना पड़ता है जिसके कारण उसके मुंह के तालू प्रभावित होते हैं जिसका असर मस्तिष्क पर पड़ता है।


बाजारों में उपलब्ध डिब्बाबंद दूध मिलावटी यानी पूर्णतः शुद्ध हो, इसकी गारंटी नहीं है, अतः ब्रांडेड कंपनी का दूध ही कुछ हद तक बच्चों के लिए सर्वोत्तम हो सकता है।


अतः शिशु के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्तनपान कराना हर मां का कर्तव्य है ताकि शिशु मातृत्व प्रेम से वंचित न होने पाए।