प्रख्यात इतिहासकार एम. जी. एस. नारायणन का निधन

0
202504263388100

तिरुवनंतपुरम/कोझिकोड (केरल), 26 अप्रैल (भाषा) प्रख्यात इतिहासकार, शिक्षाविद और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के पूर्व अध्यक्ष एम. जी. एस. नारायणन का शनिवार को कोझिकोड के पास मालापरम्बा में स्थित आवास पर आयु संबंधी बीमारियों के कारण निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।

वह 93 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी, बेटा और बेटी हैं।

भारत के सबसे प्रतिष्ठित इतिहासकारों में से एक नारायणन 1976 से 1990 तक कालीकट विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रमुख और 2001 से 2003 तक आईसीएचआर के अध्यक्ष रहे।

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने नारायणन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि यह ऐसे समय में एक बड़ी क्षति है जब संकीर्ण हितों के लिए इतिहास की गलत व्याख्या और इसके पुनर्लेखन के लिए संगठित प्रयास किए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने शोक संदेश में कहा, ‘‘एमजीएस ने दस्तावेजों का व्यापक विश्लेषण करके और उनकी वैज्ञानिक रूप से व्याख्या करके पारंपरिक इतिहास लेखन से अलग रास्ता अपनाया।’’

उन्होंने कहा कि नारायणन ने मिथकों को पूरी तरह से खारिज करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उनकी सामाजिक भूमिका का विश्लेषण किया और उन्हें इतिहास का हिस्सा बनाया।

विजयन ने कहा, ‘‘नारायणन ने ज्ञान के एक रूप के तौर पर इतिहास और इतिहास लेखन को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका निभाई और समाज के लिए ऐसे लेख लिखे जिनका पुनः अध्ययन और विश्लेषण किया जा सके।”

मुख्यमंत्री ने कहा कि एक समय पर उन्होंने वामपंथियों से गहरी असहमति जताई थी, लेकिन बाद में उन्होंने इतिहास लेखन को संकीर्ण हितों के अधीन करने के दक्षिणपंथी दबाव की कड़ी आलोचना की।

विजयन ने कहा, ‘‘2015 में उन्होंने देश में संघ परिवार के शासन में बढ़ती असहिष्णुता का दूसरे इतिहासकारों के साथ मिलकर कड़े शब्दों में विरोध किया थाा।’’

भारतीय इतिहास लेखन के क्षेत्र में गहरी छाप छोड़ने वाले नारायणन अपनी पीएचडी थीसिस ‘पेरुमल्स ऑफ केरला’ के लिए प्रसिद्ध थे, जिसमें 9वीं से 12वीं शताब्दी तक केरल के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास का उल्लेख किया गया है।

साल 1976 से वह भारतीय इतिहास कांग्रेस में सक्रिय रहे और आईसीएचआर के सहयोग से कई ऐतिहासिक शोध परियोजनाओं का नेतृत्व किया।

उन्होंने भारत और विदेश में कई विश्वविद्यालयों में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ के रूप में भी काम किया।

नारायणन ने केरल के इतिहास, तमिलकम के इतिहास, प्राचीन भारतीय इतिहास और इतिहास लेखन की पद्धति पर ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने एक हजार से अधिक छात्रों को पढ़ाया और कई स्नातकोत्तर शोध परियोजनाओं की देखरेख की।

मलयाली और अंग्रेजी में उनके 200 से अधिक लेख प्रकाशित हुए।

उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज’ में ‘कॉमनवेल्थ एकेडमिक स्टाफ फेलो’ और मॉस्को विश्वविद्यालय तथा लेनिनग्राद में ओरिएंटल स्टडीज संस्थान में ‘विजिटिंग फेलो’ के रूप में भी काम किया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *