
उपनिषद सर्वोच्च मानव बुद्धि की उपज हैं.,यह मानवीय समुदाय और नागरिक समाज के लिए शांति का प्रकल्प है । भारतीय साहित्य की गंभीरता और इतिहास की प्राचीनता, श्रेष्ठता,मौलिकता और गंभीर चिंतन मानवीय समुदाय के लिए सर्वोच्च मानवीय मूल्य है । भारतीय साहित्य के गंभीरता और इतिहास की प्राचीनता मानवीय समुदाय को प्रत्येक स्तर पर मार्गदर्शन एवं पथ प्रदर्शन करता हैं जिससे वह अपने श्रेष्ठ विचारों का संप्रेषण ,अपने चरित्र का संतुलन और विवेक का उचित प्रयोग कर सके।
भारत के महान विरासत में ‘ गुरु पूर्णिमा’ का महापर्व विशेष महत्व विशेष उपादेयता, विशिष्ट विशेषता,विशेष स्थान एवं प्रत्येक देश एवं काल में प्रासंगिकता रखता हैं ।गुरु पूर्णिमा ज्ञान, सत्य,न्याय, अनुशासन ,नैतिक भावना और ज्ञान के प्रति गुरूत्वीय आकर्षण ,विशिष्ट प्रयोजन ,विशेष महत्व,सारगर्भित मूल्य और आदर्श और अध्यात्म का मार्मिक समन्वय हैं ।मानव जीवन की पूर्णता गुरु ज्ञान में है ,क्योंकि गुरु ज्ञान क्या करना हैं?;क्या नहीं करना हैं? किसके प्रति आभार प्रकट करना हैं?किन गुणों को आत्मसात करना हैं,यह मात्र व मात्र गुरु व्यक्तित्व से सीखा जा सकता हैं।
वैश्विक स्तर पर अक्षर ज्ञान के महान प्रणेता,महान अन्वेषक,महान दिव्यप्रकाश देवीत्यमान कर्मयोगी भगवान शिवजी हैं । तीनों लोकों में गीता – ज्ञान गुरु शिष्य परंपरा का स्रोत हैं और सांसारिक विषयों को जानने,समझने और उपर्युक्त परिस्थिति में क्रियान्वित करने का विधा है।गुरु शिष्य परंपरा नागरिक संस्कृति के लिए मानवीय समुदाय के लिए महती अध्याय हैं। गुरु शिष्य परंपरा का सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ट विचार वैदिक काल में हुआ था । वैदिक काल में ही मानवीय संस्कृति का यथेष्ठ विकास भी हुआ था ।आध्यात्मिक ज्ञान और आध्यात्मिक विद्या के महत्वपूर्ण भंडार उपनिषद में हैं जिसमें लोक जीवन के अमोघ सूत्र समाहित हैं। समकालीन में यह परंपरा सतत और तारतम्य में गतिमान हैं ।गुरु पूर्णिमा महान, कर्तव्यनिष्ठ,चरित्रवान,कार्य के प्रति समर्पित गुरुओं के प्रति कृतज्ञता प्रेषित करने का महापर्व हैं ।
महर्षि वेदव्यास जी के प्राकट्य दिवस के कारण गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास जी ने तत्कालीन परिस्थितियों में महाभारत जैसे ग्रंथ की रचना करके तत्कालीन समाज और राज्य में त्याग,समर्पण और भातृत्व भाव का संदेश दिए और समाज में उचित का ज्ञान दिए।गुरु सत्य ,ज्ञान ,विवेक ,दर्शन ,तर्क ,प्रत्यय,न्याय,चरित्र ,संवेग और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। विद्या एवं कौशल का प्रतिकूल परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास करवाते हैं एवं प्रकाश का प्रतीक है ,जो अपने गुरुत्व से शिष्य को इन विधाओं में पारंगत करते हैं।मानव समाज को भारत के महान उपादेयता है कि गुरु के गुरुत्वीय संकेंद्र में रहकर शिष्य अपने जीवन में अनुशासन,त्याग ,चरित्र निर्माण और व्यक्ति निर्माण के अधिगम को प्राप्त करता हैं और इन अधिगमों के माध्यम से अपने जीवन को सार्थक और सामयिक परिप्रेक्ष्य में विकसित करता है।
भारत में राजनीतिक विवेकीय कला की बौद्धिक परंपरा की एक समृद्ध नागरिक संस्कृति हैं ।भारत में प्रशासनिक कला और शासकीय पहलुओं के मर्मज्ञ चिंतक ,भारत के मनीषी और महान चिंतक आचार्य कौटिल्य हैं जिन्होंने शासन,कूटनीति ,राजनीति ,प्रशासन ,न्याय, समानता, सामाजिक कल्याण और राजा के कर्तव्यों पर गंभीरता से चिंतन किया था। यह भारत का वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण देन हैं।वैश्विक स्तर पर कौटिल्य की उपादेयता उनके राजनीतिक ग्रंथ’ अर्थशास्त्र’ के लिए हैं ।इसी उपादेयता के कारण आचार्य कौटिल्य को” भारत का मेकियावली “कहा जाता हैं। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में कौटिल्य का देन केंद्रीकृत मौर्य साम्राज्य की स्थापना हैं जो प्राचीन भारत में भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में केंद्रित शासकीय प्रणाली और केंद्रित प्रशासनिक प्रणाली को क्रियान्वित करने के कारण हैं।एक आधुनिक प्रतिदर्श( पैटर्न) पर मजबूत और अनुशासित सैन्य संरचना को विकसित ,प्रभावी आर्थिक नीतियों के कारण और कूटनीति की तत्कालीन परिस्थितियों में उपादेयता के कारण हैं ।तत्कालीन परिस्थितियों में कौटिल्य को राज्य के उद्देश्य को लेकर भूमिका अद्वितीय हैं अर्थात राज्य का मौलिक उद्देश्य कानून और व्यवस्था को बनाए रखना हैं,अपने शासितों (प्रजा) के अधिकारों की सुरक्षा करना, प्रजा के प्रति उत्तरदायित्व की भावना से काम करना और लोक कल्याण को शासकीय क्रियाकलापों में उन्नयन करना हैं ।तत्कालीन परिस्थितियों में कौटिल्य का कहना था कि राजा राज्य में अंतिम प्राधिकारी है जिसको मंत्रिपरिषद की सलाह से शासन करना चाहिए। यह अवधारणा आधुनिक शासकीय प्रणालियों प्रणालियों के लिए आमुख हैं।कौटिल्य का शासनकला, शासनकला से संबंधित चिंतन आधुनिक शासकीय प्रणालियों के लिए मुख्य कुंजी हैं,उनके चिंतन का प्रभाव, आभार एवं राजनीतिक बाध्यताएं आधुनिक संसदीय व्यवस्था के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हो चुकी हैं।तत्कालीन परिस्थितियों में आचार्य कौटिल्य शासको के उत्तम चरित्र निर्माण पर जोर देने वाले चिंतक थे जो अपने चारित्रिक सौंदर्यता ,त्याग की भावना एवं इंद्रियों पर नियंत्रण के कारण इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।