
जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट क्षेत्र के पोखरी गांव के समीप स्थित है भगवान शिव का पौराणिक देवालय हाटकेश्वर महादेव। इसकी महिमा पौराणिक काल से परम पूजनीय रही है।
श्री शिव के चरणों में परम आस्था रखने वाले भक्तजन महादेव जी के इस पावन स्थल पर आकर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं। इस पौराणिक शिवालय की महिमा बड़ी ही विराट है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह पावन स्थल जितना समृद्ध है तीर्थाटन की दृष्टि से उतना ही अद्भुत भी। स्कंद पुराण के मानस खंड में इस शिवालय की महिमा का बड़ा ही सुंदर वर्णन मिलता है। स्वयं महर्षि भृगु ने कहा है कि हाटकेश्वर क्षेत्र समूचे क्षेत्रों में प्रमुख व उत्तम क्षेत्र है। कहा जाता है कि यहाँ की पहाडिय़ों पर ऋषि मुनियों के समूह सूक्ष्म रुप से सदैव भगवान शिव का ध्यान करते हैं। पाताल भुवनेश्वर की महिमा के विस्तार में हाटकेश्वर महादेव का वर्णन आता है
स्कंदपुराण में भृगु ऋषि ने अपने शिष्यों को हाटकेश्वर महादेव की महिमा बताई है स्कंद पुराण में वर्णित हाटकेश्वर महिमा के क्रम में भृगु ऋषि कहते है यह बड़ा गोपनीय विषय है। ‘पातालभुवनेश्वरÓ का यह क्षेत्र हाटकेश्वर सब क्षेत्रों में प्रमुख है। इसी कारण अन्य क्षेत्रों को छोड़ मैं यहीं पर रहता हूँ। यहीं हाटकेश्वर महादेव का सानिध्य सर्वमंगल को प्रदान करनें वाला है। इसी क्षेत्र में मेरा आश्रम है। (उल्लेखनीय है कि हाटकेश्वर के समीप पर्वत की चोटी पर भृगु ऋषि का आश्रम है जिसे भृगुतम्ब पर्वत कहते हैं।)ऋषि भृगृ कहते है ‘हाटकेशÓ का यह उत्तम क्षेत्र परम कल्याणकारी है। अन्य ऋषिगण भी हाटकेश शंकर की आराधना कर इस पवित्र ‘दारुवनÓ में तपस्या करते हैं।
इस क्षेत्र में अनेक तीर्थ हैं। उनमें से कुछ प्रधान क्षेत्रों अथवा तीर्थों के सम्बन्ध में महर्षि ने स्कंद पुराण में कहा है ‘हाटकेश्वरÓ से आरम्भ कर ‘गणवतीÓ नदी पर्यन्त यह क्षेत्र है। यहाँ ‘हाटकेशÓ का पूजन कर ‘भार्गवÓ जल में पिण्डदान करने से ‘कोटि गोदानÓ का फल प्राप्त होता है। इसके नीचे की ओर एक पवित्र गुहा है। उसके भीतर जो शिव विराजमान हैं। उनका पूजन करने से करोड़ों यज्ञ करने का फल मिलता है। तब मेरे आश्रम में आकर मेरे साथ ‘महेश्वरÓ का पूजन करने से ‘वाजपेयÓ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। फिर नागेश्वर का पूजन कर ‘कोटियज्ञÓ फल प्राप्त करें। मेरे आश्रम से उत्तर की ओर पवित्र ‘सरस्वतीÓ में स्नान एवं पिण्डदान करने से पितरों का उद्धार होता है एवं ‘शिवलोकÓ मिलता है। उसके निकट में श्वास पर्वतÓ है। वहाँ ‘श्वास-प्रदायिनीÓ देवी तथा ‘क्षेत्रपालÓ का पूजन करने पर ‘गोदानÓ का फल मिलता है। तत्पश्चात् ‘भागीरथी गङ्गाÓ में स्नान एवं पिण्डदान करने से सैकड़ों कुलों का उद्वार होता है
कुल मिलाकर गंगावली की पावन भूमि पर स्थित हाटकेश्वर महादेव जी की महिमां पुराणों में अपरम्पार है यहाँ पर शिव पिण्डी की स्थापना कब व कैसे हुई इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है लेकिन पुराणों के अनुसार हाटकेश्वर महादेव भगवान शंकर का साक्षात् वास स्थान तथा गुप्त स्थान है इनका स्मरण परम आनन्द को प्रदान करनें वाला कहा गया है।
सुरासुरेश्वरं रमापतीश्वरं महेश्वरम् प्रचण्ड चण्डिकेश्वरं विनीत नन्दिकेश्वरं नमामि नाटकेश्वरं भजामि हाटकेश्वरम्
भारत भूमि में हाटकेश्वर महादेव जी के अनेक पौराणिक पावन स्थल है जिनमें भृगृतम्ब पहाड़ी के पास यह स्थान आदि काल से पूजनीय है पाताल लोक के समीप स्थित हाटकेश्वर की गाथा के साथ हाटकी नदी का भी जिक्र आता है हाटकेश्वर का अर्थ स्वर्ण होता है।
अर्थात पृथ्वी के अंदर मौजूद बहुमूल्य रत्नों के स्वामी हाटकेश्वर महादेव ही कहे जाते हैं। इनकी स्तुति पाताल के परम देवता के रुप में भी होती है
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते॥
अर्थात-आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
इस क्षेत्र के आस्थावान भक्त बताते है भगवान शंकर की हाटकेश्वर के रुप में स्तुति करनें से मनुष्य के सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होते है तथा अभीष्ट कार्य सि_ होते है इसलिए इन्हें सिद्वेश्वर भी कहते है। हाटकेश्वर में रुद्राभिषेक का भी विराट आध्यात्मिक महत्व है। इन्हे फल काफी प्रिय है इसलिए हाटकेश्वर महादेव को फल अर्पित किये जाते हैं।