आरोग्यम् परमम् भाग्यम् का मोदी संदेश

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      हाल ही में विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वस्थ रहने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि- स्वास्थ्य ही परम सौभाग्य और संपदा है। उन्होंने स्वस्थ विश्व के निर्माण के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की ओर कहा कि केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित करती रहेगी और लोगों के कल्याण के विभिन्न पहलुओं में निवेश करेगी। अच्छा स्वास्थ्य ही समृद्ध समाज की नींव है। अपने एक्स पोस्ट पर वीडियो साझा करते हुए उन्होंने मोटापे के मुद्दे को उठाया और लोगों से खाना पकाने के तेल का सेवन 10 प्रतिशत तक कम करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा-आरोग्यम् परमम् भाग्यम् यानी आरोग्य ही परम भाग्य, परम धन है।

 यहां ध्यान देने की बात यह है कि विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले सबसे बड़े लोकतंत्र के शीर्ष पद पर बैठे प्रधानमंत्री यानी नरेंद्र मोदी प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है और वे समय-समय पर अपने अनेक संदेशों में स्वास्थ्य के लिए जन जागरण भी कर रहे हैं। योग,ध्यान, उपवास, संतुलित खानपान आदि अनेक बातें स्वयं उनकी जीवन शैली का अभिन्न अंग हैं. क्या यह हम सभी के लिए प्रेरक नहीं है? विगत दिनों आई एक रिपोर्ट भी इस विषय में महत्वपूर्ण है जिसमें वर्ष 2050 तक 44 करोड़ से अधिक भारतीय मोटापे से पीड़ित होंगे, ऐसी जानकारी है। निश्चय ही यह बड़ी चिंता और चिंतन का मुद्दा है।

हाल ही में अमेरिका के जान्स होपकिंस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि जैसे-जैसे मोटापा बढ़ता है वैसे-वैसे हाइपरटेंशन, डायबिटीज, अनियमित दिल की धड़कन, हृदय रोग, किडनी रोग, पल्मोनरी एंबोलिज्म, खून का थक्का जमना, फैटी लिवर, पित्त की पथरी, दमा, पेट में जलन, हड्डियों और जोड़ों की बीमारी आदि 16 बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ध्यान रहे ऐसी कोई भी बीमारी  शरीर को तो कमजोर करती ही है, एक सामान्य व्यक्ति को आर्थिक संकट में भी डालती है।


      भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति में आरंभ से ही आहार शुद्धि पर विशेष बल रहा है। छांदोग्योपनिषद् में लिखा है- आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि: सत्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृति:..। अर्थात आहार शुद्धि से प्राणों के सत की शुद्धि होती है। सत्व शुद्धि से स्मृति निर्मल और स्थिरमति प्राप्त होती है। स्थिरमति से ही जन्म-जन्मांतर के बंधनों और ग्रंथियों का नाश होता है। बंधनों और ग्रंथियों से मुक्ति ही मोक्ष है। अतः आहार शुद्धि प्रथम नियम और प्रतिबद्धता है। ध्यान रहे आहार केवल शरीर का पोषण ही नहीं करता अपितु मन, बुद्धि ,तेज व आत्मा का भी पोषण करता है।


       आधुनिकता के नाम पर जीवन शैली भी विभिन्न रूपों में प्रभावित और विकृत होती जा रही है। भाषा, वेशभूषा के साथ-साथ आहार और विहार में भी परिवर्तन आ रहे हैं। देर से सोना फिर देर तक सोना। देर से खाना फिर ज्यादा और अपोषित खाना आदि बातें शारीरिक विकृतियों को जन्म  देती हैं। चाऊमीन, पिज़्ज़ा,बर्गर, कोक, पेप्सी जैसे फास्ट फूड आहार का हिस्सा बन रहे हैं। आहार की गुणवत्ता घट रही है। भारतीय जीवन पद्धति में ऋतु के अनुसार भोजन का विधान रहा है। हमारे पूर्वज उसी का अनुसरण करते रहे। वे मोटे अनाज जैसे चना, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि के साथ-साथ  फलियां, फल, कंदमूल आदि आहार में नियमित रूप से प्रयोग करते थे।

 

जैसे-जैसे हम अपने परंपरागत, ऋतुगत और जलवायुगत भोजन को छोड़ते चले जा रहे हैं वैसे-वैसे भिन्न-भिन्न रूपों में स्वास्थ्य को लेकर अनेक प्रकार की समस्याएं बढ़ रही हैं। बच्चों में नाटा रह जाना,कम वजन, एनीमिया जैसी अनेक परेशानियां बढ़ रही हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक बच्चों  व महिलाओं की आधी से ज्यादा आबादी एनीमिया से पीड़ित है। 6 महीने से 5 वर्ष के लगभग 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। इसी प्रकार 15 वर्ष से 50 वर्ष की उम्र की लगभग 57 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।


       भारत सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है इसलिए यहां स्वस्थ भोजन के लिए बुनियादी ढांचे की बहुत आवश्यकता है। इसके साथ ही सभी को भोजन और पोषण युक्त भोजन मिले इसके लिए सतत और व्यापक प्रयास करने होंगे। ज्ञान- विज्ञान और तकनीक के अधिकाधिक प्रयोग के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावों को देखते हुए उसे कम करने की आवश्यकता है। भारत जैसे देश में कंप्यूटर और मोबाइल का प्रयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। बच्चों और बड़ों की आउटडोर गतिविधियां लगातार घट रही हैं जिससे उनकी जीवन शैली गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। मोबाइल अथवा भिन्न-भिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बचने के लिए मोबाइल एवं गैजेट आदि की फास्टिंग अपनानी होगी। ध्यान रहे परंपरागत खेल, परंपरागत खानपान और परंपरागत जीवन शैली स्वस्थ रहने का बड़ा आधार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विगत में भी फिट इंडिया और करो रोग-रहो निरोग जैसे अनेक अभियान चलाकर जन-जन को स्वस्थ रहने का संदेश दे चुके हैं। आवश्यकता है समय रहते हम सभी अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग हों। अपोषक आहार को छोड़कर पोषक आहार की ओर बढ़ें।

 

3 मार्च 2021 को संयुक्त राष्ट्र में वर्ष 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर मनाने का प्रस्ताव आया था। भारत की ओर से लाए गए इस प्रस्ताव पर 72 देशों का समर्थन मिला और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया। इसके बाद से ही राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर मोटे अनाजों की मांग तेजी से बढ़ रही है। आज जब भारत की लगभग 65 प्रतिशत आबादी युवा है, तब यह आवश्यक है कि वह स्वस्थ भी रहे। क्योंकि विकसित भारत की राह स्वस्थ नागरिक के संकल्पों से ही पूरी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए लगातार जन जागरण कर रहे हैं। यह सराहनीय  और हम सभी के लिए प्रेरक है।

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