विधायी सदन को जनता की आवाज बनना चाहिए: लोकसभा अध्यक्ष बिरला

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नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधायी निकायों की गरिमा में गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को विधायी सदन के सदस्यों और राजनीतिक दलों सहित सभी पक्षों से आह्वान किया कि वे इस मुद्दे पर विचार करें।

उन्होंने दिल्ली विधानसभा द्वारा आयोजित विभिन्न विधानसभाओं के अध्यक्षों के सम्मेलन के समापन समारोह में इस बात पर जोर दिया कि पीठासीन अधिकारियों को सत्र की अध्यक्षता करते समय ‘‘निर्विवाद, स्वतंत्र और न्याय करने वाले’’ के रूप में देखा जाना चाहिए।

बिरला ने कहा, ‘‘हमारे संविधान निर्माताओं ने सदन में कुछ भी कहने, यहां तक कि सरकार के खिलाफ बोलने का भी विशेषाधिकार दिया था। हालांकि, इस स्वतंत्रता के पीछे की मंशा में गिरावट आई है। यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है।’’

अध्यक्ष ने इस बात पर भी बल दिया कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सदन सार्थक चर्चा और जनहित के मुद्दों पर विचार के उद्देश्य से संचालित हो।

उन्होंने विधायी सदनों के सदस्यों से दलगत स्वार्थों से ऊपर उठकर उन लोगों की अपेक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया जिन्होंने उन्हें चुना है।

बिरला ने कहा, ‘‘सदस्यों को जनता से जुड़े मुद्दे उठाने चाहिए। सदनों को जनता की आवाज बनना चाहिए और उनके सुझावों और विचारों को सार्थक रूप से प्रतिबिंबित करना चाहिए।’’

बिरला ने सदन के अंदर और बाहर मर्यादा और सम्मानजनक भाषा बनाए रखने के महत्व पर ज़ोर दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘असहमति लोकतंत्र की ताकत है। लेकिन सदस्यों को सदन के अंदर और बाहर आचार संहिता का पालन करना चाहिए। जनता हमारे शब्दों और कार्यों को देख रही है।’’

लोकसभा अध्यक्ष ने सभी राजनीतिक दलों से विधायिका की गरिमा बनाए रखते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का आह्वान किया।