ऋषिकेश, 18 अप्रैल (भाषा) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)-ऋषिकेश ने फॉरेंसिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक नयी पहल करते हुए विश्व की पहली न्यूनतम इनवेसिव शव परीक्षण विधि (मिनिमली इनवेसिव ऑटोप्सी) शुरू की है जो न केवल अपराध परीक्षण को और सटीकता प्रदान करेगा बल्कि पोस्टमार्टम प्रक्रिया को अधिक मानवीय और सम्मानजनक भी बनाएगा।
एम्स-ऋषिकेश के विधि विज्ञान (फॉरेंसिक) विभाग के अध्यक्ष बिनय कुमार बस्तिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ से यह जानकारी साझा करते हुए बताया कि नयी तकनीक में शव के आंतरिक अंगों की जांच के लिए मृत शरीर पर तीन जगहों पर करीब दो-दो सेंटीमीटर के छिद्र बनाए जाएंगे जिनके जरिए उसमें लैप्रोस्कोपिक दूरबीन डाली जाएगी।
उन्होंने बताया कि फिर सीटी स्कैन से इमेजरी तैयार की जाएगी जिसे अदालत को सीधे साक्ष्य के तौर पर दे दिया जाएगा ।
बस्तिया ने बताया कि अभी तक पोस्टमार्टम में शव की अमानवीय चीरफाड़ होती थी और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट को ‘हार्ड कॉपी’ में अदालत तक पहुंचाया जाता था।
उन्होंने बताया कि यह नवाचार न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उन्नत है, बल्कि इससे शव परीक्षण की प्रक्रिया अधिक मानवीय और सम्मानजनक भी बनती है।
बस्तिया ने बताया कि 14 अप्रैल को शुरू हुई इस तकनीक में उच्च-रिज़ॉल्यूशन लैप्रोस्कोपिक कैमरों के इस्तेमाल से आंतरिक चोटों और क्षतियों का अधिक सटीकता से पता लगाया जा सकता है जबकि यौन उत्पीड़न जैसे संवेदनशील मामलों में यह विधि अधिक सम्मानजनक और विस्तृत जांच की सुविधा प्रदान करती है जिससे महत्वपूर्ण साक्ष्य जुटाने में मदद मिल सकती है।
इसी तरह, उन्होंने बताया कि जहर या नशीले पदार्थों के सेवन के मामलों में एंडोस्कोपिक उपकरणों के माध्यम से, बिना घाव के मुंह तथा नाक का आंतरिक परीक्षण किया जाता है।
उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया को पूरी तरह से रिकॉर्ड किया जाता है जिससे कानूनी जांच के लिए पारदर्शी दस्तावेजीकरण और चिकित्सा शिक्षा के लिए उपयोगी सामग्री उपलब्ध होती है।
इस नवाचार को विज्ञान और मानवीय संवेदनशीलता का एक ‘अनूठा संगम’ बताते हुए बस्तिया ने कहा कि एम्स-ऋषिकेश की यह उपलब्धि भारत और विश्व में फॉरेंसिक प्रथाओं के लिए एक नया मानक स्थापित करती है।
उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि तकनीक का उपयोग न केवल वैज्ञानिक उत्कृष्टता के लिए, बल्कि मृत व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखने के लिए भी किया जा सकता है।