खर्राटे या दांत किटकिटाना

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कुछ लोगों को बचपन से खर्राटे लेने या दांत किटकिटाने की आदत होती है। गहरी नींद, दवा का प्रभाव एवं तालू संकरा होने पर खर्राटे आते हैं। पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिलने की स्थिति में ऐसा होता है जबकि पेट में कीड़े होने की स्थिति में लार बढ़ता है या व्यक्ति दांत बजाता किटकिटाता है। खर्राटे, लार बहने या दांत किटकिटाने की स्थिति जब परेशानी का सबब बन जाए तो इसका उपचार जरूरी हो जाता है।
कमर पर रखें नजर
पतली कमर की तारीफ की जाती है जबकि मोटी कमर को कमर है या कमरा कह कर उपहास उड़ाया जाता है। पतली कमर को अच्छी सेहत एवं लम्बी उम्र का परिचायक मानते हैं जबकि मोटी कमर को आगामी बीमारी का द्योतक माना जाता है।
अटलांटा के शोध ने इस पर मुहर लगाकर सहमति दे दी है। शोध में कहा गया है कि मोटी कमर वालों को बीपी, शुगर, दिल, कैंसर, सांस एवं पेट संबंधित रोगों के होने का खतरा ज्यादा रहता है। साथ ही इन्हें जल्द मौत का जोखिम ज्यादा रहता है।
जब दर्द से फटे सिर
सभी के साथ कभी न कभी ऐसा होता है जब दर्द से सिर फटा जाता है। ऐसे दर्द के समय कुछ भी काम करना नहीं सुहाता। इससे आराम पाने के लिए सबसे पहले चश्मा पहने हैं तो उसे उतार दें। जो काम हाथ में है, उसे जैसे का तैसा छोड़ दे। खाली पैर कुछ कदम चलें। हरियाली देखें, टैªफिक, बच्चों या पालतू जीवों के पास जाकर उनकी गतिविधि देखें, लंबी व गहरी सांस लें, रोकें व छोड़ंे। एक गिलास पानी को घूंट-घूंट पिएं। चाय या काफी पिएं। दर्द वाले स्थान को अपने हाथों से सहलाएं।
स्तनपान बच्चे को बनाता बुद्धिमान
स्तनपान कराना मां का कर्तव्य एवं स्तनपान करना बच्चे का अधिकार है। इससे दोनों को शारीरिक व मानसिक लाभ मिलता है। यह दोनों को स्वस्थ रखता है। इस संदर्भ में आस्टेªलिया के टेलेथान इंस्टीट्यूट के शोध अध्ययन के मुताबिक जो शिशु कम से कम छह माह स्तनपान करता है, उसका मानसिक विकास अधिक होता है। वह भविष्य में आने वाले तनाव को बहुत कुशलता के साथ सामना करता है। इसके अलावा उसे मानसिक बीमारियां लगने की संभावना भी काफी कम होती है। इससे मां व शिशु के बीच संबंध प्रगाढ़ बनता है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि शिशु को छह माह से कम समय तक स्तनपान कराने से उसका स्वास्थ्य सदैव कमजोर रहता है।
बच्चों का मोटापा कम घटता
समूची दुनियां मुटियाते बच्चों से भयभीत है। इनकी अधिक खाने की प्रवृत्ति से सभी हैरान हैं। आधुनिक स्वादिष्ट खानपान के कारण ये चटोरे व मोटे बन गए हैं। यही इन्हें खतरनाक रूप से मोटा बना रहा है। जीवन शैली में बदलाव बच्चों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। यह उन्हें श्रमशून्य कर देता है। यह उनमें मोटापे को और बढ़ाकर मुसीबत ला रहा है। ऐसे बच्चों को आगे चलकर मधुमेह, हृदय रोग व गुर्दाे की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे 70 प्रतिशत बच्चों का मोटापा युवावस्था एवं आगे भी घटने की बजाय बना रहता है।
यह खतरनाक भविष्य की ओर इंगित (इशारा) करता है। ऐसे मोटे बच्चों को स्वस्थ एवं खाने-पीते घर का मान कर नजर अंदाज करना इनकी मुसीबत को बढ़ा रहा है। समाज में इसको लेकर चिंताएं अधिक की जा रही हैं किंतु बच्चों के मोटापे को काबू करने, कम करने या बच्चों को मोटे न होने देने के लिए कम कदम उठाए जा रहे हैं। साथ ही जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनमें कामयाबी कम मिल रही है।
शुगर का स्मृतिहृास एवं अवसाद से नाता
शुगर की बीमारी दुनियां में सर्वाधिक लोगों को अपनी चपेट में ले चुकी है। जीवन शैली में बदलाव, आधुनिक एवं खानपान के कारण टाइप टू श्रेणी के शुगर मरीज बढ़े हैं। दुनियां में शुगर पीडि़त 90 से 95 प्रतिशत रोगी इसी श्रेणी के हैं। इसे जीवन शैली में सुधार खानपान नियोजन, श्रम एवं दवा से नियंत्रित किया जा सकता है किंतु ढिलाई के चलते लोग ऐसा नहीं कर पाते जिससे इनका (शुगर) स्तर सदैव सामान्य से ऊपर होता है जिससे सर्वांग प्रभावित होते हैं। साथ ही साथ व्यक्ति स्मृति हृास एवं अवसाद से घिर जाता है। इजराइल के एक चिकित्सा शोध ने शुगर के साथ स्मृति हृास एवं अवसाद में गहन संबंध पाया है।
पैदल चलना सबसे अच्छा
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग पैदल चलने को सबसे ज्यादा तवज्जो देते हैं। कुछ एक समय तो कुछ दोनों समय पैदल चलने का समय निकालते है। पैदल चलना शारीरिक सक्रियता के लिए व्यायाम का एक ऐसा प्रकार है जो सब को भाता है। इससे जिम जाने एवं पसीना बहाने जैसे कार्य नहीं करने पड़ते।
पैदल चलने को महत्त्व देने वाले जब मन करता है, पैदल निकल पड़ते हैं। इस शारीरिक सक्रियता से अतिरिक्त ऊर्जा की खपत होती है। वजन व मोटापा कम होता है। फेफड़े सही काम करते हैं। रक्त संचार सुधरता है। हृदय ठीक काम करता है। बीपी हृदय रोग एवं शुगर काबू में आते हैं। मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं। पैदल घूमने का काम घर बाहर कहीं भी किया जा सकता है।
भारतीयों पर काम का दबाव बढ़ा
भौतिक सुख साधनों की चाह एवं महंगाई के कारण भारतीयों पर काम का बोझ बढ़ गया है। वे कार्य स्थलों पर 6 से 8 घंटे काम की बजाय 11-11 घंटे काम कर रहे हैं। इस आपाधापी में घर के समय का संतुलन बिगड़ गया है।
लोग एक साथ दो जगहों पर भी काम कर रहे हैं। यह जन जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। एक आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक काम की इस अधिकता के कारण आगे चलकर कामगारों की सेहत गड़बड़ा सकती है जिससे कुल उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है। यह वैश्विक फर्म रेगस की सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है।
डांस से दिमाग व शरीर को लाभ
विश्व भर में डांस किसी न किसी रूप में प्रचलित है। कोई खुशी में नाचता है, कोई शौकवश नाचता है तो किसी का यह व्यवसाय है। सर्वे में इसे दिमागी शांति के लिए सबसे बढि़या माध्यम माना गया है। इससे शरीर भी सही रहता है। नृत्य का उपयोग भावनात्मक व शारीरिक समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। विशेषज्ञ भी स्वीकारते हैं कि नृत्य से मसल्स के तनाव में कमी आती है। नृत्य इसे संतुलित रखता है। इससे जोड़ों में दर्द से राहत मिलती है।

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