
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम बुंदेलखंड के लोक जीवन में सर्व व्याप्त हैं । अभिवादन में राम राम , जन्म , विभिन्न तीज त्यौहार , विवाह संस्कार से लेकर जीवन से मुक्ति तक राम नाम बुंदेलखण्ड की संस्कृति का हिस्सा है । बुंदेलखंड के लोकगीत और लोककथाएँ राम के जीवन और चरित्र से जुड़ी हैं। दादी नानी जो कहानियां सुनाकर बच्चों को सुलाती हैं, उन लोक कथाओं में राम के जीवन और चरित्र की कहानियां होती हैं । बुंदेलखंड की पावन तीर्थ धरा चित्रकूट में श्री राम ने भगवती सीता और भ्राता लक्ष्मण के संग अपने वनवास का सर्वाधिक समय बिताया । रामपथ गमन का बड़ा हिस्सा बुंदेलखण्ड से गुजरता है । पन्ना के सारंग धाम में ही भगवान श्री राम ने दैत्यों के सर्वनाश के लिए धनुष उठाया था । भगवान श्री राम ने चित्रकूट में कामद गिरी पर्वत की परिक्रमा की थी , यह स्थल आज भी एक भव्य तीर्थ के रूप में लोक प्रतिष्ठित है । चित्रकूट के आस पास के क्षेत्र के प्रायः लोग घर पर नहीं वरन चित्रकूट में मंदाकिनी तट पर ही दीपदान कर दीवाली मनाते हैं । स्वाभाविक है कि यहां की लोक संस्कृति में राम के आदर्श , उनका जीवन चरित रचा बसा है । बुंदेलखंड की पारम्परिक कला में, चित्रकला और मूर्तिकला में , बुंदेली नाट्य तथा साहित्य में राम के जीवन के विभिन्न दृश्य पीढ़ी दर पीढ़ी स्वतः अधिरोपित हो जाते हैं । घरों के दरवाजों , तोरण , पूजा पाठ के पटों पर ये राममय चित्र देखने मिल जाते हैं ।
राम से बड़ा राम का नाम होता है । अकादमिक लेख से परे एक स्वअनुभूत संस्मरण साझा करना चाहता हूं । मैं एक निजी बस में यात्रा कर रहा था। भीड़ थी, मुझ से अगली सीट पर एक ग्रामीण किशोर बैठा हुआ था,और उसके बाजू में एक युवती । बस चली , थोड़ी देर में ही युवती की जोर से आवाज आई “जै राम जी ” और युवक किंचित संकुचित हो सरक कर बैठ गया। मुझे स्पष्ट समझ आ गया कि क्या हुआ होगा , और किस तरह युवती ने चतुराई से केवल “जै राम जी ” कहकर स्थिति को संभाल लिया । मैं कल्पना कर सकता हूं कि यदि , यही घटना किसी महानगर की पढ़ी लिखी लड़की के साथ शहर में हुई होती तो क्या हंगामा खड़ा हो गया होता । युवती की चतुराई से केवल राम नाम के सही समय पर, सही स्वर और भाव के साथ उच्चारण मात्र से एक अप्रिय घटना , घटने से पहले ही टाली जा सकी । यह राम नाम के बुंदेलखण्ड के लोक जीवन में संमिश्रित होने का बड़ा उदाहरण है । मनोवैज्ञानिक इस घटना का विश्लेषण कर बड़ा बिहेवियरल रिसर्च पेपर बना सकते हैं । बुंदेली संस्कृति में राम नाम के ऐसे अनुप्रयोग बेहद आम , सहज , लोक व्यवहार का हिस्सा हैं ।
बुंदेलखण्ड के प्रत्येक गांव नगर में कोई न कोई राम मंदिर है । प्रति वर्ष यहां शहर शहर राम लीला के मंचन होते हैं । राम नवमी पर राम जन्म शोभा यात्रायें निकाली जाती हैं । दशहरे पर रावण दहन के विशाल आयोजन होते हैं । वर्ष भर कभी न कभी , कहीं न कहीं राम कथा के आयोजन समारोह पूर्वक कथा वाचकों के द्वारा किये जाते हैं , जिन्हें भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ प्रायोजित करते हैं । इन आयोजनों के माध्यम से पूजन सामग्री , बच्चों के खेल के धनुष बाण , इत्यादि की कई लोगों क रोजगार और आजीविका जुड़ी होती है ।
बुंदेली लोकगीतों में राम नाम रमा हुआ है … उदाहरण स्वरूप देखिये –
अवध में जन्मे राम सलोना
बंधनवारे बंधे दरवाजे
कलश धरे दोऊ कोना।
अवध में जन्मे राम सलोना
रानी कौशिल्या ने बेटा जाये
राजा दशरथ के छौना ।
अवध में जन्मे राम सलोना
रानी कौशिल्या ने कपड़े लुटाये
राजा दशरथ ने सोना।
अवध में जन्मे राम सलोना
हीरा लाल जड़े पलना में
नजर लगे न टोना।
अवध में जन्मे राम सलोना
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श्री रामचन्द्र जन्म लिये चैत सुदि नौमी।
दाई जो झगड़े नरा की छिनाई
कौशिल्या जी की साड़ी लैहों, सोर की उठाई।
श्री रामचन्द्र जन्म लिये चैत सुदि नौमी।
नाइन झगड़े नगर की बुलाई
कौशिल्या जी को लैहों हार , महल की पुताई।
श्रीरामचन्द्र जन्म लिये चैत सुदि नौमी।
पंडित झगड़ें पंचाग दिखाई
दशरथ जी को घोड़ा लैहों वेद की पढ़ाई।
श्री रामचन्द्र जन्म लिये चैत सुदि नौमी।
ननदी जी झगड़े आँख की अंजाई
तीन लोक राज लैहों सांतिया धराई।
श्री रामचन्द्र जन्म लिये चैत सुदि नौमी।
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राजा दशरथ के चारों लाल दिन-दिन प्यारे लगें
अंगना में खेलें चारों भैया,
चलत घुटरुअन चाल, दिन-दिन प्यारे लगे। राजा…
खुशी भई है तीनऊ मैया।
दशरथ खुशी अपार, दिन-दिन प्यारे लगे। राजा…
गुरू की दीक्षा लेके उनने
मारे निशाचर तमाम, दिन दिन प्यारे लगें।
राजा दशरथ के चारों लाल दिन-दिन प्यारे लगें
स्वयंबर भयो जनक नगर में
ब्याहे चारों-भाई, दिन-दिन प्यारे लगें।
राजा दशरथ के चारों लाल दिन-दिन प्यारे लगें
ब्याह के आये अवध नगर खों
खुशी भये नर नारि, दिन-दिन प्यारे लगें।
राजा दशरथ के चारों लाल दिन-दिन प्यारे लगें
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झुला दो रघुबर के पालने री।
झुलाओ मोरे हरि को पालने री।
कै गोरी आली सबरे बृज की संखियां,
घेर लए हरि के पालने री।
झुला दो रघुबर के पालने री।
कै मोरी आली कोरी मटुकिया को दहिया,
जुठार गयो तोरो श्यामलो री।
झुला दो रघुबर के पालने री।
कै मोरी आली तू गूजरी मदमाती,
पलना मोरो झूले लाड़लो री।
झुला दो रघुबर के पालने री।
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अवधपुरी में चैन परे न
बनखों गये रघुराई मोरे लाल
राम लखन और जनकदुलारी,
अब न परत रहाई मोरे लाल
सब रनवास लगत है सूनो,
रोवे कौशला माई मोरे लाल
नगर अयोध्या के सब नर-नारी,
सबरे में उदासी छाई मोरे लाल
जब रथ भयो नगर के बाहर,
दशरथ प्राण गये हैं मोरे लाल
चौदह साल रहे ते वन में,
सहो कठिन दुखदाई मोरे लाल
वन-वन भटकी परी मुसीबत,
शोक सिया खों भारी मोरे लाल
इसी तरह के अनेकानेक लोक गीत किसने कब लिखे कोई नहीं जानता । किसने इन गीतों की धुन बनाई यह भी अज्ञात है।आज हम आप फेसबुक पर अपनी शब्दों की बाजीगरी की छोटी सी कविता कोई अन्य प्रयुक्त कर ले तो कितना हंगामा खड़ा कर डालते हैं । इसके विपरीत बुंदेली लोक जीवन में व्याप्त ये लोक गीत, ढ़ोलक की थाप पर सास से बहुओं तक गायन शैली में मुखरित होते पीढ़ियों से गाये जा रहे हैं । अब अवश्य इन गीतों को यू ट्यूब,नये संसाधनों से प्रचारित तथा किताबों में संरक्षित किया जा रहा है ,एवं इन पर शोध हो रहे हैं ।
बुंदेलखंड के साहित्य में रामकथा का महत्वपूर्ण स्थान है। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना ही चित्रकूट में की थी । आज भी उत्तर प्रदेश के गोस्वामी तुलसीदास के जन्मस्थान राजापुर के मानस मंदिर में रामचरितमानस की मूल प्रति सुरक्षित रखी हुई है । पुरातत्व विभाग के प्रयासों से पाण्डुलिपि को संरक्षण कर नया जीवन दिया गया है। प्रतापगढ़ के कालाकांकर घाट में काशी नरेश ईश्वरी नारायण सिंह के प्रयासों से रामचरितमानस की यह मूल प्रति मिली थी जो पहले चोरी चली गई थी। इस मूल प्रति का अधिकांश भाग गुम हो चुका है , लेकिन अयोध्या कांड से संबंधित सभी 168 पृष्ठ मानस मंदिर में सुरक्षित रखे हुए हैं।
चित्रकूट में ही केशवदास की रामचंद्रिका और मैथिलीशरण गुप्त की साकेत जैसी रचनाएँ बुंदेलखंड के साहित्य में रामकथा को दर्शाती हैं। उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस की रचना के पूर्व ग्वालियर के कवि विष्णुदास ने संवत् 1499 वि.सं. (सन् 1442 ई. में वाल्मीकि रामायण के आधार पर बुन्देली मिश्रित ब्रज भाषा में ‘रामायन कथा’ नामक ग्रन्थ की रचना की थी । बुंदेलखंड की धरती को राम कथा की उत्पत्ति का केंद्र माना जाता है। क्योंकि वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों ने ही इस धरती पर तपस्या कर राम कथायें लिखी । अयोध्या शोध संस्थान , से प्रकाशित साक्षी अंक 20 बुंदेली भाषा में राम कथा पर केंद्रित है । इसका संपादन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डा. योगेंद्र प्रसाद ने किया है । वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस कृति में व्यापक शोध सामग्री , बुंदेली लोक जीवन में श्रीराम पर संग्रहित है ।
बुंदेल खण्ड की सीमाओ के संदर्भ में “इत यमुना, उत नर्मदा, इत चंबल, उत टोंस। छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥”इसका अर्थ है कि “यमुना से नर्मदा तक, चंबल से टोंस तक, छत्रसाल के साथ युद्ध करने की किसी में भी हिम्मत नहीं थी” महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड के एक महान योद्धा थे, जिन्होंने मुगल शासकों के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। स्वयं महाराजा छत्रसाल भगवान श्रीराम के परम भक्त थे और उन्होंने बुंदेलखंड में पन्ना में राम जानकी मंदिर की स्थापना करवाई थी। स्वयं परम वीर महाराजा छत्रसाल महावीर हनुमान जी के भी उपासक थे। पन्ना में श्री राम जानकी मंदिर प्रांगण में 300 साल पुरानी चंवर डुलाई की परंपरा आज भी निभाई जाती है। यथा राजा तथा प्रजा समूचे बुंदेलखण्ड क्षेत्र में सदियों से राम जानकी मन प्राण से जन जीवन में व्याप्त हैं । यह आयोजन भी इसी भाव की अभिव्यक्ति है । जै श्री राम(विभूति फीचर्स)