
मनुष्य सौंदर्य प्रेमी है। सौन्दर्य चाहे प्रकृति में हो, वस्त्रों में हो, चित्रों में हो या व्यक्ति में, सभी के द्वारा पसन्द किया जाता है। नारी का सौंदर्य अलंकार व श्रृ्रंगार से होता है किन्तु गृह सौन्दर्य नारी के विवेक और कुशलता से निखरता है।
जन साधारण की दृष्टि में घर को सजाने के लिए अधिक धन और अधिक सामान की आवश्यकता होती है किन्तु सजावट एक रचनात्मक काम है। थोड़े से विवेक और चतुराई से घर की काया ही पलट जाती हैं।
घर को व्यवस्थित तथा सुनियोजित ढंग से रखना ही सजावट है। घर में जो भी सामान या वस्तु उपलब्ध है, उसी को व्यवस्थित रूप में रखना चाहिए। सजावट के लिए अधिक बहुमूल्य वस्तुएं नहीं अपितु रूचि एवं कलात्मक पसन्द चाहिए। वस्तुओं को रखने, प्रदर्शित करने तथा उसमें होने वाले परिवर्तन ही सजावट है।
घर की प्रत्येक वस्तु को उसके उचित स्थान पर स्वच्छता से व ठीक प्रकार से रखा जाये जिससे वह देखने में सुन्दर व आकर्षक हो तो घर सजा हुआ दिखाई पड़ता है।
घर की सजावट में सुन्दरता के साथ व्यवहारिक उपयोगिता भी प्रदर्शित होती है। उचित स्थान पर वस्तुओं को रखने से इसका महत्व तो बढ़ता ही है साथ ही इसके प्रयोग में भी सुविधा बढ़ती है।
इस प्रकार यह बात तो स्पष्ट है कि सजावट का अर्थ घर की व्यवस्था से है। अगर घर की व्यवस्था सुचारू रूप से की जाये तो सुविधा भी रहती है और घर देखने में सुन्दर भी लगता है। वस्तुओं को उचित स्थान पर रखना ही सजावट है।
वस्तुओं को स्वच्छ और व्यवस्थित रखने से घर सजा हुआ दिखाई पड़ता है। सजा हुआ घर सुन्दर दिखता है। सुन्दरता एक ऐसा आकर्षण बिन्दु है जिसकी ओर प्रत्येक व्यक्ति आकर्षित होता है। ऐसे सुसज्जित घर में रहने से सुख की अनुभूति होती है। सुसज्जित घर में कोई भी वस्तु अव्यवस्थित नहीं रहती जिससे मानसिक और शारीरिक शान्ति का अनुभव होता है।
घर की सजावट में सबसे महत्वपूर्ण धन यानी आर्थिक दशा का भी बहुत बड़ा योगदान है। भारत में ऐसे अनेक परिवार हैं जिनकी सामर्थ्य पेट पर खाने और शरीर ढकने के लिए वस्त्रा की ही नहीं होती है। ऐसी स्थिति में घर की सजावट का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इस प्रकार यह बात तो स्पष्ट है कि अमीर व्यक्ति ही विभिन्न वस्तुओं को खरीद कर घर की सजावट कर सकते हैं। सजावट की अनेक वस्तुएं व सामग्रियां इतनी महंगी हैं कि उन्हें उच्च वर्ग व मध्यम वर्ग के लोग ही उपलब्ध कर पाते हैं। अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद ही हम घर की सजावट की ओर ध्यान दे सकते हैं।
प्रश्न उठता है कि घर की सजावट कैसे करें। थोड़ा ही सही मगर हमें व्यवस्थित तो रहना ही है। जरूरी नहीं है कि हमारे घर में महंगी देशी विदेशी वस्तुएं हों, तभी हम घर की सजावट कर सकते हैं। ऐसा नहीं है बल्कि अनुभव के द्वारा हम कम पैसों और कम समय में भी अपने घर को सौंदर्य का रूप दे सकते हैं। उसके कुछ सिद्धान्त व नियम होने चाहिए।
घर की सजावट बिना किसी विचार के किसी वस्तु को किसी भी स्थान पर रख देने से नहीं होती। यह भी कई सिद्धान्तों पर आधारित है। किसी भी वस्तु या विचार का चुनाव करने और उसको सुव्यवस्थित रूप देने में एकता पैदा होती है। इस एकता से अनुरूपता का भाव जागृत होता है।
इस जगह हमने अनुरूपता शब्द का प्रयोग किया है। इसका सीधा अर्थ है मेल। बस इतना समझ लें कि कमरे के रंग से मेल खाते हुए रंगों के पर्दे तथा कालीन सुन्दर लगते हैं तथा सजावट की वस्तुएं भी कमरे के आकार के अनुरूप ही होनी चाहिए। बेमेल रंग और बेमेल आकार की वस्तुएं कमरे की शोभा को कम कर देती हैं।
घर तथा सामान में सामान्य अनुपात होने से कमरे की शोभा बढ़ जाती है। बड़े ड्राइंग रूम में बड़ा और छोटे ड्राइंग रूप में अधिक सामान रख दें तो वह ड्राइंग रूम न रह कर स्टोर रूम बन जायेगा, अतः कमरे व सामान का एक अनुपात होना चाहिए।
विश्राम और स्थिरता की स्थिति सन्तुलन कहलाती है। घर की सजावट में संतुलन का होना श्रेष्ठ माना जाता है। वस्तुओं में संतुलन के प्रभाव से सुख-शान्ति का आभास होता है। ‘गोल्डस्टोन‘ के अनुसार संतुलन वह आरामदायक प्रभाव है जो रंगों और शक्लों को केन्द्र के चारों ओर इस प्रकार रख कर प्राप्त किया जाता है जिससे केन्द्र के प्रत्येक ओर समान और आकर्षण बना रहे।
इसके अलावा घर की सजावट में लय का महत्वपूर्ण योगदान (स्थान) है। लय के बिना घर की सज्जा भद्दी व अधूरी दिखाई देती है। लय के अन्तर्गत रंग-रेखा और रूप का मिश्रण होता है। रसोईघर में यदि एक ही नाप और आकार के गिलास उल्टे रख दिये जायंे तो रेखा का आभास होता है तथा इन पर एक ही नाप व आकार की कटोरियां सजा दी जायें तो रसोई घर के बर्तनों में लय उत्पन्न हो जायेगी।
भोजन, वस्त्रा और उठने-बैठने से व्यक्ति के व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जाता है। इसी प्रकार घर की सजावट में भी भाव प्रदर्शन का महत्वपूर्ण गुण छिपा रहता है। इसके प्रदर्शन द्वारा घर के परिवार की रूचि, व्यवहार और भाव का अनुमान लगाया जाता है। घर की सजावट में भाव प्रदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। इस प्रकार इन सिद्धान्तों पर हम अपने घर की सजावट को एक नया और एक अलग रूप दे सकते हैं।
घर की सजावट में रंगों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। रंगों के मेल में हमारा मतलब यह नहीं है कि पीला-पीले से और नीला नीले से मेल खाता है। वास्तव में सत्य तो यह है कि एक हल्का रंग भी दूसरे चटक रंग के साथ प्रयोग करने से सुन्दर लगता है। दीवारों पर गहरे रंग की पुताई कभी नहीं करनी चाहिए। इससे कमरे का आकार छोटा एवं अंधेरा दिखाई देता है, इसलिए दीवारों पर हल्के रंग की पुताई ही करानी चाहिए।
दरी व कालीन का रंग बहुत हल्का नहीं होना चाहिए। हल्के रंग जल्दी गन्दे होते हैं। लैम्प व फूलदान आदि के रंग का चुनाव विचारपूर्वक करना चाहिए। फूलदान में प्राकृतिक व कृत्रिम फूलों को सजाने में भी रंगों का ध्यान रखना चाहिए।
फर्नीचर, पर्दे, चित्रा, खिलौने, पुष्प, मनोरंजन की वस्तुएं, पुस्तकें, दरी और कालीन, अल्पना, गिलाफ मेजपोश और पलंगपोश आदि वस्तुएं हमारे घर की सजावट में विशेष स्थान रखती हैं।
आजकल देशी व विदेशी शैली पर घर की सजावट की जाती है जिसमें विभिन्न कमरों की सजावट अलग-अलग ढंग से की जाती है। देशी शैली से बैठक सजाने के लिए यह ध्यान देना चाहिए कि बैठक की व्यवस्था में कम से कम आठ-दस व्यक्तियों के बैठने (की व्यवस्था) के लिए स्थान उपलब्ध हो। बैठक में यदि एक शीशे की अलमारी भी रखी हो तो उसमें किताबें सजाई जा सकते हैं। साइड टेबल पर डेकोरेशन पीस रखें
बैठक की दीवारों पर हाथ से बनी एक या दो सुन्दर पेन्टिग या और कोई तस्वीर लगानी चाहिए। कमरे के पर्दे, कालीन, कवर, दरी, पलंगपोश के रंगों में मेल होना चाहिए। कमरे में प्रवेश द्वार पर पायदान का प्रयोग करना चाहिए जिससे आने वाला अतिथि पैर पोंछ कर अन्दर आये और गन्दगी कमरे में प्रवेश न करे। बैठक के अतिरिक्त बेडरूम, बच्चों के कमरों का सज्जा का भी ध्यान रखें।
यहां पर सजावट के साथ एक बात और जुड़ी हुई है कि घर सुव्यवस्थित होना चाहिए, तभी घर की सजावट हो सकती है। सुव्यवस्था का तात्पर्य है कि घर की वस्तुओं को व्यवस्थित ढंग से रखना और सजावट का अर्थ है, व्यवस्थित चीजें क्रम में रखी हों जिससे वे सुन्दर व आकर्षक दिखाई दें। इस प्रकार यह बात तो स्पष्ट है कि सजावट करने से पूर्व घर को व्यवस्थित करना अनिवार्य है।
हमें यह सूत्रा नहीं भूलना चाहिए कि सत्यम् शिवम् सुन्दरम्। सत्य ही तो सुन्दर है, मनुष्य को मन, क्रम, वचन से पवित्रा रहना चाहिए। तभी हर चीज, हर वस्तु में सुन्दरता नजर आयेगी। महत्वाकांक्षाओं को सीमित रखते हुए हमें जीवन निर्वाह करना चाहिए, तभी हमें आत्मिक संतुष्टि मिल सकती है।