पहाड़ों के पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र पर दवाब बढ़ा रहा प्लास्टिक प्रदूषण
Focus News 9 March 2025 0
पहाड़ों की हवा-पानी (आबोहवा) शुद्ध व स्वच्छ मानी जाती रही है लेकिन आजकल पहाड़ों की आबो-हवा निरंतर बदल रही है। अब पहाड़ों में भी कूड़ा-करकट के ढ़ेर नजर आने लगे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आजकल पहाड़ों में बढ़ती जनसंख्या, विकास के बीच अधिकांश प्लास्टिक, पालीथीन की खाली थैलियां, विभिन्न रैपर, जैविक कचरा और कागज या कार्डबोर्ड , ख़ाली प्लास्टिक की बोतलें विशेष रूप से पगडण्डियों के किनारे, कार-पार्क, विभिन्न पार्किंग स्थलों के पास या विश्राम स्थलों पर नजर आने लगे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज अधिकांश प्लास्टिक और अन्य कचरा, हवा, हिमनदों के पिघलने और बारिश से बहकर, आख़िर में नदियों और महासागरों में गिरता है। यह विशेष रूप से इसलिए अधिक चिन्ताजनक है क्योंकि पर्वत श्रृँखलाएँ अपने हिमनदों, झीलों और नदियों के ज़रिये, आबादी विशेष को जल प्रदान करती है।
पहाड़ों में सबसे ज्यादा गंदगी प्लास्टिक रैपर्स, पालीथीन, खाली प्लास्टिक की बोतलों की है, क्यों कि पहाड़ी क्षेत्रों में अक्सर बहुत से लोग और पर्यटक विशेषकर गर्मियों में सैर-सपाटे व घूमने के उद्देश्य से आते हैं और जगह-जगह प्लास्टिक, पालीथीन की थैलियां (जैसा कि खाने-पीने के सामान इन थैलियों में भरकर लाया जाता है), पीने के पानी की व शराब आदि की खाली बोतलें व अन्य खाद्य सामग्री के रैपर्स इधर उधर खुले में अथवा किसी जल स्त्रोत यथा नदी आदि के किनारों पर,पहाड़ी ढलानों में फेंक देते हैं, जो पर्यावरण की दृष्टि में सबसे अधिक घातक है। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में बढ़ते प्लास्टिक के ढ़ेर न केवल दूषित वातावरण बल्कि बढ़ते तापमान के लिए भी जिम्मेदार हैं। इसके चलते पर्वतों से निकलने वाली अधिकांश नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कभी जो नदियाँ उफानों पर रहा करती थीं, वह आज सूख के सिमटने लगी हैं।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही लोगों में प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2023 में विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ रखी गई थी। पाठकों को बताता चलूं कि पिछले साल ही यानी कि वर्ष 2024 में एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से यह खबर आईं थीं कि दिल्ली की तरह ही उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में कचरे का एक बड़ा पहाड़ बन गया है। दरअसल, कुमाऊं का प्रवेशद्वार कहलाने वाले हल्द्वानी शहर के बाइपास पर स्थित पिछले साल (वर्ष 2024 में )ट्रंचिंग ग्राउंड में हर दिन 150 मीट्रिक टन कचरा डंप हो रहा था, लेकिन नगर निगम के पास निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं थी। वास्तव में, पहाड़ हों या मैदान आज के इस आधुनिक दौर में प्लास्टिक हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। खरीदारी से लेकर भोजन तक, हर जगह प्लास्टिक का उपयोग होता है। कहना चाहूंगा कि प्लास्टिक प्रदूषण आज के समय में सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। आज के समय में प्लास्टिक एक अत्यधिक उपयोगी औद्योगिक उत्पाद है जो खाद्य पैकेजिंग, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयों की पैकेजिंग और अन्य कई उत्पादों में धड़ल्ले से उपयोग किया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज हमारी लाइफ में हर जगह प्लास्टिक की घुसपैठ है। सिर्फ किचन की बात करें तो नमक, घी, तेल, आटा, दूध, चीनी, ब्रेड, बटर, जैम, सॉस, बिस्किट सब कुछ प्लास्टिक में ही पैक होता है।इसके अत्यधिक प्रयोग और निपटान के कारण पर्यावरण में प्लास्टिक कचरा जमा हो जाता है, जो विशेषकर मानवीय गतिविधियों के कारण हमारे जल स्रोतों और भूमि पर फैलता है। यह प्रदूषण प्राकृतिक संसाधनों के लिए बहुत ही खतरनाक है और जैव-विविधता को भी गंभीर नुकसान पहुँचाता है।
प्लास्टिक प्रदूषण का बढ़ता प्रभाव जहां एक ओर हमारे पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है, वहीं इससे हमारे इको- सिस्टम पर भी गहरा असर पड़ रहा है,जिसके कारण इसके तत्काल समाधान की आवश्यकता है। वास्तव में, प्लास्टिक एक नॉन-बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है और सैंकड़ों वर्षों तक पृथ्वी पर रहकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है।सूरज की रोशनी, हवा और तेज पानी की लहरों के कारण प्लास्टिक कचरा छोटे-छोटे कणों में बदल जाता है, जो हमारे वायुमंडल, जल स्रोतों और अन्य पर्यावरणीय प्रणालियों में रह जाते हैं। इन माइक्रोप्लास्टिक का आकार बहुत छोटा होता है, जिससे यह हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। वास्तव में माइक्रोप्लास्टिक जल स्रोतों से हमारे घरों तक पहुँचने वाले पेयजल प्रणालियों और हवा में भी प्रवेश करता है और मनुष्य को गंभीर स्वास्थ्य हानियां पहुंचाता है।
जब प्लास्टिक वस्तुएं जलाशयों, नदियों, समुद्रों और भूमि में इकट्ठा हो जाती हैं, तो उन्हें प्लास्टिक प्रदूषण कहा जाता है। प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग और इसका उचित निपटान न होना इस प्रदूषण का मुख्य कारण है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्लास्टिक बैग, बोतलें, पैकेजिंग और अन्य उत्पादों का बढ़ता हुआ उपयोग ही इस प्रदूषण का मुख्य कारण है क्योंकि प्लास्टिक सैकड़ों हजारों वर्षों तक भी विघटित नहीं होता, यह जमीन और जल स्रोतों में इकट्ठा होकर प्रदूषण का कारण बनता है।जल में प्लास्टिक प्रदूषण से जलजीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब प्लास्टिक कचरा नदियों, समुद्रों और झीलों में मिलता है तो यह जलमार्गों को प्रदूषित करता है। जलजीवों, मछलियों और अन्य जलीय प्राणियों के लिए यह बहुत खतरनाक हो सकता है क्योंकि वे प्लास्टिक के टुकड़ों को गलती से खा लेते हैं। खुले में पालीथीन, खाली रैपर्स फेंकने से जानवर भूखे होने के कारण इन्हें ग़लती से खा लेते हैं और कई बार तो इससे उनकी मृत्यु तक हो जाती है।
वास्तव में, आधुनिक दुनिया में, प्लास्टिक अपने लचीलेपन, स्थायित्व, ताकत और सामर्थ्य के कारण पृथ्वी पर सबसे बहुमुखी और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्री है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में,प्लास्टिक का उत्पादन 1950 में प्रति वर्ष 2.3 मिलियन टन से बढकर 2015 में 448 मिलियन टन तक पहुंच गया तथा 2021 में वैश्विक उत्पादन प्रति वर्ष 390.7 मिलियन टन तक पहुँच गया था। वर्ष 2021 से अब तक इसमें और अधिक बढ़ोत्तरी हुई होगी। पाठकों को बताता चलूं कि प्लास्टिक उत्पादन 2030 तक दोगुने से अधिक तथा 2050 तक लगभग तीन गुना हो जाने की उम्मीद है।यदि हम वर्तमान पथ पर चलते रहेंगे तो 2050 तक समुद्र में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक अधिक होगा । हालांकि, कुछ प्लास्टिक पुनर्चक्रणीय हैं, लेकिन अब तक उत्पादित प्लास्टिक का केवल 9% ही पुनर्चक्रित किया जा सका है, तथा शेष का अधिकांश भाग हमारे प्राकृतिक पर्यावरण में विद्यमान है। यह भी एक तथ्य है कि प्लास्टिक कचरे का 40% से अधिक हिस्सा पैकेजिंग से संबंधित है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि एकल-उपयोग प्लास्टिक जैसे प्लास्टिक बैग, स्ट्रॉ, कप, प्लेट और बर्तनों का उपयोग केवल एक बार, मात्र कुछ मिनटों के लिए किया जाता है, लेकिन ये ग्रह पर अनिश्चित काल तक रहेंगे क्योंकि प्लास्टिक का जैविक अपघटन नहीं होता है। प्लास्टिक अपने सम्पूर्ण जीवन चक्र के दौरान जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। आज वैश्विक स्तर पर, भारत प्लास्टिक के प्रमुख उपभोक्ताओं में से एक है, जो सालाना लगभग 9.4 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा करता है। सच तो यह है कि प्लास्टिक आज पर्यावरण के प्रमुख खतरनाक घटकों में से एक बन गया है और आर्कटिक से अंटार्कटिक तक और पहाड़ों से लेकर गहरे समुद्र तक दूर-दराज के इलाकों में भी पाया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज हिल स्टेशनों की अस्थायी आबादी में वृद्धि के साथ, पर्यटन और निर्माण गतिविधियाँ झीलों , नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र पर लगातार दबाव बढ़ा रही हैं। चार धाम यात्रा, कैलाश मानसरोवर यात्रा,बदरीनाथ, हेमकुंट साहिब और फूलों की घाटी यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में आने वाले पर्यटक प्लास्टिक व अन्य कचरे का ढ़ेर बढ़ा रहे हैं। अक्सर बाहरी क्षेत्रों से आए पर्यटक पर्यावरण की परवाह न करते हुए बोतल, डिब्बे, पाउच या सैशे, रैपर्स आदि को यत्र-तत्र कहीं भी फेंक देते हैं और प्रदूषण बढ़ता है।
हालांकि स्थानीय प्रशासन, पुलिस कचरे के निस्तारण के लिए समय-समय पर विभिन्न व्यवस्थाएं करते हैं, जन-जागरूकता अभियान, स्वच्छता अभियान आदि चलाते हैं लेकिन प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए हमें व्यक्तिगत स्तर पर कई कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, हमें प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा और इसके स्थान पर पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों का चयन करना होगा। प्लास्टिक के उत्पादों का पुन: उपयोग, री-सायकल और ठीक से निपटान करना आवश्यक है। सरकार को सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और लोगों में इस बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। इसके अलावा, वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को प्लास्टिक के विकास को नियंत्रित करने के लिए नए तरीके खोजने होंगे। आज प्लास्टिक के टिकाऊ विकल्प खोजे जाने की आवश्यकता है।
हमें खराब प्लास्टिक से बचना चाहिए तथा सिंगल यूजर प्लास्टिक को ना कहना चाहिए। हमें ऐसे उत्पाद खरीदने का प्रयास करना चाहिए जिनकी पैकेजिंग बहुत कम या न के बराबर हो। हमें अपनी किट में बर्तन और कपड़ा नैपकिन, बाहर ले जाने के लिए भोजन का कंटेनर, एक यात्रा कॉफी मग और पुन: प्रयोज्य पानी की बोतल, पुन: प्रयोज्य शॉपिंग टोट्स, पुन: प्रयोज्य उत्पाद बैग को शामिल करना चाहिए। वास्तव में जब हमें यह लगता है कि हम पैकेजिंग से बच नहीं सकते हैं, तो हमें यह चाहिए कि हम प्लास्टिक के ऐसे विकल्पों की तलाश करें, जिन्हें हम पुनः उपयोग में ला सकें और अनंत बार पुनर्चक्रित कर सकें।
प्लास्टिक का उपयोग कम करना जीवनशैली में बदलाव है और यह हमेशा आसान नहीं होगा, इसलिए हमें यह चाहिए कि हम ऐसी आदतों को विकसित करें जिससे हमें प्लास्टिक की जरूरत ही नहीं पड़े। प्लास्टिक का उपयोग करने से पहले हम हमारे स्वास्थ्य, हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी के स्वास्थ्य के बारे में विचार करें। तभी हम इससे बच पायेंगे।