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अधिकतर बीमारियां अधिक एवं गलत खाने के कारण होती हैं। व्यक्ति जीभ एवं स्वाद के वशीभूत हो जाता है और पसंदीदा वस्तु देखकर उस पर टूट पड़ता है। मनचाही चीज को सामने पाकर व्यक्ति बेकाबू हो जाता है। इसकी अधिकता परेशानी का सबब बनती है जबकि धीमी गति से चबाचबा कर कम खाने से काम चल जाता है। तब भी वही स्वाद, तृप्ति एवं संतुष्टि मिलती है।
कम खाने वाला व्यक्ति कम बीमार पड़ता है जिससे उसकी आयु बढ़ती है। ऐसा कर बुढ़ापे के लक्षणों को टाला जा सकता है। व्यक्ति चालीस प्रतिशत तक कम खाकर काम चला सकता है। इससे व्यक्ति का जीवन बीस से तीस वर्ष तक बढ़ सकता है। वैसे चालीस वर्ष के बाद सभी व्यक्तियों को भोजन की मात्रा में धीरे-धीरे कमी करते जाना चाहिए। इस तरह कम भोजन लेने से शरीर को परेशानी नहीं होती है। भले ही भोजन की मात्रा कम हो किंतु वह पोषक तत्वों से परिपूर्ण हो।
अधिक फ्लोराइड से दांतों को नुकसान
भारत के अनेक भागों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा पाई जाती है। यह गांवों में ही नहीं कुछ जगह शहरों के पानी में भी स्वतः मौजूद है। फ्लोराइड युक्त पानी से दांतों की चमक एवं मजबूती कम हो जाती है इससे दांतों पर पीलापन नजर आता है। इससे मुख कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। खारे पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होती है।
जल में घुली अशुद्धियों के कारण दांत गलने लगते हैं एवं उनकी जड़ें खोखली हो जाती हैं। दांत न केवल मुख को शोभा देते हैं अपितु सेहत का भी इससे गहरा संबंध हाता है। गंदे दांतों के कारण कई बीमारियां होती हैं। इनमें मुख कैंसर जैसी बीमारी भी है। फ्लोराइड के कारण दांत पीले पड़ जाते हैं जिसे घिसवाकर दांत को चमकाने से दांत रूग्ण एवं कमजोर हो जाते हैं। कमजोर दांत कीड़ों को बसेरा बनाने का मौका देते हैं। अतएव फ्लोराइड युक्त पानी एवं टूथपेस्ट के प्रयोग से बचें। रेशेदार फल सब्जी अनाज खाएं।
सभी मौसमों में तरल पदार्थ उपयोगी
मौसम जैसा एवं जो भी हो, सभी मौसम में शरीर में पर्याप्त मात्रा में पानी मौजूद होना चाहिए। शरीर को अपने कार्य एवं क्रियाओं को पूरा करने के लिए पानी की जरूरत पड़ती है जिसकी पूर्ति वह पानी एवं खाद्य तरल पदार्थों के माध्यम से करता है। गर्म मौसम में शरीर में पानी की खपत बढ़ जाती है। शरीर का ताप इसी पानी से नियंत्रित होता है।
नमक, शक्कर, तेल, काफी, चाय, कोल्डड्रिंक्स का ज्यादा सेवन करने पर अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। इन के स्थान पर फल खाएं, नारियल पानी, नींबू पानी, दाल पानी, रसीले फल व उसका जूस पिएं। ग्लूकोज पानी एवं इलेक्ट्राल पानी पिएं किंतु तली भुनी चीजों, चाय, काफी कोल्डड्रिंक्स की अधिकता से बचें। ये शरीर में पानी की खपत को बढ़ाते हैं। बुखार, डायरिया, गर्मी में ऐसी चीजें शरीर में पानी की कमी कर विषम स्थिति खड़ी कर देती हैं। शरीर में तब पानी की कमी प्रभाव विभिन्न अंगों पर पड़ता है।
मां बाप की प्रेरणा से प्रभावित होते हैं बच्चे
सकारात्मक प्रेरणा का सभी पर बेहतर प्रभाव पड़ता है जबकि नकारात्मक बातों का विपरीत प्रभाव पड़ता है और निराशाजनक परिणाम मिलते हैं। बच्चों पर मां बाप की प्रेरणा का सबसे बेहतर परिणाम मिलता है जिससे प्रेरित होकर बच्चे अपनी बेहतर एवं श्रेष्ठ क्षमता का प्रदर्शन करते हैं। वहीं मां बाप जितनी सक्रिय एवं तत्परता दिखाएंगे, उससे प्रेरित बच्चे भी वैसे ही कदम बढ़ाते
हैं।
बच्चों को आलस एवं सुस्ती से बचाने के लिये पहले मां बाप को सक्रिय होना चाहिए एवं हर काम में तत्परता एवं तेजी दिखानी चाहिए। इससे प्रभावित बच्चे भी वैसी सक्रियता दिखाने लगते हैं। मां बाप बच्चों के सामने उदाहरण पेश करके कोई काम करेंगे तो बच्चे भी उनसे प्रेरित एवं प्रभावित होकर वैसा ही काम एवं प्रदर्शन करने लगेंगे, जैसे मां बाप तेज चलेंगे तो बच्चा भी तेज चलने लगेगा।
हृदय रोग का मुख्य कारण धूम्रपान एवं आलस्य
भारत में हृदयरोगों से सर्वाधिक मौतें होती हैं। इसने महामारी जैसा रूप ले लिया है। आधुनिक जीवन शैली के चलते धूम्रपान एवं आलस्य ने अपनी जगह बना ली है। ये सभी मिलकर हृदय रोग एवं उसके खतरे को बढ़ा रहे हैं। इससे रक्त में बुरे कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ती है। रक्त धमनियां संकरी हो जाती हैं और उनमें लचीलेपन की बजाय कड़ापन आ जाता है। इन्हीं सब कारणों से हृदयरोगों का खतरा बढ़ जाता है।
टमाटर मस्तिष्क आघात से बचाता है
टमाटर पहले मौसमी सब्जी के रूप में जाना जाता था किंतु अब यह विकसित होकर बारह मासी मिल जाते हैं। यह सब्जी, सलाद, सूप, जूस, चटनी, सास आदि के रूप में उपयोग किया जाता है। कच्चा एवं पका टमाटर दोनों लाभदायी हैं। टमाटर को काटकर सलाद के रूप में खाने से बहुत लाभ मिलता है।
इसमें जलांश अधिक होने के कारण यह त्वचा में चमक लाता है। यह कब्ज अपच एवं अम्लता की शिकायत दूर करता है। यह कोलेस्ट्राल कम करता है। मस्तिष्क आघात से बचाता है और रोगाणु रोधक बनकर संक्रमण रोकता है। मसूड़ों को मजबूत बनाता है। यह रक्त शोधक है और जोड़ों के दर्द को दूर करता है।
दही बीमारी दूर भगाए
भारतीय परंपरा एवं खानपान में विविध अवसरों पर दही का उपयोग किया जाता है। मक्खन, दही का टीका लगाया जाता है। पंचगव्य, पंचामृत, प्रसाद बनाया जाता है। दही चखाकर शुभ काम के लिए रवाना किया जाता है। दही से बनी सब्जी, दही, बड़ा, लस्सी, मठा आदि से सभी परिचित हैं। इससे खमीर उठाकर इडली, दोसा, उत्तपम, ढोकला आदि बनाकर खाया जाता है। दही को प्रोबायोटिक्स कहा जाता है।
अब वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता भी इसके कायल हो गए हैं। दही में विद्यमान वैक्टीरिया हमारे लिए मित्रा हैं। ये पेट की सभी बीमारियों को दूर करते हैं। इतना ही नहीं, ये हमें बी.पी., हृदय रोग आदि के खतरों से बचाते हैं। डायबिटिज, फ्लू, एलर्जी आदि बीमारियों को दूर करते हैं। ये पाचन तंत्रा सही करते हैं व वजन को संतुलित रखते हैं। पसीने की दुर्गंध, मुंह की दुर्गंध, सर्दी जुकाम आदि में भी दही का उपयोग अच्छा रहता है। दही एवं उससे बनी चीजों को अपने आहार में शामिल करें किंतु सीमित मात्रा में खाएं।
हर घंटे के बाद ब्रेक लें
टेबल चेयर पर काम करने वालों की परेशानियां बढ़ गई हैं। कुर्सी पर घंटों बैठने एवं काम करने वाले बढ़ गए हैं। घंटों इस तरह बैठना बीमारी को निमंत्राण देना है। इससे बचने के लिए हर घंटे के बाद 5 मिनट का ब्रेक लें। 5 मिनट खाली पैर टहलें। इससे तनाव दूर होगा, शारीरिक क्षमता एवं क्रियाशीलता बढ़ेगी व तरोताजा महसूस करेंगे।