एक जिम्मेदारी भरा दायित्व है मां

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प्रायः हर मां कभी न कभी अपनी तरूणावस्था में ही अपने मातृत्व संबंधी भावी जीवन का स्वरूप तैयार कर लेती है लेकिन ममता में अंधी होकर कुछ माताएं अपने बच्चों में अच्छी आदतें नहीं डाल पाती और बच्चा इससे दूसरों के लिए परेशानी का कारण बन जाता है।
आवश्यकता इस बात की है कि मां पहले से ही कुछ ऐसे ठोस निर्णय ले ले ताकि उसे भविष्य में अपने बच्चों के पालन पोषण के संबंध में कोई आत्मग्लानि या परेशानियों का सामना  न करना पड़े।
यह सच है कि बच्चों के पालन पोषण के विषय में अनेक धारणायें प्रचलित हैं जिनमें कुछ सही हैं और कुछ गलत भी। जरूरत है निर्णय करने की कि क्या गलत है और क्या सही।
चुसनी के प्रयोग के संबंध में भी अनेक धारणायें प्रचलित हैं। यह वह क्रिया है जो बच्चों में जन्मजात होती है लेकिन कुछ बच्चे दूध पीने के बाद भी अपनी इस क्रिया को जारी रखते हैं व इसके न होने पर अंगूठे को ही चूसना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति में मां अपने बच्चों को चुसनी या डमी थोड़े समय के लिये दे तो नुकसान नहीं होता। हां, इसमें शक्कर या चीनी लगाकर बच्चों को देना हानिकारक
है।
दूसरी ओर बोतल के प्रयोग को लेकर भी अनेक गलत धारणाएं प्रचलित हैं जैसे बोतल के प्रयोग से बच्चों का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पाता लेकिन यह बात सच नहीं। मां का दूध बच्चों की सम्पूर्ण पौष्टिकता व आवश्यकता को पूर्ण करता है किन्तु यदि किसी कारण से मां बच्चों को अपना दूध नहीं दे पाती तो उन्हें इन गलत धारणाओं में पड़ने की जरूरत नहीं। बाजार में कई कम्पनियों के दूध उपलब्ध हैं जिनमें बच्चों की आवश्यकता और पौष्टिकता का पूरा ध्यान रखा गया है जिसे आप डॉक्टर की सलाह पर समय-समय पर अपने शिशु को दे सकती हैं।
जब बच्चे बड़े होने लगें तो उन्हें ठोस व पौष्टिक आहार देना नितान्त आवश्यक है। ऐसी स्थिति में आप उनकी पसन्द नापसंद का विशेष ध्यान रख कर ही उनका आहार तैयार करें तो बेहतर होगा।
चाकलेट और मिठाई में विशेष कमजोरी हर बच्चे की होती है जो उनके लिये अधिक मात्रा में खाने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। ऐसी स्थिति में आप जबरन उन्हें रोकें।
इन चीजों को आप अपने नियन्त्राण में रखें और समय-समय पर उन्हें उसके चाकलेट व मिठाई के नुकसानदायक पहलू को समझाते रहें। ऐसी स्थिति में बच्चे उससे धीरे-धीरे कटना आरंभ कर देंगे।
आजकल माएं अधिकतर अपने बच्चों की बुरी आदतों से परेशान रहती हैं। वे आदतें जिनमें बच्चे अत्यंत खुश  हों, वे कैसे छोड़ सकते हैं मसलन-खेलना, टी.वी. व कामिक्स पढ़ना। इन आदतों से आप चिढ़ें नहीं बल्कि इनमें भी अपने लाडले बच्चे की मार्गदर्शक बनें।
बच्चों को लालच देकर काम करवाना एक बुरी आदत है जिससे उनमें प्रत्येक कार्य के पीछे कोई चीज पाने की बुरी आदत पड़ जाती है जो आगे चलकर उनके व्यक्तित्व के विकास में आड़े आ सकती है। आपको चाहिए कि ऐसी आदत उनमें न डालें। यदि वे कोई कार्य करें तो आप उनकी प्रशंसा करें। इससे उनमें कार्य करने के प्रति उत्साह उत्पन्न होगा एवं दूसरों की सहायता व माता-पिता के प्रति कर्तव्य की भावना का विकास होगा।
अगर आपका बच्चा खेलता है तो यह देखें कि उसे क्या पसंद है और उसे उस क्षेत्रा में भी बढ़ने का मौका दें। शायद वह उसमें ही ख्याति अर्जित करे। इसी तरह यदि वह टी.वी. या कामिक्स का शौक रखता है तो उसे यथा संभव ज्ञान वर्द्धक पुस्तकें या प्रोग्राम दिखायें तो ये साधन उसके अच्छे व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक साबित हो सकते हैं।
सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो मां बाप पर होती है। एक स्वस्थ वातावरण का घर में होना आवश्यक है। आप लोग भी अपने लाडले को ऐसा माहौल दें जिसमें सुरक्षा व शान्ति का वातावरण हो। आप लोग बच्चों के सामने लड़ाई व विवाद न करें तो अच्छा रहेगा क्योंकि एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व जिसके निर्माण में आप अपना बुढ़ापा सुरक्षित देखते हैं, वह सिर्फ मां या पिता की देन नहीं है बल्कि उन दोनों के सम्मिलित प्यार का प्रतिफल है।

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