मादक पदार्थों के सेवन से बर्बाद होता युवा वर्ग

पश्चिमी संस्कृति वाले देशों का अनुकरण करते हुए आज भारतीय युवा पीढ़ी में बढ़ती मादक पदार्थों के सेवन की लत एक गंभीर समस्या का रूप धारण करती जा रही है। प्रकृति प्रदत्त मादक पदार्थों के सेवन की संस्कृति बहुत प्राचीन रही है। प्राचीन समय में लोग इन पदार्थों का इसलिए सेवन करते थे कि उन्हें आध्यात्मिक चिंतन तथा मनन के लिए उत्प्रेरक माना जाता था।


साधारणतया नशीली या मादक वस्तुएं वे होती हैं जिनके सेवन से उनकी आदत पड़ जाती है जैसे तंबाकू, कॉफी, शराब आदि। शुरू की आदत को लत या व्यसन में परिवर्तित हो जाती है। नशीले पदार्थ जिनके सेवन से लोग इनके ऊपर पूरी तरह से आधारित हो जाते हैं और जिन्हें इन पदार्थों का दास कहा जा सकता है। इसमें अफीम कोकिन तथा स्मैक का नाम सरलता से लिए जा सकते हैं।


युवा पीढ़ी में इन दोनों पदार्थों का सेवन करने के मामले बहुत तेजी से प्रकाश में आ रहे हैं। इनकी मुख्य वजह माता-पिता में कटुता, झगड़े, बच्चों पर ध्यान न देना आदि है। माता-पिता में कटुता और झगड़ों का असर बच्चों पर भी पड़ता है। घर में स्नेह और सम्मान न मिलने पर युवा बाहर की ओर देखता है। घर के वातावरण से मुक्ति के लिए वह दोस्तों के साथ रहना ज्यादा अच्छा मानता है। यदि ऐसे में नशेबाज मित्रों की संगत हो जाए तो नशे की लत पडऩा स्वाभाविक है। इसके अलावा आज के युवा वर्ग द्वारा इन नशीले पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारण है- पाठ्यक्रमों की नीरसता, मनीशी अध्ययन शैली, मौजूदा सामाजिक परिवेश, सिनेमा का प्रभाव, अच्छी आमदनी, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि। शिक्षित कहा जाने वाला वर्ग इसे बौद्धिक व्यक्तित्व में निखार, आंतरिक शक्तियों में वृद्धि, स्मरण शक्ति बढ़ाने तथा अधिक परिश्रम करने के नाम पर अंगीकार कर रहा है। इन नशीली दवाओं के चपेट में युवक ही नहीं युवतियां भी तेजी से आती जा रही हैं।  मनोवैज्ञानिकों ने मादक पदार्थों के सेवन के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि इन मादक पदार्थों का सेवन करने की आदत युवकों में निम्न कारणों से बढ़ती है-


पहला कारण इन मादक पदार्थों की सरलता से उपलब्धता है। नशीले पदार्थों को कुछ खास जगहों से सरलता से खरीदा जा सकता है। यद्यपि विश्व के लगभग सभी देशों में ऐसे पदार्थों को लाने ले जाने तथा इनके खुले उपयोग या व्यापार पर प्रतिबंध है फिर भी हर देश में इस तरह के मादक पदार्थों की आपूर्ति अवैध रूपसे जारी है। दूसरा कारण इन मादक पदार्थों का सेवन विश्व के कुछ देशों की संस्कृति में सामाजिक रूप से स्वीकृत है। ऐसे देशों में इनका प्रयोग तेजी से बढ़ता है और बहुत से लोग इसके सेवन के आदी हो जाते हैं। अति मद्यपान की समस्या खासकर उन देशों में फैली है जहां शराब पीना बुरा नहीं समझा जाता। भारत में भांग, गांजा तथा चरस का प्रसार इसलिए बढ़ा है क्योंकि इनके प्रयोग की सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक स्वीकृति सदियों से चलती आयी है। इनके अलावा इन्हें चिंतन तथा मनन का उत्प्रेरक पदार्थ भी माना गया है।


तीसरा कारण- मनोचिकित्सीय अध्ययनों से पता चलता है कि मादक पदार्थों का सेवन अधिकतर वे लोग करते हैं जो मनोरोगी समझे जा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति वे होते हैं जो स्वयं को अयोग्य, अकुशल और कमजोर समझते हैं। उनका संवेगात्मक विकास अधूरा होता है। इसके अलावा वे अति संवेदनशील होते हैं। मादक पदार्थों का सेवन करने के बाद उन्हें लगता है कि वे निराशा को जीत रहे हैं तथा बलवान व आत्मनिर्भर बन रहे हैं। मूड परिवर्तन तथा सुखानुभूति की कामना भी इन मादक पदार्थों के सेवन का महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है। सुखानुभूति की कामना करना मानव की एक सहज व स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इस कामना को प्राप्त करने के लिए वे मादक द्रव्यों को अपनाते हैं और इसी क्रम में वे उनके कुछ दिनों बाद दास बन जाते हैं। उपरोक्त सभी कारणों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि कुछ लोग मादक पदार्थों का सेवन फैशन के रूप में, कुछ समस्या से मुक्ति पाने के लिए तथा कुछ लोग मन की शांति के लिए करते हैं।


ऐसे लोगों का मादक पदार्थ अपनाने का उनका चाहे कुछ भी मकसद हो वह तो पूरा होगा ही नहीं लेकिन वे इसके आदी जरूर हो जाएंगे। एक बार जो मादक पदाथों की गिरफ्त में आ जाता है वह फिर इस गिरफ्त से मुश्किल से ही निकल पाता है। नशे की आदत इतनी जबरदस्त होती है कि नशे का आदी हो जाने पर आदमी नशीले पदार्थों के पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।


मादक पदार्थों के सेवन का मानव मस्तिष्क पर घातक प्रभाव पड़ता है। सभी नशीले पदार्थों का मस्तिष्क पर असर जरूर पड़ता है। यह असर अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। चिकित्सा विज्ञान का मत है कि चाहे जो मादक पदार्थ हो उनका नियमित सेवन करने के आदी लोग धीरे-धीरे अनुपयोगी एवं अनुत्पादक बोझ बनकर समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं।


युवाओं में दिन-प्रतिदिन बढ़ रही नशाखोरी की प्रवृत्ति हम सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय है। देश के इन कर्णधारों को पथभ्रष्ट होने से बचाना होगा, सरकार का यह नैतिक कत्र्तव्य भी है। अगर कोई राष्ट्र ऐसा नहीं कर पाता तो उसे भारी क्षति उठानी पड़ सकती है। सरकार ने इस पर नियंत्रण के लिए यदि प्रभावी कदम नहीं उठाये तो आने वाले दिनों में देश के युवा, युवा नहीं बल्कि जिंदा लाश होंगे। नशाखोरी की इस समस्या से हमारा देश भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई अन्य बड़े देश भी पीडि़त हैं।