आवश्यक है मनुष्य का क्षमाशील होना

मनुष्य का क्षमाशील होना अति आवश्यक है। कोई कुछ भी कहे या अहित कर दे तो भी उसके कृत्यों को अपने दिल से लगाकर नहीं बैठ जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से पिष्टपेषण करते रहने से अपने मन में उस व्यक्ति के लिए नफरत की भावना बढ़ने लगती है। उसका बिगाड़ तो समय पर होगा किन्तु अपना मन कलुषित हो जाएगा और उसमें ईर्ष्या-क्रोध आदि की अधिकता हो जाती है।

 

प्रतिकार करने से किसी का भला नहीं होता। किसी को माफ कर देने से बड़ा और कोई गुण नहीं होता। जितने भी महापुरुष इस भारतभूमि पर हुए हैं उन सबने इसे अस्त्रा के रूप में अपनाया। तभी उन सबको हम याद करते हैं।


यह भी सच है कि दूसरों को क्षमा करने वालों को लोग बहुधा कायर समझ लेते हैं। यह क्षमा दूसरों के हृदयों में अपना स्थान बनाने का ब्रह्मास्त्रा है जिसका सन्धान करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। यह क्षमा रूपी गुण सज्जनों का अमूल्य आभूषण होता है।
एक राजा के जीवन की एक घटना की चर्चा करते हैं। उनकी एक आँख नहीं थी। एक बार वे अपने सिपाहियों के साथ शहर की व्यवस्था देखने के लिए भ्रमण कर रहे थे। रास्ते में एक बाग में थोड़ी देर विश्राम करने के लिए रुके।


तभी एक पत्थर आकर उन्हें लगा। सिपाहियों को बहुत क्रोध आ गया और पत्थर मारने वाले बालक को पकड़कर राजा के सामने ले आए। राजा ने कड़ककर उससे पत्थर मारने का कारण पूछा। उस बालक ने बड़ी निडरता से उत्तर दिया कि अपने फल तोड़ने के लिए वृक्ष पर पत्थर मारा था। उसकी कोई गलती नहीं है कि वह पत्थर राजा को लग गया।


बालक के इस निर्भीक उत्तर को सुनकर राजा ने सिपाहियों को उस बालक को पुरस्कार देने का आदेश दिया। वे सभी सिपाही राजा के इस निर्णय को सुनकर हैरान हो गए।


तब राजा ने उनसे कहा कि वृक्ष को पत्थर मारो तो वह फल देता हैं और मैं राजा होकर यानी इन्सान होकर भी इस बालक को पुरस्कार नहीं दे सकता। समर्थ होकर भी क्या मैं इतना गया गुजरा हूँ कि फल पाने की आस से पेड़ पर पत्थर मारने वाले को वह फल देता है और मैं इस बालक को निराश करूँ।


ऐसी होती हैं महान् लोगों की बातें जिन्हें युगों तक याद किया जाता है। इसीलिए कहा है कि क्षमा से बढ़कर कोई अस्त्रा नहीं होता। सामने वाला व्यक्ति बेमोल अपना बन जाता है। कोई कुछ भी कहता रहे लेकिन दूसरों को क्षमा कर देने से अपना मन कलुषित नहीं होता और हृदय सदा प्रसन्न रहता है।


कुछ लोगों का मानना है कि दुर्बल व्यक्ति की क्षमा कोई मायने नहीं रखती। वह क्षमा नहीं करेगा तो क्या करेगा? इसके लिए वे कहते हैं कि क्षमा उसे सुशोभित करती है जिसके पास दूसरे को दण्ड देने का सामर्थ्य हो। मेरे विचार से यह कहना अनुचित है क्योंकि क्षमा करने का गुण उसी में होगा जिसमें आत्मिक व मानसिक बल होगा।


शारीरिक दुर्बलता की बात करना बेमायने हो जाती है। यदि शरीर से व्यक्ति दुबला-पतला हो किन्तु उसमें आत्मिक बल हो तो वह संसार की किसी शक्ति से नहीं डरता। सबका डटकर मुकाबला करता है व हर चुनौती से भिड़ने का सामर्थ्य रखता है। शरीर से कमजोर होने पर महात्मा गान्धी की तरह व्यक्ति अपने व्यवहार से सिद्ध कर सकता है कि वह अच्छे अच्छों की हवा टाइट करके उन्हें उखाड़कर फैंक सकता है।


क्षमा को अपनाने वाला व्यक्ति हमेशा प्रथम पंक्ति में रहता है। ऐसे सज्जन की चाहे कोई बुराई कर ले परन्तु उसका यह एक गुण सब पर भारी पड़ता है। ईश्वर को भी विनयी और क्षमाशील लोग पसन्द आते हैं।