
हाल ही में यूरोपीय केंद्र द्वारा क्रियान्वित कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (सी3एस) ने जलवायु परिवर्तन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसके अनुसार जनवरी 2025 वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहा है, और यह स्थिति तब आई है जब ‘ला-नीना’ उभर रहा है। वास्तव में,यूरोपीय जलवायु एजेंसी की रिपोर्ट का बीते महीने यानी कि जनवरी को अब तक का सबसे गर्म महीना बताना व फरवरी में अप्रैल जैसा तापमान महसूस करना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि आज जलवायु परिवर्तन सिर्फ प्राकृतिक चक्र का हिस्सा नहीं रहा है, अपितु आज यह एक बड़ा मानवीय संकट बन चुका है, जिसके जिम्मेदार कमोबेश हम स्वयं ही हैं। गौरतलब है कि कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (सी3एस) द्वारा पुष्टि की गई है कि वर्ष 2024 वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष होगा, और पहला कैलेंडर वर्ष होगा जब औसत वैश्विक तापमान अपने पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5°C अधिक होगा। पाठकों को बताता चलूं कि सी3एस नियमित रूप से वैश्विक सतही वायु और समुद्री तापमान, समुद्री बर्फ कवर और हाइड्रोलॉजिकल चर में देखे गए परिवर्तनों पर रिपोर्ट करते हुए मासिक जलवायु बुलेटिन प्रकाशित करता है। बहरहाल, यह बहुत ही संवेदनशील है कि 22 जुलाई 2024 को वैश्विक औसत तापमान 17.16 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच गया, जो ऐतिहासिक रूप से पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म दिन था। वास्तव में, कोपरनिकस रिपोर्ट की यह घोषणा जलवायु परिवर्तन के धरती और पर्यावरण पर लगातार गहराते प्रभावों की चेतावनी देती है।कोपरनिकस की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में अत्यधिक गर्मी, बाढ़, सूखा और जंगल की आग की घटनाएं बढ़ीं। उदाहरण के लिए, कनाडा और बोलीविया में जंगल की आग(दावानल)ने रिकॉर्ड तोड़ दिया। वहीं, उच्च तापमान और आर्द्रता ने गंभीर स्तर की गर्मी की स्थिति को बढ़ावा दिया।रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2024 में वैश्विक स्तर पर 44 फीसदी क्षेत्र “गंभीर” से “अत्यधिक” गर्मी तनाव वाली स्थिति में रहा।2024 की गर्मी को बढ़ाने में अल नीनो की घटना ने भी योगदान दिया। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अल नीनो एवं ला नीना जटिल मौसम पैटर्न हैं, जो विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान में भिन्नता के कारण घटित होते हैं। ये अल नीनो-दक्षिणी दोलन चक्र की विपरीत अवस्थाएँ होती हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि अल नीनो और ला नीना की घटनाएँ आमतौर पर 9 से 12 महीने तक चलती हैं, लेकिन कुछ लंबे समय तक चलने वाली घटनाएँ वर्षों तक बनी रह सकती हैं। वास्तव में ला नीना, अल नीनो-दक्षिणी दोलन यानी कि ईएनएसओ की ‘शीत अवस्था’ होती है, यह पैटर्न पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के असामान्य शीतलन को दर्शाता है। अल नीनो की घटना जो कि आमतौर पर एक वर्ष से अधिक समय तक नहीं रहती है, के विपरीत ला नीना की घटनाएँ एक वर्ष से तीन वर्ष तक बनी रह सकती हैं।दोनों घटनाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों के दौरान चरम पर होती हैं। जनवरी माह के गर्म होने की स्थिति तब है, जब प्रशांत महासागर में ‘ला-नीना’ की स्थितियां विकसित हो रही हैं, जो आमतौर पर वैश्विक तापमान को कम करने का काम करती हैं। जारी रिपोर्ट यह भी बताती है कि जनवरी, 2025 का औसत वैश्विक तापमान औद्योगिक क्रांति के पहले के स्तर से 1.7 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है, जो पेरिस समझौते में तय 1.5 डिग्री की सीमा को पार करने का एक और खतरनाक संकेत है। पाठकों को जानकारी होगी की मार्च व अप्रैल के महीने वसंत ऋतु के माने जाते हैं, लेकिन अब फरवरी में ही अप्रैल वाले तापमान की स्थितियां पैदा हुई हैं, यह दर्शाता है कि जलवायु में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। यूं यकायक मौसम में इस कदर बदलाव होना हर किसी को चिंतित करता है। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि यूरोप में 2024 का औसत तापमान 10.69 डिग्री सेंटीग्रेड रहा, जो 1991-2020 के औसत से 1.47 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक था। यह यूरोप के लिए अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। एक जानकारी के अनुसार 19वीं शताब्दी से पहले का समय जब औद्योगिकीकरण से पहले पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 13.7 डिग्री सेंटीग्रेड से 14 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच था। कोपरनक्स रिपोर्ट में अहम् तथ्यों की यदि हम यहां बात करें तो 2024 का औसत वैश्विक तापमान 1850-1900 के पूर्व – औद्योगिक औसत से 1.6 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक रहा।यह पहला कैलेंडर वर्ष है जब पूरे वर्ष का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड के स्तर को पार कर गया। वर्ष 2024 में जनवरी से जून तक सभी महीने अब तक के सबसे गर्म रहे, और शेष महीनों में भी अधिकांश ने रिकॉर्ड बनाए। 22 जुलाई 2024 को वैश्विक औसत तापमान 17.16 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच गया, जो अब तक का सबसे गर्म दिन था। वर्ष 2024 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 422 भाग प्रति मिलियन और मीथेन का स्तर 1897 भाग प्रति अरब तक पहुंच गया। अतः आज जरूरत इस बात की है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए त्वरित और निर्णायक कदम उठाए जाएं। कहना ग़लत नहीं होगा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ग्लेशियरों और समुद्री बर्फ पर भी पड़ा है। जानकारी के अनुसार अंटार्कटिका और आर्कटिक में समुद्री बर्फ का स्तर रिकॉर्ड निम्न पर रहा। अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ का विस्तार नवंबर 2024 में सबसे कम स्तर पर दर्ज किया गया। इतना ही नहीं,उत्तरी अटलांटिक, भारतीय महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्री सतह का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर रहा। औसत समुद्री सतह का तापमान 20.87°C तक पहुंचा। वास्तव में आज विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। प्रदूषण के बढ़ने के पीछे जिम्मेदार कहीं न कहीं मनुष्य ही है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज अंधाधुंध वनों की कटाई, बढ़ता शहरीकरण, औधोगिकीकरण, बढ़ता प्रदूषण और बढ़ता हुआ कार्बन उत्सर्जन हमारे वातावरण को तेजी से गर्म बना रहे हैं। सच तो यह है कि हिमनदों का पिघलना, समुद्र स्तर में लगातार वृद्धि और चरम मौसमी घटनाएं कहीं न कहीं हमें यह चेतावनी दे रही है कि जलवायु परिवर्तन दूरगामी समस्या नहीं, बल्कि आज हमारे वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। आज जलवायु परिवर्तन के कारण हमारी पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक असर पड़ रहा है। हमारा ऋतुचक्र भी आज संतुलित नहीं रहा है। जनवरी में ही गर्मी महसूस की जा रही है। वसंत समय से पहले आ रहा है। ऐसा नहीं है कि बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है। हमारे पास जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूलन के लिए विज्ञान और नवाचार का उपयोग करने का अवसर है। कहना ग़लत नहीं होगा कि जलवायु परिवर्तन को हमें आज गंभीरता से लेने की जरूरत है। हम विकास पर जोर देते हैं, लेकिन हमें अपने पर्यावरण, अपनी पारिस्थितिकी तंत्र का भी पर्याप्त ध्यान रखना होगा क्यों कि पर्यावरण संरक्षण से ही मानव और जीव संरक्षित हैं। हमें यह चाहिए कि हम ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करें और वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश लगाने की दिशा में काम करें। हरित क्षेत्रों का संरक्षण आज की महत्ती आवश्यकता है। चरागाह भूमियों को संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है। हम हमारे जल स्त्रोतों का संवर्धन और संरक्षण करें। कहना ग़लत नहीं होगा कि सतत विकास की नीतियां अपनाकर ही हम हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं। हमें प्रदूषण को कम करने के लिए प्रभावी रणनीतियों को लागू करना होगा। इतना ही नहीं, सरकार को जलवायु नीतियों को भी प्रभावी व सशक्त बनाना होगा। आम आदमी, स्वयं सेवी संस्थाओं को भी पर्यावरण के लिए सामूहिक जिम्मेदारी निभानी होगी। यदि हम पर्यावरण के प्रति समय रहते नहीं चेते तो हम हमारे लिए तो समस्याओं को खड़ा करेंगे ही, आने वाली पीढ़ियों के समक्ष भी बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।