श्रीमद्भगवद्गीता -भारतीय ज्ञान परंपरा और सनातन धर्म का आमुख हैं।

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डॉ. बालमुकुंद पांडेय

 श्रीमद्भगवद्गीता मानवीय समाज व ब्रह्मांडीय चेतना को समझने में हमें  मौलिक दृष्टि प्रदान  करती हैं ।भारत सांस्कृतिक उत्सवों का देश हैं जो अपने सांस्कृतिक सौंदर्य से मानवीय समाज को उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक योजित करता है। भारत के करोड़ों ज्ञान पिपासु श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय ज्ञान परंपरा का अनूठा ग्रंथ है। यह सनातन धर्म और शील की चर्चा करता है।  यह ज्ञानराशि भारतीय ज्ञान परंपरा की संवाहिका और सनातन धर्म को उन्नयित करने वाली  है। हजारों वर्षों से यह  मानवीय समुदाय  का मार्गदर्शन कर रही है ।यह  मानवीय समुदाय को प्रेम, भाईचारा, न्यायप्रियता , सत्यनिष्ठ होकर कार्य करने और शांतिपूर्ण माहौल में ‘ सच्चिदानंद ‘ की प्राप्ति का पाठ पढ़ाती है।

 

                                             श्रीमद्भगवद्गीता का बार-बार अध्ययन करके  मानसिक और आध्यात्मिक शरीर को शुद्ध किया जा सकता है।  इस महाकाव्य के आध्यात्मिक प्रभाव से मन की एकाग्रता का उन्नयन  होता हैं। पाशविक और आसुरी शक्तियों का विनाश होता है, शरीर पर आत्मा का प्रबल नियंत्रण होता हैं।इसके आध्यात्मिक प्रभाव से आस  – पास के लोगों और गतिशील दुनिया को समझने और स्वयं की सामान्य इच्छा को बढ़ाने में सहयोग मिलता हैं ।यह ग्रंथ हमें उन पाशविक शक्तियों के बीच तनातनी को गंभीरता से समाप्त करने में मदद करता है।यह ग्रंथ व्यक्ति को वासना( काम, क्रोध, मद और लोभ ) को विजित करने, लालच की प्रवृत्ति को समूल नष्ट करने में सहायता प्रदान करता है। व्यक्ति को आत्म नियंत्रित विवेक, ईश्वर प्रदत्त ज्ञान और विवेक का  अनुभव प्रदान करता है। व्यक्ति को ऐसी ईश्वर प्रदत विवेक प्रदान करता है जिससे उसके व्यवहार, चरित्र, पर्यावरण और व्यक्तित्व में गुणात्मक उन्नयन होता है । श्रीमद्भगवद्गीता के स्वाध्याय से मनुष्य में  विवेक जाग्रत होता है । इस विवेक से वह  समस्त सांसारिक समस्याओं को शमित करके अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़  सकता है।

                                                               समकालीन समय में भारतीय ज्ञान परंपरा ने यह प्रमाणित किया है कि इसमें वैश्विक नेतृत्व और विशिष्टता का गुण  है। इसमें वह गुरुता है, जिससे यह वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकता है। इस ज्ञान परंपरा को संतो, सन्यासियों, प्रचारकों  और महामंडलेश्वर द्वारा अपने व्यक्तिगत जीवन में अनुसरित किया गया हैं। सनातन धर्म  के मूल तत्व वैश्विक स्तर पर अपनी मौलिक उपादेयता के कारण सदैव से  प्रासंगिक रहा हैं ।  श्रीमद्भगवद्गीता मानवीय समाज को प्रेम, भाईचारा साथ ही राजनीति, इतिहास एवं संस्कृति के विविध पक्षों से भी परिचित कराता है ।इससे  मानवीय समाज में व्यक्तियों में परस्पर प्रेम- राग  प्रस्फुटित होता है। यह संपूर्ण हिंदू समाज के वैचारिक मंथन की साकार  अभिव्यक्ति है ।समकालीन समय में श्रीमदभगवद्गीता बौद्धिक – सांस्कृतिक परंपरा और भारतीय ज्ञान परंपरा में महत्वपूर्ण भूमिका को निभा रही है।

                                              श्रीमद्भगवद्गीता में दैवीय संपदा और आसुरी संपदा से युक्त व्यक्तियों का उल्लेख है।   यह ज्ञानराशि व्यक्तियों को ज्ञान, भक्ति एवं कर्म के द्वारा जोड़कर मानसिक ऊर्जा  उत्पन्न कर रही है जिससे व्यक्ति अपने सनातन धर्म, सांस्कृतिक विरासत एवं राष्ट्रीय गौरव को पहचान करके समाज को नूतन दिशा दे सके।

 

                                              प्रकृति में वह मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है जो सुख और दु:ख में  साम्य स्थिति बनाए रखे। , सत्य का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होता हैं ।सत्य और असत्य के विषय में ऋषियों और साधु संतों द्वारा महसूस किया गया है। । इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी मौजूद है वह सब सनातन ज्ञान परंपरा में कहीं न कहीं है। यह ज्ञान राशि भयविहीन और तनावमुक्त होकर अपने कर्तव्यों के पालन करने का संदेश देती है
( लेखक अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, झंडेवालान, केशवकुंज के राष्ट्रीय संगठन सचिव हैं ।)
 

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