नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर फैसले में हो रही देरी पर कहा कि लोकतंत्र में किसी पार्टी के अधिकारों का हनन नहीं होने दिया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष से पूछा कि ‘उचित समय’ का मतलब क्या होता है।
न्यायमूर्ति बी. आर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें से एक याचिका बीआरएस और अन्य द्वारा अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय में देरी को लेकर दायर की गई थी।
पीठ ने कहा, “लोकतंत्र में पार्टियों के अधिकारों का हनन नहीं होने दिया जा सकता। हम अन्य दो शाखाओं (विधायिका और कार्यपालिका) का पूरा सम्मान करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संसद के अधिनियम का ही हनन होने दिया जाए।”
उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा था कि राज्य विधानसभा अध्यक्ष को तीन विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर ‘उचित समय’ के भीतर निर्णय लेना चाहिए।
एक याचिका में राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में शामिल होने वाले बीआरएस के तीन विधायकों की अयोग्यता पर तेलंगाना उच्च न्यायालय के नवंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जबकि एक अन्य याचिका दलबदल करने वाले शेष सात विधायकों से संबंधित थी।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने जानना चाहा कि अयोग्यता याचिका पर निर्णय लेने के लिए विधानसभा अध्यक्ष के लिए “उचित समय’ क्या है।
पीठ ने पूछा, “आपके अनुसार उचित समय क्या है, उचित समय शब्दकोष के अर्थ के अनुसार होना चाहिए।”
विधानसभा की ओर से पेश वकील ने अदालत से एक सप्ताह बाद सुनवाई करने का आग्रह किया। पीठ ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख 18 फरवरी को तय की।
याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि “उचित समय” का अर्थ असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने के भीतर होगा।