भ्रष्टाचार के आरोप, खराब बुनियादी ढांचा, शासन संबंधी मुद्दों के कारण हुई आप की हार

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नयी दिल्ली,  अपने नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, शासन के मुद्दों पर उपराज्यपाल के साथ लगातार तकरार और भाजपा द्वारा चलाया गया सघन प्रचार अभियान दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) की हार सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त थे।

आप के लिए इससे भी अधिक निराशाजनक बात यह है कि उसके शीर्ष नेताओं अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा जो भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दे पर सत्ता में आई पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है।

आगामी दिनों में पार्टी को आत्मचिंतन करने की काफी जरूरत होगी क्योंकि अपनी स्थापना के बाद पहली बार वह राष्ट्रीय राजधानी में विपक्ष की भूमिका में होगी। आप को दिल्ली में सत्ता बरकरार रखने का पूरा भरोसा था, लेकिन उसके शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा केजरीवाल तथा अन्य नेताओं को भ्रष्ट करार देने के लिए चलाए गए व्यापक अभियान ने उसकी छवि को नुकसान पहुंचाया।

वर्ष 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में क्रमश: 67 और 62 सीटें जीतने वाली आप इस बार केवल 22 सीटों पर सिमट गई। भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में अपने वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के कारण पार्टी की ‘‘कट्टर ईमानदार’’ छवि को बड़ा झटका लगा।

मुख्यमंत्री आवास की मरम्मत के मुद्दे पर आप सुप्रीमो केजरीवाल पर भाजपा के लगातार हमलों ने भी कड़े मुकाबले वाले चुनाव में पार्टी की हार का मार्ग प्रशस्त किया। भाजपा लगातार आरोप लगा रही थी कि केजरीवाल ने अपने लिए ‘शीश महल’ बनवाया।

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया और आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह को आबकारी नीति मामले में जबकि जैन को ईडी ने धन शोधन के एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया था।

आप और उसके नेताओं ने इन गिरफ्तारियों को भाजपा द्वारा की गई साजिश का नतीजा बताया, लेकिन ऐसा लगता है कि मतदाता इससे सहमत नहीं था। केजरीवाल, सिसोदिया और जैन की गिरफ्तारियों से न केवल दिल्ली में शासन व्यवस्था प्रभावित हुई, बल्कि आप के राजनीतिक मामलों में भी बाधा उत्पन्न हुई।

पार्टी के अन्य शीर्ष नेता भी करीबी मुकाबले में अपनी सीटें हार गए। दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज भी ग्रेटर कैलाश सीट नहीं बचा पाए।

केजरीवाल, सिसोदिया और जैन की हार का मतलब यह है कि आप इन चुनावों में नैतिक जीत का भी दावा नहीं कर सकती।

चुनावों में भाजपा 26 साल से अधिक समय के बाद दिल्ली की सत्ता में लौटी है।

एक अन्य कारक जिसने भाजपा के पक्ष में पलड़ा भारी कर दिया, वह था आप सरकार का दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना के साथ शासन संबंधी मुद्दों पर लगातार टकराव।

नालों की सफाई से लेकर घर-घर तक सेवाएं पहुंचाने जैसी योजनाओं को रोकने तक, आप नीत सरकार हमेशा शासन में बाधा उत्पन्न करने के लिए उपराज्यपाल या भाजपा नीत केंद्र पर दोष मढ़ती रही।

केजरीवाल, सिसोदिया और जैन की गिरफ़्तारी से राजधानी में शासन व्यवस्था ठप्प हो गई। पिछले साल मार्च में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया और पार्टी ने कहा कि वह केंद्र की इस कार्रवाई के आगे नहीं झुकेंगे।

जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कहा कि वह तभी पद पर लौटेंगे जब लोग उन्हें ‘‘ईमानदारी का प्रमाणपत्र’’ देंगे।

चुनाव में हार के बाद केजरीवाल ने कहा कि आप विनम्रता के साथ जनादेश स्वीकार करती है और इस बात पर जोर दिया कि पार्टी न केवल रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएगी बल्कि जरूरत के समय लोगों के लिए उपलब्ध भी रहेगी।

उन्होंने कहा, ‘‘हम जनादेश को विनम्रता से स्वीकार करते हैं। मैं भाजपा को उसकी जीत के लिए बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वह दिल्ली के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगी।’’

 

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