डॉक्टर साहब ने सलाह क्या दी कि हमारी पत्नी हमारे पीछे ही पड़ गई। मरता क्या न करता दूसरे दिन से ही सुबह सबेरे मुंह अंधेरे मार्निंग वाक के लिए निकलना ही पड़ा। यह बीवियां जो न करा लें थोड़ा है।यहां तक तो फिर भी गनीमत था। हद तो तब हुई जब हमारी पत्नी ने यह बात डॉक्टर साहिब को (अपनी सफलता के रूप में) फोन पर बता दी और डॉक्टर साहब भी हमारे साथ प्रात: भ्रमण हेतु तैयार हो गए। हमें दूसरे दिन से उन्हें साथ लेना था।
दूसरे दिन सुबह 5 बजे हम दोनों काफी दूर डॉक्टर साहब के घर उन्हें बुलाने गए, बार-बार घंटी बजाने पर और मच्छरों के आक्रमण से परेशान आखिर अंदर जाग मालूम हुई। इस बीच पौने 6 बज गए थे और भोर का उजाला फैलने लगा था। राम राम करके डॉक्टर साहिब फ्रेश होकर बाहर आए और हम लोग सैर को निकले, कुछ कदम ही गए थे कि देखा कि डाक्टर साहिब का कुत्ता पारू भी हमारे साथ आ रहा है। अब कुत्ता तो कुत्ता, अपनी मरजी का मालिक। वह अचानक एक साईड की सड़क पर मुड गया, डाक्टर साहब लगे उसे आवाजें देने, पारू…पारू… पारू… अब पारू कहां सुने।
मजबूरी में हम पारू पारू की आवाजें लगाने लगे, अजीब नजारा था आते जाते घूमने जाते लोग रूक रूककर हमारी तरफ देख रहे थे, और हम थे कि शर्म के मारे मुंह भी नहीं छुपा रहे थे। मार्निंग वाक हमारे लिए एक नया सिरदर्द बन गई थी। रोज वैसा ही तमाशा होने लगा, कुछ कहते भी नहीं बनता था। शायद भगवान को हमारी दयनीय दशा पर दया आ गई, शहर के एक अन्य बड़े डॉक्टर का अपहरण हो गया और करोड़ों की फिरौती की मांग हो गई, हमारे डॉक्टर साहब भी डर गए, उनका फोन आ गया कि कल से वह हमारे साथ नहीं जा पाएंगे।