
देश व विदेश में अनेक स्थानों पर किये जा रहे परीक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि यज्ञ एक धार्मिक पूजा-पाठ ही नहीं अपितु वर्तमान के प्रदूषित वातावरण से मुक्त रहने का एक महान सुरक्षा कवच है। यज्ञ जहां मानसिक रोग, शारीरिक रोग तथा वनस्पतियों के विभिन्न रोगों को दूर करके उन्हें स्वस्थ तथा उन्नत बनाता है, वहीं वर्तमान के प्रदूषित वातावरण से बचने का एक प्रमुख वैज्ञानिक साधन भी है।
वर्तमान में प्रत्येक बुद्धिजीवी व सम्पन्न व्यक्ति समाज में बढ़ते हुए प्रदूषित वातावरण से विशेष चिन्तित है, क्योंकि इससे होने वाले कैंसर, दमा, श्वांस, पोलियो तथा एलर्जी आदि के अनेक रोग तीव्र गति से मनुष्यों की जान ले रहे हैं। बुद्धिमान व्यक्ति की बड़ी-बड़ी डिग्रियां तथा धनवान व्यक्ति की बड़ी-बड़ी धनराशियां कुछ भी काम नहीं आतीं। जब वह व्यक्ति किसी गंभीर असाध्य रोग का शिकार हो चुका होता है। ऐसे रोगों का चिन्तन मात्र व्यक्ति को इसलिये भी भयभीत कर देता है, क्योंकि इनका पता ही रोगी को तब चलता है, जब वह रोग अपना पूरा जाल शरीर में बिछा चुका होता है।
यदि वर्तमान के बुद्धिजीवी व धनाढ्य लोग इन रोगों के आतंक से मुक्ति चाहते हैं तो हमारा सुझाव है कि प्रतिदिन अपने घर पर यज्ञ किया करें। प्रात:काल के वक्त बीस मिनट के समय में थोड़ी-सी सामग्री तथा धूप से होने वाला यह वैदिक यज्ञ आपको लगभग 24 घंटे तक एक कवच की तरह प्रदूषित वातावरण से बचाता रहेगा। विज्ञान के मूलस्रोत अथर्ववेद में यह कहा भी गया है कि यज्ञ करने वाले को यज्ञ की पावन अग्रि मृत्यु की कोख से भी बचा लाने की शक्ति रखती है।
हमारे पर्यावरण में स्वाभाविक रूप से सल्फर, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, हाईड्रोजन तथा एस.पी.एम (सस्पैंडिड पार्टीकुलेट मेटर) रहते हैं। यह जीवन के लिये उस समय घातक हो जाते हैं, जब गाडिय़ां तथा कारखानों से निकलने वाले ऑक्साइड जैसे कि सल्फर डाई ऑक्साइड नाइट्रस ऑक्साइड व मोनो ऑक्साइड तथा लैड की मात्रा को अनुपात से अधिक बढ़ा देते हैं। फटती हुई ओजोन लेअर, धुएं से बढ़ते हुए वैश्विक तापमान तथा धुएं केे बढ़ते हुए लैड युक्त एस.पी.एम मनुष्यों के लिए कैंसर जैसे भयंकर रोगों का कारण बन रहे हैं। इनसे शीघ्र बचने का सरल व सर्वोत्तम साधन केवल महर्षि दयानन्द द्वारा प्रदर्शित वैदिक यज्ञ ही है। मात्र बीस मिनट में गुड़, चावल, गुगल, गिलोय व गोघृत और आम आदि की समिधा के स्थान पर गाय के गोबर से ही बनी समिधा का प्रयोग करके हम यज्ञ का अनुष्ठïान कर सकते हैं। यदि सभी मंत्र न आते हों तो उनके सीखने तक हम गायत्री मंत्र से भी पैंतीस आहुतियां डाल सकते हैं। गिलोय आदि के साथ कुछ मात्रा में दूसरी सामग्री भी मिलाई जा सकती है। इन उपरोक्त जड़ी-बूटियों के जलने से फार्मेल्डीहाइड, इथाइल-मिथाइल, अल्कोहल व प्रोपीनोईक, एसिड डिस्फेक्टिव तत्व निकलते हैं, जो पूरे दिन शरीर के भीतर व बाहर कवच के रूप में आपको घर तथा बाहर के प्रदूषित वातावरण से बचाते रहते हैं। यज्ञ हवन से निकलने वाले ये मूल्यवान तत्व हवन कुण्ड के उच्च तापमान में कम्वक्शन व डिफ्यूजन द्वारा प्रदूषित वातावरण में उपस्थित सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रस-ऑक्साइड व मोनोऑक्साइड को भेद करके उन्हें पुन: सल्फर व ऑक्सीजन, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन तथा नसेन्ट ऑक्सीजन व ओजोन में बदल देते हें। सस्पैंडिड पार्टीकुलेट मेटर यज्ञीय घृत व एन्टीसेप्टिक गैसों के संयोग से प्रभावित होकर हानिरहित हो जाते हैं तथा उनकी वायुमण्डल में मात्रा बहुत कम हो जाती है। गाय के गोबर में उपस्थित मिथेन, विघटित होकर पर्याप्त मात्रा में हाईड्रोजन उत्पन्न करती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का सर्वोत्तम साधन है। यज्ञ की इस भेदन शक्ति की चर्चा वैदिक वैज्ञानिक व स्वतंत्रता के प्रथम मंत्र दाता आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने अमर ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाशÓ के तीसरे सम्मुलास में आज से 125 वर्ष पूर्व की थी।
अत: वैदिक यज्ञ की इस वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पर्यावरण शुद्ध होता है। उनमें पुन: ऑक्सीजन की वृद्धि होती है और ओजोन की वृद्धि से ओजोन लेजर की रक्षा होकर पृथ्वी में अधिक ताप से होने वाले अनेक प्रकार के रोगों तथा प्राकृतिक विपदाओं से भी बचा रहता है। हवन के पश्चात पांच बार अभ्यान्तर कुम्भक या दस बार उदगौथ ध्वनि प्राणायाम करने से शरीर के बाहर तथा भीतर यज्ञीय-एन्टी सेप्टिक गैस एक ऐसा प्रतिरोधी कवच प्रदान करती है, जो पूरे दिन प्रदूषण तथा रोग के कीटाणुओं से हमारी रक्षा करता है।
इसके साथ-साथ यदि चार छोटे चम्मच यज्ञ की भस्म को छानकर पानी के मटके में प्रात:काल डालकर दिनभर उसी का प्रयोग करें तो शुगर, हाई ब्लडप्रेशर व एलर्जी में विशेष लाभ होगा, इसलिए हमारे प्राचीन ऋषि व वर्तमान के आर्य मनीषी स्वास्थ्य तथा दीर्घायु को प्राप्त करते रहे।
वर्तमान में प्रत्येक बुद्धिजीवी व सम्पन्न व्यक्ति समाज में बढ़ते हुए प्रदूषित वातावरण से विशेष चिन्तित है, क्योंकि इससे होने वाले कैंसर, दमा, श्वांस, पोलियो तथा एलर्जी आदि के अनेक रोग तीव्र गति से मनुष्यों की जान ले रहे हैं। बुद्धिमान व्यक्ति की बड़ी-बड़ी डिग्रियां तथा धनवान व्यक्ति की बड़ी-बड़ी धनराशियां कुछ भी काम नहीं आतीं। जब वह व्यक्ति किसी गंभीर असाध्य रोग का शिकार हो चुका होता है। ऐसे रोगों का चिन्तन मात्र व्यक्ति को इसलिये भी भयभीत कर देता है, क्योंकि इनका पता ही रोगी को तब चलता है, जब वह रोग अपना पूरा जाल शरीर में बिछा चुका होता है।
यदि वर्तमान के बुद्धिजीवी व धनाढ्य लोग इन रोगों के आतंक से मुक्ति चाहते हैं तो हमारा सुझाव है कि प्रतिदिन अपने घर पर यज्ञ किया करें। प्रात:काल के वक्त बीस मिनट के समय में थोड़ी-सी सामग्री तथा धूप से होने वाला यह वैदिक यज्ञ आपको लगभग 24 घंटे तक एक कवच की तरह प्रदूषित वातावरण से बचाता रहेगा। विज्ञान के मूलस्रोत अथर्ववेद में यह कहा भी गया है कि यज्ञ करने वाले को यज्ञ की पावन अग्रि मृत्यु की कोख से भी बचा लाने की शक्ति रखती है।
हमारे पर्यावरण में स्वाभाविक रूप से सल्फर, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, हाईड्रोजन तथा एस.पी.एम (सस्पैंडिड पार्टीकुलेट मेटर) रहते हैं। यह जीवन के लिये उस समय घातक हो जाते हैं, जब गाडिय़ां तथा कारखानों से निकलने वाले ऑक्साइड जैसे कि सल्फर डाई ऑक्साइड नाइट्रस ऑक्साइड व मोनो ऑक्साइड तथा लैड की मात्रा को अनुपात से अधिक बढ़ा देते हैं। फटती हुई ओजोन लेअर, धुएं से बढ़ते हुए वैश्विक तापमान तथा धुएं केे बढ़ते हुए लैड युक्त एस.पी.एम मनुष्यों के लिए कैंसर जैसे भयंकर रोगों का कारण बन रहे हैं। इनसे शीघ्र बचने का सरल व सर्वोत्तम साधन केवल महर्षि दयानन्द द्वारा प्रदर्शित वैदिक यज्ञ ही है। मात्र बीस मिनट में गुड़, चावल, गुगल, गिलोय व गोघृत और आम आदि की समिधा के स्थान पर गाय के गोबर से ही बनी समिधा का प्रयोग करके हम यज्ञ का अनुष्ठïान कर सकते हैं। यदि सभी मंत्र न आते हों तो उनके सीखने तक हम गायत्री मंत्र से भी पैंतीस आहुतियां डाल सकते हैं। गिलोय आदि के साथ कुछ मात्रा में दूसरी सामग्री भी मिलाई जा सकती है। इन उपरोक्त जड़ी-बूटियों के जलने से फार्मेल्डीहाइड, इथाइल-मिथाइल, अल्कोहल व प्रोपीनोईक, एसिड डिस्फेक्टिव तत्व निकलते हैं, जो पूरे दिन शरीर के भीतर व बाहर कवच के रूप में आपको घर तथा बाहर के प्रदूषित वातावरण से बचाते रहते हैं। यज्ञ हवन से निकलने वाले ये मूल्यवान तत्व हवन कुण्ड के उच्च तापमान में कम्वक्शन व डिफ्यूजन द्वारा प्रदूषित वातावरण में उपस्थित सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रस-ऑक्साइड व मोनोऑक्साइड को भेद करके उन्हें पुन: सल्फर व ऑक्सीजन, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन तथा नसेन्ट ऑक्सीजन व ओजोन में बदल देते हें। सस्पैंडिड पार्टीकुलेट मेटर यज्ञीय घृत व एन्टीसेप्टिक गैसों के संयोग से प्रभावित होकर हानिरहित हो जाते हैं तथा उनकी वायुमण्डल में मात्रा बहुत कम हो जाती है। गाय के गोबर में उपस्थित मिथेन, विघटित होकर पर्याप्त मात्रा में हाईड्रोजन उत्पन्न करती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का सर्वोत्तम साधन है। यज्ञ की इस भेदन शक्ति की चर्चा वैदिक वैज्ञानिक व स्वतंत्रता के प्रथम मंत्र दाता आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने अमर ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाशÓ के तीसरे सम्मुलास में आज से 125 वर्ष पूर्व की थी।
अत: वैदिक यज्ञ की इस वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पर्यावरण शुद्ध होता है। उनमें पुन: ऑक्सीजन की वृद्धि होती है और ओजोन की वृद्धि से ओजोन लेजर की रक्षा होकर पृथ्वी में अधिक ताप से होने वाले अनेक प्रकार के रोगों तथा प्राकृतिक विपदाओं से भी बचा रहता है। हवन के पश्चात पांच बार अभ्यान्तर कुम्भक या दस बार उदगौथ ध्वनि प्राणायाम करने से शरीर के बाहर तथा भीतर यज्ञीय-एन्टी सेप्टिक गैस एक ऐसा प्रतिरोधी कवच प्रदान करती है, जो पूरे दिन प्रदूषण तथा रोग के कीटाणुओं से हमारी रक्षा करता है।
इसके साथ-साथ यदि चार छोटे चम्मच यज्ञ की भस्म को छानकर पानी के मटके में प्रात:काल डालकर दिनभर उसी का प्रयोग करें तो शुगर, हाई ब्लडप्रेशर व एलर्जी में विशेष लाभ होगा, इसलिए हमारे प्राचीन ऋषि व वर्तमान के आर्य मनीषी स्वास्थ्य तथा दीर्घायु को प्राप्त करते रहे।