भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर पार्टी से लेकर संघ तक चल रही है माथापच्ची !

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भारतीय जनता पार्टी का अगला अध्यक्ष कौन होगा, इसको लेकर अब सियासी हल्के में तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं क्योंकि जो भी अध्यक्ष बनेगा, वह कई मायने में महत्वपूर्ण होगा। भाजपा के मिशन 2029 की सफलता का सारा दारोमदार उसी के ऊपर होगा। इससे पहले मिशन यूपी 2027 को सफल बनाने का नैतिक भार भी उसी के कंधे पर होगा हालांकि, पार्टी अध्यक्ष का चयन इस बार उतना आसान नहीं है जितना कि पहले हुआ करता था क्योकि पार्टी-संघ के सभी गुट एक बेहतर समन्वय स्थापित रखने वाला राष्ट्रीय अध्यक्ष चाहते हैं जो उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम हर जगह लोकप्रिय हो और उस पर गुट विशेष की छाप भी नहीं पड़े।

 

भाजपा में अटल-आडवाणी युग को समाप्त करके मोदी-शाह युग का आगाज करने वाली ऊर्जावान टीम अगले अध्यक्ष के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। जबकि संघ की पीठ पर सवार होकर पार्टी की तीसरी पीढ़ी के नेता अपना-अपना अनुभव और अपनी-अपनी भावी भूमिका के दृष्टिगत अपनी-अपनी गोटी सेट करने के जुगाड़ में लगे हुए हैं। ये नेता पार्टी व संघ के सभी गुटों से समुचित तालमेल बिठाने में जुटे हुए हैं। वहीं, दूसरी पीढ़ी के नेता खासकर गृहमंत्री अमित शाह चाहते हैं कि पार्टी की कमान अभी उन्हीं के समर्थक के हाथ में रहे ताकि वर्तमान और भावी सत्ता संतुलन बना रहे और पार्टी लाभान्वित होती रहे।

उधर, आरएसएस भी चाहता है कि अगला अध्यक्ष वही बने जो उसकी उपेक्षा नहीं करे, खासकर मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा की तरह क्योंकि संघ से नीतिगत हठधर्मिता के सवाल पर बाजपेयी, आडवाणी, मोदी, शाह आदि सबकी कभी न कभी ठनी जरूर लेकिन नड्डा ने जैसी सार्वजनिक फजीहत करवाई, वैसी हिमाकत किसी ने नहीं। कुछ यही साइड इफेक्ट्स पड़ा कि आज भाजपा को यदि गठबंधन की बैशाखी चाहिए तो सिर्फ इसलिए कि लोकसभा चुनाव 2024 में आरएसएस न्यूट्रल हो गया था, जिससे भाजपा रिवर्स गियर में चली गई जबकि 2014 और 2019 में उसने भाजपा का पूरा साथ दिया था। वहीं, हाल ही में हुए हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी उसने भाजपा का खुलकर साथ दिया जिससे भाजपा लाभान्वित रही और अपनी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकी। इसलिए जो भी अगला अध्यक्ष बनेगा, उसके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबंध और संगठन के अनुभव के साथ-साथ उसके लो प्रोफाइल पर भी गौर किया जाएगा।

 

भाजपा रणनीतिकार व गृहमंत्री अमित शाह चाहते हैं कि पार्टी का अगला अध्यक्ष जो भी बने, वह उनकी टीम के लिए कभी चुनौती नहीं बन पाए। इसलिए किसी भी दुधारी फेस वाले व्यक्ति को इस पद तक वह पहुंचने ही नहीं देना चाहते हैं। उन्होंने अपनी भावनाओं से संघ तक को अवगत करा रखा है। वहीं, उनके प्रबल प्रतिद्वंद्वी समझे जाने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संघ और पार्टी की तीसरी पीढ़ी के नेताओं को साधकर कुछ चमत्कार करवाने में जुटे हुए हैं। कुछ यही वजह है कि पिछले साल भर से यह मामला खटाई में पड़ा हुआ है।

 

ऐसा इसलिए कि यदि वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी मौजूदा रक्षा मंत्री और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की दोहरी निष्ठा को समय रहते पहचान लिए होते और उनके नाम पर वीटो लगाकर उन्हें पुनः राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनने दिए होते तो पीएम इन वेटिंग के रूप में पराजित होने के बावजूद जब दूसरी बार लगातार पुनः पीएम इन वेटिंग बनने की बारी आती तो उनके नाम को चुनौती देना मुश्किल होता लेकिन देखा गया कि अपने ही सियासी शागिर्द और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले वह लगातार पिछड़ते गए। फिर यहां तक नौबत आ गई कि प्रधानमंत्री तो छोड़िए, राष्ट्रपति पद के लिए भी उनके नाम पर कभी विचार नहीं हुआ जबकि रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू उनसे ज्यादा काबिल निकलीं। वहीं, उन्हें  उपराष्ट्रपति के काबिल भी नहीं समझा गया और वैंकेया नायडू व जगदीप धनखड़ जैसे नेता उनसे ज्यादा योग्य समझे गए।

 

उस समय आडवाणी की भरोसेमंद सलाहकार रहीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने भी राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली को रणनीतिक मात देने के लिए राजनाथ सिंह के नाम पर रजामंदी जताई थीं जो उनके राजनीतिक जीवन की भी भारी भूल साबित हुई। समझा जाता है कि भाजपा के स्वप्नदृष्टा और उन्नायक लालकृष्ण आडवाणी के लिए बस यही एक चूक उनके राजनीतिक करियर के लिए नासूर साबित हुई। वहीं, भाजपा अध्यक्ष के चयन में सावधानी बरतकर टीम मोदी ने राजनीतिक बुलंदियों का झंडा गाड़ दिया। इसका सारा श्रेय भी अमित शाह को दिया जाता है। आपको याद होगा कि गृहमंत्री बनने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की इस महत्वपूर्ण पद से विदाई की गई। उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अमित शाह को आरूढ़ किया गया और फिर 2019 में मोदी 2.0 सरकार बनते ही उन्हें गृहमंत्री बनाकर राजनाथ सिंह का नम्बर दो वाला रुतबा कम किया गया। यह सब एक सोची समझी रणनीति थी, जिसे राजनाथ सिंह न चाहते हुए भी मानने को विवश हुए।

 

वहीं, किसी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष को दो से ज्यादा कार्यकाल नहीं देने के पार्टी संविधान के चलते जब अमित शाह के हटने की बारी आई तो उन्होंने न केवल जे पी नड्डा का चुनाव किया बल्कि उन्हें एक सफल राष्ट्रीय अध्यक्ष साबित करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चूंकि अमित शाह पीएम मोदी के बाद देश का प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, इसलिए वह पीएम मोदी को भरोसे में लेकर पार्टी में ऊपर से लेकर नीचे तक अपने खासमखास लोगों को सेट करते जा रहे हैं। अपनी इसी रणनीति के तहत वो आगे की भी गोटी फिट कर रहे हैं। अब जब पार्टी संविधान के तहत जे पी नड्डा की विदाई का समय आ गया है तो उन्होंने मौजूदा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का नाम आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस और भाजपा की तीसरी पीढ़ी के नेताओं की बोलती बंद कर दी है। जबकि कद्दावर भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर, भूपेंद्र यादव, धर्मेंद्र प्रधान और विनोद तावड़े जैसे नेताओं के नाम भी भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर शुमार किये जा रहे हैं। जबकि प्रमुख दलित उम्मीदवार के रूप में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव दुष्यंत गौतम और उत्तर प्रदेश की मंत्री बेबी रानी मौर्य के नामों पर विचार हो सकते हैं।

 

दूसरी ओर किसी भी विवाद से बचने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी इस अहम पद के लिए अपने भरोसेमंद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के नाम पर रजामंदी चाहते हैं। वहीं, संघ और भाजपा का मोदी-शाह विरोधी खेमा भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री संजय जोशी को आगे बढ़ाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाना चाहता है ताकि भाजपा और संघ के बीच समुचित समन्वय बना रहे। इसके अलावा, दलित फैक्टर, ओबीसी फैक्टर पर भी सावधानी पूर्वक गौर फरमाया जा रहा है। ऐसे में एक-दूसरे के दुःख के साथ नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत किस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, इंतजार करना बेहतर होगा, क्योंकि इनके अकाट्य निष्कर्षों का पूर्वानुमान लगाना मीडिया के वश की बात नहीं है।

 

केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वशर्मा, बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी जैसे नेता अपने राजनीतिक भविष्य की हिफाजत के लिए इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पुनः सभी गुटों के लिए संकटमोचक की भूमिका में हैं यानी सबकी अलग-अलग सोच के बीच उचित समन्वयक की भूमिका में। क्योंकि उन पर सबका भरोसा है और वो पार्टी-संघ हित में भरोसे के काबिल भी हैं। भले ही उनकी नीतियों से आडवाणी का भला नहीं हो पाया, लेकिन भाजपा और संघ का काफी भला हुआ, इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता। उनके खास व्यक्ति अरुण सिंह को पार्टी केंद्रीय कार्यालय में इसी लिए तो बैठाया गया है।

 

दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पार्टी में नए अध्यक्ष के लिए चुनाव होगा। बताया जाता है कि इसी नजरिए से भाजपा ने हाल ही में अपनी सदस्यता अभियान के तहत 10 करोड़ से ज्यादा सदस्यों को जोड़ा है और फिलहाल राज्य इकाइयों के लिए संगठनात्मक चुनाव कर रही है। इसके बाद ही पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाएगा। दरअसल, भाजपा के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले कम से कम आधे राज्य इकाइयों में संगठनात्मक चुनावों का पूरा होना जरूरी है।

 

अभी तक पार्टी ने इस पद के लिए आधिकारिक तौर पर किसी भी उम्मीदवार का ऐलान तो नहीं किया है लेकिन चर्चा है कि नड्डा का उत्तराधिकारी या तो कोई केंद्रीय मंत्री हो सकता है या फिर पार्टी के संगठनात्मक ठांचे से निकला कोई व्यक्ति हो सकता है। बता दें कि फरवरी 2020 में जेपी नड्डा ने अमित शाह से पार्टी की कमान संभाली थी। वैसे तो पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए नड्डा को कार्यकाल विस्तार दिया गया। क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी स्थिर नेतृत्व बनाए रखना चाहती थी। इसका उचित फल भी मिला और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटी और नरेंद्र मोदी एक बार फिर तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस के कई रिकॉर्ड तोड़ दिए और कुछ की बराबरी कर ली। वहीं, भाजपा अध्यक्ष के रूप में नड्डा के कार्यकाल की एक और बड़ी अचीवमेंट हरियाणा में भाजपा की हैट्रिक और महाराष्ट्र में मिली शानदार जीत भी है। दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर भी कुछ वैसी ही उम्मीदें हैं।

 

सूत्र बता रहे हैं कि भाजपा नेतृत्व नए भाजपा अध्यक्ष का चयन करते समय जाति पर भी ज्यादा ध्यान दे सकता है क्योंकि नड्डा ब्राह्मण हैं और मोदी अन्य पिछड़ा समुदाय (ओबीसी) से आते हैं। साथ ही बीआर अंबेडकर के मुद्दे पर घिरने के बाद और खुद पर लगने वाले दलित विरोधी आरोपों को धोने के लिए भाजपा इस बार किसी दलित को भी यह जिम्मेदारी दे सकती है क्योंकि कांग्रेस ने हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह को आंबेडकर के मुद्दे पर संसद में जमकर घेरा था। इसके अलावा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, जो दलित समाज से आते हैं। इसको लेकर भी कांग्रेस अक्सर भाजपा पर को दलितों की अनदेखी का आरोप लगाती रहती है। ऐसे में भाजपा विपक्ष को शांत करने के लिए दलित नेता की नियुक्ति कर सकती है। इस रूप में प्रमुख उम्मीदवार केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव दुष्यंत गौतम और उत्तर प्रदेश की मंत्री बेबी रानी मौर्य के किस्मत बुलंद हो सकते हैं।

 

वहीं, भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए उम्र भी एक अहम भूमिका अदा करेगी। क्योंकि विपक्ष में युवा नेताओं के उभार को देखते हुए यह और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है क्योंकि विपक्ष में कांग्रेस से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव, तृणमूल कांग्रेस से अभिषेक बनर्जी और राष्ट्रीय जनता दल से तेजस्वी यादव, आप के अरविंद केजरीवाल, एनसी के उमर अब्दुल्ला ऐसे चेहरे हैं जो अपनी-अपनी पार्टियों के मुख्य चेहरे बने हुए हैं और युवा भी हैं। ऐसे में कई बार भाजपा के मौजूदा नेतृत्व को यह आरोप भी झेलना पड़ जाता है कि वो नई नस्ल को बढ़ावा नहीं दे रही। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बार-बार ये कहते हुए देखा-सुना जा सकता है कि युवाओं को राजनीति में आगे आकर हिस्सा लेना चाहिए।

इसके अलावा, यह भी चर्चा है कि भाजपा इस बार किसी महिला को भी अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन सकती है क्योंकि इस पार्टी में अभी तक किसी भी महिला को इस अहम पद तक पहुंचने का मौका नहीं मिला है। इस दृष्टि से केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण या पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के नामों पर भी विचार किया जा सकता है। वहीं, भाजपा दक्षिण भारत से भी अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन सकती है क्योंकि इस समय पार्टी में दक्षिण का कोई भी नेता बड़े पद पर नहीं है। ऐसे में संतुलन बनाने के लिए भाजपा ऐसा कदम उठा सकती है।

 

हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि नए अध्यक्ष के चयन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छाप और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का समर्थन होगा जो मौजूदा व्यवस्था को बनाए रखेगा लेकिन इसमें आरएसएस की दखल को भी अहम माना जाता है क्योंकि भाजपा का असंतुष्ट खेमा अकसर संघ को आगे करके ही अपना एजेंडा मनवाता आया है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि पार्टी के गठन के बाद से बीजेपी हमेशा अपना अध्यक्ष आरएसएस के साथ ‘बैठक’ के बाद चुनती है जहां दोनों पक्षों की सहमति से बहुमत समर्थन वाले उम्मीदवार का चयन होता है। वहीं, पार्टी के संगठन महामंत्री जैसा अहम पद भी संघ पृष्ठभूमि के मजबूत व्यक्ति को ही दिया जाता है जो भाजपा-संघ के बीच का मुख्य सूत्रधार समझा जाता है।

 

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर साफ शब्दों में कहा कि, ‘मोदी जी की पिछली पसंद को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष, एक लो-प्रोफाइल नेता और विश्वासपात्र हो सकते हैं। फिर भी उन्हें ऐसा नेता होना चाहिए जो शीर्ष नेतृत्व के विचारों और कार्यक्रमों को लागू कर सके।’ कुलमिलाकर भारतीय जनता पार्टी को जल्द ही नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलने जा रहा है क्योंकि संगठन को फरवरी तक चयन प्रक्रिया पूरी होने की उम्मीद है।

 

पार्टी सूत्रों का कहना है फरवरी के दूसरे पखवाड़े में बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है क्योंकि बीजेपी में संगठन चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। मंडल से लेकर जिला और प्रदेश इकाई के अध्यक्ष चुने जा रहे हैं। इसके अलावा, भाजपा की राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषद के सदस्य भी चुने जा रहे हैं, जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे और नए अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। हालांकि, अभी तक सिर्फ चार राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का ही चुनाव हुआ है। बता  दें कि बीजेपी संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्य इकाइयों में संगठन के चुनाव पूरे होने जरूरी हैं। लिहाजा बीजेपी नेताओं के अनुसार, पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार ही संगठन चुनाव चल रहा है और इसे समय पर पूरा करा लिया जाएगा।

 

फिलहाल, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। वैसे तो बतौर अध्यक्ष नड्डा का कार्यकाल पिछले साल जनवरी में ही समाप्त हो गया था लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के दृष्टिगत उनका कार्यकाल बढ़ाया गया था। नड्डा ने फरवरी 2020 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाला था। वे इस समय मोदी कैबिनेट का हिस्सा हैं और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। नए बीजेपी अध्यक्ष नड्डा की जगह लेंगे।

 

वहीं, यदि आप हाल में ही बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चुनने के कुछ खास पैटर्न को समझ लेंगे तो अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर अनुमान लगाने में आपको कोई कठिनाई नहीं होगी क्योंकि बीजेपी के नए राज्य अध्यक्षों के चयन में निष्ठावान और विचारधारा में गहरे जुड़े नेताओं का खास ध्यान रखा गया है। जहां असम, गोवा में नए चेहरों पर जोर दिया गया है, वहीं चंडीगढ़ और छत्तीसगढ़ में पुरानी नेतृत्व पर ही भरोसा कायम रखा गया है। इस कड़ी में जातिगत समीकरण भी महत्वपूर्ण रहे हैं। इन प्रदेशाध्यक्षों में से सभी में कुछ बातें समान हैं। इनमें विचारधारा में निहित और आरएसएस से जुड़े होने, संगठन में लंबे समय तक काम करने और अपेक्षाकृत लो प्रोफाइल होना है।

 

वहीं, बीजेपी की स्टेट यूनिट के अध्यक्षों के चुनाव में निरंतरता और बदलाव का मिश्रण देखने को मिल रहा है। चंडीगढ़ और छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने पुराने नेतृत्व पर भरोसा जताया है जबकि असम, गोवा और महाराष्ट्र में बदलाव का विकल्प चुना है। इससे साफ है कि भाजपा में एक बूथ कार्यकर्ता राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभर सकता है। बस पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए तीन चीजें सबसे ज्यादा मायने रखती हैं – राष्ट्र, संगठन और विचारधारा। वहीं, किसी भी चयन से पहले बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उन लोगों के नाम पर विचार करता है जो ‘कार्यकर्ता’ के दृष्टिकोण वाले हैं और विचारधारा में गहराई से निहित हैं। साथ ही कई दशकों से संगठन के लिए काम कर रहे हैं। पार्टी नेताओं ने कहा भी है कि शांत और प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत किया जाएगा और आगे भी यही तरीका हो सकता है।

 

इससे साफ है कि भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर पार्टी से लेकर संघ तक में माथापच्ची चल रही है, विचार मंथन चल रहा है। अब देखना यह है कि किस की  किस्मत बुलंद होगी और कौन होगा धराशायी।

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