दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की दुविधा क्या है

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इस बार दिल्ली के विधानसभा चुनाव कुछ अलग दिखाई दे रहे हैं क्योंकि केजरीवाल कुछ घबराये हुए लग रहे हैं । उनका एक बयान उनकी घबराहट दिखा रहा है कि उन्हें हार का डर सता रहा है। उन्होंने कहा है कि हरियाणा सरकार ने जानबूझकर यमुना के पानी में जहर मिला दिया है जिससे दिल्लीवासियों की मौत हो सकती है। देखा जाए तो ये देश की एक राज्य सरकार पर दूसरे प्रदेश की जनता का सामूहिक नरसंहार करने की साजिश का आरोप है। अगर इसमें थोड़ा सा भी सच होता तो केजरीवाल सरकार सबूत के साथ सुप्रीम कोर्ट में खड़ी दिखाई देती । ये घिनौना और बेतुका आरोप केजरीवाल की घबराहट दिखा रहा है।  लोकतंत्र में जनता के मन में क्या है, यह पूरी तरह से किसी को पता नहीं होता है । चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलता है कि जनता के मन में क्या है । 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने जबरदस्त जीत हासिल करके सरकार बनाई थी लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव फंसे हुए दिखाई दे रहे हैं । यह सच है कि इस चुनाव में केजरीवाल मुश्किल में दिखाई दे रहे हैं लेकिन ज्यादा संभावना यही है कि एक बार फिर आम आदमी पार्टी सत्ता में वापिसी कर सकती है। दूसरी बात यह है कि चुनाव जिस तरफ जा रहे हैं इससे लगता है कि जनता भाजपा को भी दिल्ली की सत्ता सौंप सकती है। वैसे तो भाजपा हर चुनाव गंभीरता से लड़ती है, फिर चाहे उसके जीतने की संभावना कितनी भी कम क्यों न हो लेकिन इस बार भाजपा पूरी रणनीति बनाकर केजरीवाल को पटकनी देने की तैयारी कर रही है।

 

 2015 और 2020 के चुनाव परिणामों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि उन चुनावों में भी भाजपा अपना वोट बैंक बचाने में कामयाब रही थी लेकिन कांग्रेस के बड़े वोट बैंक का केजरीवाल के खेमे में चले जाना उसकी बड़ी हार की वजह बना था । दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट छीनकर अपनी जगह बनाई है । कांग्रेस ने जिस तरह से चुनाव में उतरने की तैयारी की थी उससे भाजपा में उत्साह पैदा हो गया था । भाजपा को लगता है कि अगर कांग्रेस अपने वोट बैंक का कुछ हिस्सा आम आदमी पार्टी से वापिस ले लेती है तो दिल्ली में भाजपा की सरकार बन सकती है।

 

               भाजपा की समस्या यह है कि कांग्रेस दो कदम आगे बढ़ाती है और फिर तीन कदम पीछे हट जाती है। वास्तव में कांग्रेस की यह समस्या सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है बल्कि कांग्रेस का यह हाल पूरे देश में है। अजीब बात यह है कि कांग्रेस की यह समस्या दिल्ली में भाजपा की समस्या बन गई है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भाजपा के विरोध में इतना आगे चले गए हैं कि उन्हें कांग्रेस की बर्बादी दिखाई नहीं दे रही है। राहुल गांधी यह समझने को तैयार नहीं हैं कि उनकी लड़ाई सिर्फ भाजपा से नहीं है बल्कि दूसरे विपक्षी दलों से भी है। जहां भाजपा से लड़ने के लिए विपक्षी दलों को साथ लाने की जरूरत है, वहां तो ठीक है लेकिन जहां विपक्षी दल कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहे हैं वहां तो कांग्रेस को सोच समझ कर आगे बढ़ने की जरूरत है। कांग्रेस ने नारा दिया है, ‘हाथ बदलेगा हालात’ लेकिन सवाल यह है कि जिसके अपने हालात खराब हैं, वो क्या हालात बदलेगा । जिस आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर कांग्रेस ने अभी सात महीने पहले लोकसभा चुनाव लड़ा था, उसी पार्टी के सर्वोच्च नेता को कांग्रेस नेता अजय माकन ने एन्टी नेशनल, भ्र्ष्ट और धोखेबाज कहा है। अजय माकन ने केजरीवाल को एन्टी नेशनल बोलते समय आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस की दोस्ती को बड़ी गलती माना है।

 

इसके बाद आप और कांग्रेस के बीच तकरार बहुत बढ़ गई है। राहुल गांधी ने केजरीवाल को मोदी की तरह झूठे वादे करने वाला बता दिया है तो केजरीवाल ने राहुल गांधी को कोसना शुरू कर दिया है। केजरीवाल कह रहे हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन वो देश बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हैरानी की बात है कि अचानक राहुल गांधी दिल्ली चुनाव में प्रचार छोड़कर गायब हो गए हैं। इसके अलावा प्रियंका गांधी भी दिल्ली में प्रचार करती दिखाई नहीं दे रही हैं। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली चुनाव को अपनी दिल्ली शाखा के ऊपर छोड़ दिया है। आप और कांग्रेस का आपस में कोई मेल नहीं है लेकिन कांग्रेस ने आप के साथ मिलकर दिल्ली का लोकसभा चुनाव लड़ा था। वास्तव में आप और कांग्रेस के मिलकर चुनाव लड़ने का एकमात्र आधार मोदी विरोध था ।

 

              जब कांग्रेस मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोक नहीं पाई है तो उसे दिल्ली में अपनी बदहाली की चिंता सताने लगी है। लगातार पंद्रह वर्ष तक दिल्ली में शासन करने वाली कांग्रेस अब विपक्ष से भी गायब हो चुकी है। आज दिल्ली में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। दिल्ली के कांग्रेस नेताओं को लगता है कि अब वो केजरीवाल के खिलाफ लड़ते दिखाई नहीं दिये तो दिल्ली से कांग्रेस बिल्कुल साफ हो जाएगी । दूसरी तरफ राहुल गांधी अभी भी दुविधा में दिखाई दे रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर कांग्रेस केजरीवाल के खिलाफ गंभीरता से लड़ती है तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। राहुल गांधी को कांग्रेस का आगे बढ़ना तो अच्छा लगता है लेकिन इससे भाजपा को थोड़ा सा भी फायदा नहीं होना चाहिए।

 

राहुल गांधी की यह समस्या दिल्ली तक सीमित नहीं है बल्कि कई प्रदेशों में यही हालात हैं। बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस का सफाया कर दिया है और गठबंधन में होने के बावजूद बंगाल में कांग्रेस को कोई जगह देने को तैयार नहीं हैं। कहने को तो बंगाल में कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस  के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन ममता बनर्जी के खिलाफ राहुल गांधी ने बोलते दिखाई नहीं दिये। राहुल गांधी यह समझने को तैयार नहीं हैं कि विपक्षी दलों ने राज्यों की राजनीति से कांग्रेस को बाहर किया है । जहां भाजपा से कांग्रेस से सत्ता छीनी है, वहां कांग्रेस विपक्ष में बनी हुई है लेकिन जहां विपक्षी दलों ने कांग्रेस से सत्ता छीनी है, वहां तो कांग्रेस विपक्ष से भी बाहर हो गई है। विपक्षी दलों के पास जो जनाधार है, वो उन्होंने कांग्रेस से ही छीना है । कांग्रेस को अपना जनाधार वापिस लेने के लिए भाजपा के साथ-साथ विपक्षी दलों से भी लड़ना है।

 

              अब कांग्रेस के लिए जरूरी हो गया है कि अगर उसे अपनी राजनीति बचानी है तो विपक्षी दलों के खिलाफ भी उसी गंभीरता से लड़ना होगा जितनी गंभीरता से भाजपा से लड़ रही है। दिल्ली में अगर आम आदमी पार्टी चुनाव हार जाती है तो उसके लिए पंजाब और दूसरे प्रदेशों में मुश्किल खड़ी हो जाएगी । पंजाब में भाजपा ने नहीं बल्कि आप ने कांग्रेस से सत्ता छीनी है। अगर आप दिल्ली में हारती है तो इसका फायदा पंजाब में कांग्रेस को मिलेगा। राहुल गांधी को समझना होगा कि केजरीवाल ने कांग्रेस को सिर्फ दिल्ली और पंजाब में ही नहीं बल्कि गुजरात, हिमाचल प्रदेश, गोआ और हरियाणा में भी नुकसान पहुंचाया है । कांग्रेस को अपनी इस दुविधा से बाहर निकलने की जरूरत है कि उसे सिर्फ भाजपा से लड़ना है। उसकी लड़ायी सिर्फ भाजपा से नहीं बल्कि दूसरे विपक्षी दलों से भी है । उसे क्षेत्रीय दलों का पिछलग्गू बनना छोड़ना होगा और अपनी वास्तविक ताकत को समझना होगा। उसे अपना मुस्लिम और दलित वोटबैंक वापिस पाना है तो उसे सिर्फ भाजपा से नहीं बल्कि उन क्षेत्रीय दलों के खिलाफ भी लड़ना होगा जिन्होंने उसके जनाधार पर कब्जा किया हुआ है। अगर कांग्रेस अपनी दुविधा से बाहर निकल आती है तो उसके पुनरुत्थान का रास्ता साफ हो जाएगा। 
 

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