जन सेवा के लिए सदैव समर्पित रहे बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह
Focus News 31 January 2025 0जन सेवा के लिए सदैव समर्पित रहे बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह
बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह को बिहार केसरी के नाम से भी जाना जाता है। अगर द्वितीय विश्वयुद्ध की अवधि को छोड़ दिया जाये तो 1937 से लेकर 1961 तक वे लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा अनुग्रह नारायण सिन्हा के साथ वे भी आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। 21 अक्तूबर, 1887 को नवादा जिले के खनवाँ में जन्मे श्रीकृष्ण सिंह का पैतृक गांव मौजूदा शेखपुरा जिले में पड़ता है। 1921 से ही उन्होंने लगातार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बिहार का नेतृत्व किया।आजादी के बाद बिहार के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
बिहार केसरी डॉ. श्री कृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1887 ई. (तद्नुसार कार्तिक शुक्ल पंचमी संवत् 1941 वि.) को नवादा जिला के नरहट थाना अन्तर्गत खनवाँ ग्राम में हुआ था। बिहार भारत का पहला राज्य था, जहाँ सबसे पहले ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन उनके शासनकाल में हुआ। स्वतंत्रता-संग्राम के इस अग्रगण्य सेनानी का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र एवं जन-सेवा के लिये समर्पित था । स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद बिहार के नवनिर्माण के लिए उन्होंने जो कुछ किया उसके लिए बिहारवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे । राजनीतिक जीवन के दुरुह संघर्ष में निरन्तर संलग्न रहने पर भी जिस स्वाभाविकता और गम्भीरता के साथ वे अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते थे,वह आज के युग मे अत्यन्त दुर्लभ है। सत्य और अहिंसा के सिद्धांत में उनकी आस्था अटल थी।
अपनी अद्भुत कर्मठता,उदारता एवं प्रखर राजनीतिक सूझ-बूझ के धनी डॉ.श्रीकृष्ण सिंह सन् 1917 ई.में लेजिस्लेटिव कौंसिल और सन् 1934 ई.में केन्द्रीय एसेम्बली के सदस्य चुने गये। सन् 1931 ई. का भारतीय संविधान जब 1 अप्रैल 1937 से लागू हुआ तो डॉ.श्रीकृष्ण सिंह के प्रधानमंत्रित्व से ही बिहार में स्वायत्त शासन का श्रीगणेश हुआ। वे ही बिहार के एक ऐसे वरेण्य कालपुरूष थे जो जीवन की अंतिम घड़ी (31 जनवरी 1961) तक बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर बने रहे। उन्होंने इस राज्य का लगभग 15 वर्षो तक मुख्य मंत्री के रूप में सफलतापूर्वक नेतृत्व किया था एवं इस राज्य के नव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
श्रीबाबू का जन्म अपने ननिहाल मुंगेर जिले के खनवा में 21 अक्टूबर 1887 को हुआ था। वैसे उनका पैत्रक गाँव माउर (बरबीघा के पास) शेखपुरा जिले में आता है। जब वे मात्र पांच साल के थे तब उनकी माँ की मृत्यु प्लेग की वजह से हो गई थी।उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई अपने गाँव और जिला स्कूल मुंगेर से की। उसके बाद 1906 में पटना कालेज चले गए जहाँ से उन्होंने कानून की पढाई पूरी करने के बाद 1915 में मुंगेर आकर वकालत शुरू कर दी।
1916 में महात्मा गाँधी से बनारस में इनकी पहली मुलाक़ात हुई। शाह मुहम्मद ज़ुबैर के मुंगेर स्थित घर में असहयोग आंदोलन के दौरान 1920 में गाँधी जी से हुई दुबारा मुलाक़ात के दौरान इन्होने भारत से अंग्रेजी शासन खत्म करने की शपथ ली और 1921 में अपनी वकालत छोड़ असहयोग आंदोलन में कूद गए।1922 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 1923 तक ये जेल में रहे। 1927 में विधान परिषद के सदस्य बने और 1929 में बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव बन गए।1930 के सत्याग्रह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।गिरफ्तारी के दौरान उनके हाथों और छाती पर गंभीर चोटों आईं उन्हें छह महीने के लिए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया फिर सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान दो साल के लिए फिर से गिरफ्तार किया गया। गांधी- इरविन समझौते के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। फिर इन्होंने किसान सभा के साथ काम शुरू किया। 9 जनवरी, 1932 में दो साल सश्रम कारावास और 1000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई । उन्हें अक्टूबर 1933 में हजारीबाग जेल से रिहा किया गया।1934 में बिहार में आए भूकंप के बाद राहत और पुनर्वास में शामिल हुए ।1934 से 1937 के लिए मुंगेर जिला परिषद के अध्यक्ष बने। 1935 में कांग्रेस की केंद्रीय सभा के सदस्य बन गए।उन्होंने 20 जुलाई 1937 तक अपनी पार्टी की अल्पसंख्यक सरकार का नेतृत्व किया। राजनैतिक बंदियों की रिहाई के प्रश्न पर इन्होंने और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने त्याग पत्र की धमकी देकर अंग्रेज सरकार को झुकने के लिए बाध्य कर दिया था।1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ होने पर कृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल ने त्याग पत्र दे दिया। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए गांधी जी ने सिंह को बिहार का प्रथम सत्याग्रही नियुक्त किया था,1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी ये जेल में बंद रहे।
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद मार्च 1946 में बिहार असेम्बली के चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। 2 अप्रैल 1946 को बिहार में दूसरी बार काँग्रेस की सरकार बनी। उनके अनेक उल्लेखनीय कार्याे में से एक अति महत्वपूर्ण कार्य भूमि सुधार कानून का पारित होना है। इसके फलस्वरूप बिहार भारत का ऐसा पहला राज्य बना जहां 1950 में ही जमींदारी प्रथा समाप्त हो गई। जमींदारी प्रथा का तोड़ा जाना आर्थिक और सामाजिक शोषण के खिलाफ लड़ाई का प्रथम पड़ाव था। 1952-57 के बीच श्रीबाबू द्वारा बरौनी तेल रिफाइनरी जैसे उद्योगों, हटिया, बोकारो स्टील प्लांट, बरौनी उर्वरक संयंत्र, बरौनी थर्मल पावर प्लांट, हाइडल पावर स्टेशन मैथन अल्झौर में सल्फर खानों, सिंदरी उर्वरक संयंत्र, कारगिल कोयला वाशरी, बरौनी डेयरी परियोजना, आदि के लिए एचईसी संयंत्र राज्य के सर्वांगीण विकास की नींव रखी गई।
बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए कृष्ण सिंह का 31 जनवरी, 1961 ई. को निधन हो गया। उनके मित्र अनुग्रह नारायण सिंह लिखते हैं कि 1921 के बाद से बिहार का इतिहास श्री बाबू के जीवन का इतिहास है। प्रख्यात समाजवादी चिंतक एवं नेता मधु लिमये ने अपनी पुस्तक ’’समाजवाद के पचास बरस’’ में लिखा है कि ’’डॉ. श्री कृष्ण सिंह को यह श्रेय अवश्य मिलना चाहिए कि उन्होने अपने शासन काल में अमेरिका की टिन्सी घाटी की तरह बिहार, बंगाल के हित के लिए दामोदर घाटी योजना बनवाई जिसमें देश हित का ज्यादा ध्यान रखा।