भारतभूमि देवभूमि है, वीर प्रसूता है, सब रत्नों को उपजाने जाने वाली है और यह ज्ञानभूमि भी है। यहीं पर जीव-जगत से संबंधित अनेक विषयों के चिंतन स्वरूप विश्व के आदि ग्रंथ वेदों ने आकर लिया। तदनंतर उपनिषद और स्मृति ग्रथों की रचना व्यापक ज्ञान और चिंतन की साक्षी है। यहीं पर महर्षि वाल्मीकि द्वारा आदिकाव्य रामायण की रचना हुई तो युद्ध के मैदान में सीधे भगवान श्रीकृष्ण के मुख से श्रीमद्भगवत गीता निसृत हुई। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी भारत-भारती नामक पुस्तक में लिखा है-
शैशव दशा में देश प्राय: जिस समय सब व्याप्त थे,
नि:शेष विषयों में तभी हम प्रौढ़ता को प्राप्त थे।
संसार को पहले हमीं ने ज्ञान-भिक्षा दान की,
आचार की, व्यापार की, व्यवहार की, विज्ञान की।।
भारतभूमि ज्ञान-विज्ञान एवं अध्यात्म की भूमि है। समय समय पर तीर्थ , व्रत और पर्व- उत्सव हमें आत्ममंथन और सुधार-परिष्कार का संदेश देते हैं। इस बार का महाकुंभ 144 वर्ष बाद महायोगयुक्त महाकुंभ है, जिसमें अनेक अखाड़े, अनेक तपस्वी संत और करोड़ों भक्त- श्रद्धालु पवित्र स्नान कर चुके हैं। अनेक संत अपने-अपने ढंग से शांति, एकता और अध्यात्म का संदेश दे रहे हैं। जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने इस महाकुंभ को सृजन से विसर्जन तक की यात्रा बताया है। श्रीमद्भागवत महापुराण मर्मज्ञ आचार्य नारायण दास ने इसे जीव व परमात्मा के मिलन का महापर्व कहा है। आर्ट ऑफ़ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर ने इसे पूर्णता, शांति और एकता का निदर्शन बताया है तो परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने इस महाकुंभ को समरसता व आध्यात्मिक उन्नति का मूल कहा है। यह निर्विवाद सत्य है कि यह महाकुंभ आध्यात्मिक उन्नति का सर्वोच्च साधन है। इस बार के महाकुंभ में देश-विदेश से लगभग 50 करोड़ श्रद्धालुओं के सहभाग करने का अनुमान है। वहीं देश-विदेश के अनेक शोधार्थी महाकुंभ की भव्यता व दिव्यता प्रबंधन आदि विषयों पर शोध भी कर रहे हैं। यह महाकुंभ अध्यात्म के साथ-साथ ज्ञान का केंद्र भी बन रहा है। अनेक संस्थाएं यहां अपने आयोजन कर रही हैं। कई स्थानों पर भगवत गीता एवं राम कथाएं हो रही हैं। बड़े मंचों से बड़े संत एवं कथावाचक और राजनीतिक क्षेत्र के जनप्रतिनिधि सभी को सामाजिक समरसता, आध्यात्मिक उन्नति एवं वैश्विक मानवता के कल्याण हेतु संदेश दे रहे हैं।
विगत दिनों एक ऐसे ही भव्य आयोजन का समाचार मिला, जिसका नाम है- ज्ञान महाकुंभ। यह आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुसांगिक संगठन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित किया जा रहा है। 10 जनवरी 2025 से आरंभ हुए इस ज्ञान महाकुंभ समारोह के अंतर्गत 9 फरवरी तक कई बड़े और महत्वपूर्ण कार्यक्रम होने सुनिश्चित हुए हैं। यह ज्ञान महाकुंभ हमें श्रीमद्भगवत गीता की याद दिलवाता है जहां अध्याय 4 के श्लोक संख्या 38 में कहा गया है- न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते… अर्थात् इस दुनिया में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है। ज्ञान महाकुंभ की संकल्पना निश्चित ही नई और महत्वपूर्ण है। आयोजन समिति द्वारा जारी पत्रक से जानकारी के अनुसार- देश में शिक्षा के बढ़ते व्यापारीकरण के कारण यह व्यवसाय का रूप लेती जा रही है। भारतीय परंपरा के अनुसार शिक्षा सेवा का माध्यम है। शिक्षा समाज व सरकार की प्राथमिकता का विषय बने एवं यह प्रक्रिया देशभर में आगे बढ़े, इस दिशा में सार्थक प्रयास हेतु ज्ञानकुंभ तथा ज्ञान महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है।
संकल्पना में आगे बताया गया है कि- जिस प्रकार कुंभ मेले में जाने वाले कोई भी व्यक्ति मन में भक्ति भाव धारण करके व स्वयं या परिवार के साथ सहभागी होते हैं उसी प्रकार ज्ञान महाकुंभ में भी विद्वान, आचार्य, छात्र आदि इसी भाव से सहभागी होंगे। जिस प्रकार कुंभ में देशभर के साधु ,संत, महात्मा आदि एकत्रित होकर चिंतन मंथन करके देश के नागरिकों को उचित दिशा प्रदान करने का कार्य करते हैं इसी प्रकार हम सब शिक्षा जगत के लोग सामूहिक रूप से ज्ञान महाकुंभ में मिलकर चिंतन मंथन करके देश की शिक्षा को भारत केंद्रित बनाने की दिशा में हो रहे प्रयासों को अधिक गति प्रदान करें यही ज्ञान महाकुंभ का मुख्य उद्देश्य है। ध्यातव्य है कि शिक्षा संस्कृति उत्थान्न न्यास विगत में हरिद्वार, नालंदा, पुडुचेरी और कर्णावती आदि स्थानों पर ज्ञान कुंभ के आयोजन करते हुए देशभर में ज्ञान और शिक्षा के प्रति जन जागरण के कार्यक्रम आयोजित कर चुका है। इस ज्ञान महाकुंभ में हरित महाकुंभ,एक राष्ट्र एक नाम-भारत, निजी शैक्षिक संस्थानों की शिक्षा में भूमिका, छात्र सम्मेलन, महिला सम्मेलन,आचार्य सम्मेलन, शासन प्रशासन की शिक्षा में भूमिका, भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय भाषा, शिक्षा से आत्मनिर्भरता आदि विषयों पर विभिन्न आयोजन होने हैं।
सर्वविदित है कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास समाज और राष्ट्र जीवन में सेवा भाव से विगत कई दशकों से काम कर रहा है। इसके ध्येय वाक्य हैं- देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा, मां,मातृभूमि एवं मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं, समस्या नहीं समाधान की चर्चा करो, देश को आत्मनिर्भर बनाना है तो छात्रों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। गौरतलब है कि ये सभी ध्येय वाक्य एक बड़े संकल्प, परिवर्तन व निर्माण की संकल्पना पर आधारित हैं। आज भारत विकसित भारत,समर्थ भारत, सशक्त भारत और विश्व गुरु भारत के संकल्प को लेकर आगे बढ़ रहा है, ऐसे में यह आवश्यक है कि जन-जन का और युवा शक्ति का इस संकल्प में योगदान हो। इसके लिए व्यक्ति निर्माण और मानस निर्माण की आवश्यकता है। क्योंकि मानस निर्माण होने के उपरांत ही व्यक्ति मेरा क्या और मुझे क्या की संकुचित मानसिकता से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान करने हेतु प्रतिबद्ध हो सकता है। प्रयागराज में महाकुंभ के साथ-साथ यह ज्ञान महाकुंभ समाज और राष्ट्र जीवन को नई दिशा देगा, ऐसा विश्वास है।