महात्मा गांधी की सादगी और संयम के लिए और भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विश्व विख्यात महाराष्ट्र में सेवाग्राम स्थित नव स्थापित महात्मा गांधी प्राकृतिक जीवन विद्यापीठ के परिसर में गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति, राजघाट दिल्ली द्वारा आयोजित 17 वें प्राकृतिक चिकित्सा सम्मेलन में देशवासियों के स्वास्थ्य, खूब महंगे होते उपचार से कराहते देशवासियों की दशा, अंग्रेजी दवाइयों के बढ़ते अनावश्यक प्रचलन और प्राकृतिक चिकित्सा की उपयोगिता और इसके विस्तार की संभावना को लेकर तीन दिनों (10,11 और 12 जनवरी 2025) तक विभिन्न सत्रों में गंभीर चिंतन मनन का अप्रत्याशित दौर चला, जिसमें 10 राज्यों से 300 से अधिक संख्या में प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े विशेषज्ञों, विद्यार्थियों और समाजकर्मियों ने भाग लिया। सम्मेलन के आखिरी दिन स्वास्थ्य और चिकित्सा के नाम पर आम लोगों की सेहत पर हो रहे क्रूर खिलवाड़ पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए तीन खास प्रस्ताव सर्व सम्मति से पारित किए गए।
केरल के विख्यात प्राकृतिक चिकित्सक डॉ जैकब बडकमचेरी द्वारा पेश पहले प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एच एम पी वी वायरस को कोरोना जैसी महामारी बताते हुए इसके तेजी से फैलने के अफवाहों की हकीकत तलाशने के लिए सी बी आई से जांच कराने की मांग की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि एच एम पी वी को कोरोना जैसी गंभीर महामारी बताकर लोगों में भय पैदा करने के लिए निराधार बातें अफवाह के रूप में फैलाई जा रही है। अफवाह में कहा जा रहा है कि इस वायरस के कारण चीन में खलबली मची हुई है और अस्पतालों में इस वायरस के पीड़ितों की भीड़ बढ़ रही है जबकि चीन की सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट कहा है कि ऐसी कोई बात नहीं है। इस वायरस से लोगों को एकदम घबराने की कोई जरूरत नहीं है। बावजूद एच एम पी वी वायरस के नाम पर अफवाह फैलाया जा रहा है ताकि लोग बुरी तरह घबराए और डाक्टरों और अस्पतालों की आमदनी बढ़े। प्रस्ताव में कहा गया है कि इसे गंभीरता से लेकर पूरी जांच की जाए ताकि इसकी असलियत सामने आ सके।
सम्मेलन में दूसरे प्रस्ताव में खासकर केरल सरकार से मांग की गई है कि वह हाल ही में पब्लिक हेल्थ बिल 2024 को जल्द से जल्द वापस ले क्योंकि इस बिल से जनता के स्वास्थ्य का कोई भला नहीं होने वाला है, सिर्फ अंग्रेजी दवा कंपनियों के लिए जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने का जरिया ही बनेगा। यह बिल वास्तव में मानवाधिकार और भारतीय संविधान विरोधी है।
तीसरे प्रस्ताव में मांग की गई है कि डॉ जैकब सहित उन सभी डॉक्टरों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे वापस लिए जाएं क्योंकि इन डॉक्टरों ने आम जनता को ईमानदारी से सचेत करने का जो प्रयास किया है उसे आपराधिक करार देकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति, राजघाट, नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मी दास ने सम्मेलन को अभूतपूर्व रूप से कामयाब बताते हुए कहा कि गांधी जी ने प्राकृतिक चिकित्सा की जिस परंपरा को विकसित किया, उसका ही अनुशरण करते हुए गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति निरंतर अपने कार्यों और अभियानों को विस्तार देती आ रही है।
इस मौके पर महात्मा गांधी प्राकृतिक जीवन विद्यापीठ, सेवाग्राम के अध्यक्ष और वरिष्ठ समाजकर्मी नारायण भाई भट्टाचार्य ने कहा कि आजादी के बाद हमारे देश में जिस तरह से विभिन्न क्षेत्रों में बहुमुखी प्रगति हुई है, उस तरह से प्राकृतिक चिकित्सा का क्षेत्र आगे नहीं बढ़ पाया है बल्कि तमाम चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति एकदम पीछे रह गई है। जबकि यह पद्धति अपने देश के खान पान, रहन सहन और परंपरा के एकदम अनुकूल है और यह देश का भावी स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए कारगर पद्धति है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के आयुष विभाग को एक ऐसे प्रकोष्ठ का गठन करना चाहिए, जिससे प्राकृतिक जीवन पद्धति से जुड़ी प्राकृतिक चिकित्सा शामिल हो । साथ ही एक ऐसा कार्यक्रम तैयार करवाया जाए जिसके आधार पर भारत में प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का योजना बद्ध तरीके से प्रचार प्रसार हो सके। उन्होंने कहा कि हमारे देश के करोड़ों लोग महंगे इलाज के चक्कर में फंस गए हैं और सरकारी प्रयासों का लाभ भी देश की समस्त जनता को नहीं मिल पा रहा है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचार प्रसार के लिए स्वयंसेवी प्रयासों को महत्व दिया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति और योग को आधिकारिक प्रोत्साहन देना चाहिए।
तीन दिन के सम्मेलन में विभिन्न वक्ताओं ने इस पर जोर दिया कि अपने देश को पश्चिम से आयातित दवाइयों की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि उसके पास गांव में ही उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की औषधियों का भंडार है। लोगों को दवाइयों के अधिक उपभोग करने के बदले सही जीवन जीने का पाठ पढ़ाना ज्यादा जरूरी है और इन्हीं बातों पर महात्मा गांधी ने भी सबसे ज्यादा जोर दिया और स्वयं भी अनेक प्रयोग किए जो प्राकृतिक चिकित्सा के प्रेमियों के लिए एक नजीर है।
सम्मेलन में गांधी जी के विचारों और हवा, पानी, अग्नि, मिट्टी,योग, ध्यान और आहार आदि से उपचार के तौर तरीकों के साथ मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार के बारे में जिन विशेषज्ञों ने अपने वक्तव्य दिए उनमें महादेव विद्रोही,आदित्य पटनायक, डा जैकब वड़कमचेरी, पुनीत कुमार मलिक,भालचंद नेटके, धनंजय कुटे माटे, धनंजय धार्मिक,राजीव देशपांडे, डा विनोद पाठक, डॉ निर्मला पारखी, वेदांगी जोशी, प्रवीण सोडेकर, मोहन खडसे, सुबोध भटनागर, निशा कारगेती,प्रशांत तलवलकर, डॉ साक्षी रामतेके, आदित्य स्वरूप , सपना, विवेक ढोंगडे और प्रसून लतांत आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। सम्मेलन में नारायण भाई भट्टाचार्य और प्रसून लतांत द्वारा संपादित पुस्तक सेवाग्राम में *प्राकृतिक चिकित्सा के बढ़ते उपक्रम* और गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति नई दिल्ली की स्मारिका का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक में लक्ष्मी दास, नारायण भाई, प्रसून लतांत, कुमार कृष्णन, गुणवंत काल बान्दे आदि के महत्वपूर्ण लेख शामिल हैं। सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों की मौजूदगी और उनकी गहरी दिलचस्पी अपने देश में प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति बढ़ते लगाव को दर्ज कर रही थी। अगला राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा सम्मेलन केरल में करने की घोषणा की गई ।
केरल के विख्यात प्राकृतिक चिकित्सक डॉ जैकब बडकमचेरी द्वारा पेश पहले प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एच एम पी वी वायरस को कोरोना जैसी महामारी बताते हुए इसके तेजी से फैलने के अफवाहों की हकीकत तलाशने के लिए सी बी आई से जांच कराने की मांग की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि एच एम पी वी को कोरोना जैसी गंभीर महामारी बताकर लोगों में भय पैदा करने के लिए निराधार बातें अफवाह के रूप में फैलाई जा रही है। अफवाह में कहा जा रहा है कि इस वायरस के कारण चीन में खलबली मची हुई है और अस्पतालों में इस वायरस के पीड़ितों की भीड़ बढ़ रही है जबकि चीन की सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट कहा है कि ऐसी कोई बात नहीं है। इस वायरस से लोगों को एकदम घबराने की कोई जरूरत नहीं है। बावजूद एच एम पी वी वायरस के नाम पर अफवाह फैलाया जा रहा है ताकि लोग बुरी तरह घबराए और डाक्टरों और अस्पतालों की आमदनी बढ़े। प्रस्ताव में कहा गया है कि इसे गंभीरता से लेकर पूरी जांच की जाए ताकि इसकी असलियत सामने आ सके।
सम्मेलन में दूसरे प्रस्ताव में खासकर केरल सरकार से मांग की गई है कि वह हाल ही में पब्लिक हेल्थ बिल 2024 को जल्द से जल्द वापस ले क्योंकि इस बिल से जनता के स्वास्थ्य का कोई भला नहीं होने वाला है, सिर्फ अंग्रेजी दवा कंपनियों के लिए जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने का जरिया ही बनेगा। यह बिल वास्तव में मानवाधिकार और भारतीय संविधान विरोधी है।
तीसरे प्रस्ताव में मांग की गई है कि डॉ जैकब सहित उन सभी डॉक्टरों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे वापस लिए जाएं क्योंकि इन डॉक्टरों ने आम जनता को ईमानदारी से सचेत करने का जो प्रयास किया है उसे आपराधिक करार देकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति, राजघाट, नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मी दास ने सम्मेलन को अभूतपूर्व रूप से कामयाब बताते हुए कहा कि गांधी जी ने प्राकृतिक चिकित्सा की जिस परंपरा को विकसित किया, उसका ही अनुशरण करते हुए गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति निरंतर अपने कार्यों और अभियानों को विस्तार देती आ रही है।
इस मौके पर महात्मा गांधी प्राकृतिक जीवन विद्यापीठ, सेवाग्राम के अध्यक्ष और वरिष्ठ समाजकर्मी नारायण भाई भट्टाचार्य ने कहा कि आजादी के बाद हमारे देश में जिस तरह से विभिन्न क्षेत्रों में बहुमुखी प्रगति हुई है, उस तरह से प्राकृतिक चिकित्सा का क्षेत्र आगे नहीं बढ़ पाया है बल्कि तमाम चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति एकदम पीछे रह गई है। जबकि यह पद्धति अपने देश के खान पान, रहन सहन और परंपरा के एकदम अनुकूल है और यह देश का भावी स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए कारगर पद्धति है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के आयुष विभाग को एक ऐसे प्रकोष्ठ का गठन करना चाहिए, जिससे प्राकृतिक जीवन पद्धति से जुड़ी प्राकृतिक चिकित्सा शामिल हो । साथ ही एक ऐसा कार्यक्रम तैयार करवाया जाए जिसके आधार पर भारत में प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का योजना बद्ध तरीके से प्रचार प्रसार हो सके। उन्होंने कहा कि हमारे देश के करोड़ों लोग महंगे इलाज के चक्कर में फंस गए हैं और सरकारी प्रयासों का लाभ भी देश की समस्त जनता को नहीं मिल पा रहा है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचार प्रसार के लिए स्वयंसेवी प्रयासों को महत्व दिया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति और योग को आधिकारिक प्रोत्साहन देना चाहिए।
तीन दिन के सम्मेलन में विभिन्न वक्ताओं ने इस पर जोर दिया कि अपने देश को पश्चिम से आयातित दवाइयों की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि उसके पास गांव में ही उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की औषधियों का भंडार है। लोगों को दवाइयों के अधिक उपभोग करने के बदले सही जीवन जीने का पाठ पढ़ाना ज्यादा जरूरी है और इन्हीं बातों पर महात्मा गांधी ने भी सबसे ज्यादा जोर दिया और स्वयं भी अनेक प्रयोग किए जो प्राकृतिक चिकित्सा के प्रेमियों के लिए एक नजीर है।
सम्मेलन में गांधी जी के विचारों और हवा, पानी, अग्नि, मिट्टी,योग, ध्यान और आहार आदि से उपचार के तौर तरीकों के साथ मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार के बारे में जिन विशेषज्ञों ने अपने वक्तव्य दिए उनमें महादेव विद्रोही,आदित्य पटनायक, डा जैकब वड़कमचेरी, पुनीत कुमार मलिक,भालचंद नेटके, धनंजय कुटे माटे, धनंजय धार्मिक,राजीव देशपांडे, डा विनोद पाठक, डॉ निर्मला पारखी, वेदांगी जोशी, प्रवीण सोडेकर, मोहन खडसे, सुबोध भटनागर, निशा कारगेती,प्रशांत तलवलकर, डॉ साक्षी रामतेके, आदित्य स्वरूप , सपना, विवेक ढोंगडे और प्रसून लतांत आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। सम्मेलन में नारायण भाई भट्टाचार्य और प्रसून लतांत द्वारा संपादित पुस्तक सेवाग्राम में *प्राकृतिक चिकित्सा के बढ़ते उपक्रम* और गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति नई दिल्ली की स्मारिका का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक में लक्ष्मी दास, नारायण भाई, प्रसून लतांत, कुमार कृष्णन, गुणवंत काल बान्दे आदि के महत्वपूर्ण लेख शामिल हैं। सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों की मौजूदगी और उनकी गहरी दिलचस्पी अपने देश में प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति बढ़ते लगाव को दर्ज कर रही थी। अगला राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा सम्मेलन केरल में करने की घोषणा की गई ।