राम ही सच्ची स्वतंत्रता है।

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 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान राजनीतिक गलियारे , खासकर विपक्षी खेमें को रास नहीं आ रहा है। विपक्षी  खेमें को राजनीतिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का मूलभूत बौद्धिक विमर्श समझ में नहीं आ रहा हैं । राजनीतिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक स्वतंत्रता में सारांश और परमांश का संबंध है। इन दोनों के बीच अदृश्य संबंध है। यह अदृश्य  संबंध अविवेकी  क्रियाकलापों द्वारा अज्ञानता वश बाधित होकर’  विवेकी ज्ञान ‘ से वंचित कर देता है। अज्ञानता का उत्तरदाई कारक ‘ वासना’ (काम, क्रोध, मद  और लोभ) होता है । विवेकी  ज्ञान को प्रकाशित करने वाला कारक ‘ पुरुषार्थ’ (धर्म ,अर्थ, काम और मोक्ष ) होता है। व्यक्ति के काया  पर’ विवेक’ के बजाय ‘ वासना’ का नियंत्रण होता है तो वह पाशविक कृतियों में सम्मिलित होने लगता है और मानसिक अवसाद का शिकार होकर’ सत्य’ को ‘ असत्य ‘,’ तर्क ‘ को ‘ कुतर्क’, ‘ विज्ञान ‘ को’ ढोंग’ समझ जाता है .,यहीं से उस व्यक्ति के वैयक्तिक  चरित्र का पतन होने लगता है, विवेकी  प्रज्ञा  निश्तेज  होने लगती है और देव कार्य के बजाय असुर कार्य में प्रगलित हो जाता है।

 

           सरसंघचालक मोहन भागवत सोमवार को इंदौर में थे। वहां उन्होंने  राम जन्मभूमि न्यास के महासचिव श्री चंपत राय को ‘ राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ से पुरस्कृत  किया । इस पुरस्कार समारोह में मोहन भागवत ने कहा कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को “द्वादशी “के तौर पर मनाया जाना चाहिए. राम ही राष्ट्र हैं।  इसे ही ” भारत का सच्चा स्वतंत्रता” दिवस मनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “सदियों से आक्रांताओं के हमले से झेलने वाले भारत ने इसी दिन सच्ची स्वतंत्रता की अनुभूति की है। हमें आजादी मिली है लेकिन यह स्थापित नहीं हो पाई हैं । भारत को 15 अगस्त, 1947 को राजनीतिक आजादी मिली थी। हिंदुस्तान ने संविधान भी लागू किया लेकिन राज्य इसकी भावनाओं के मुताबिक नहीं चला। हम कैसे स्वीकार कर लें कि हमारे सपने पूरे हो गए हैं! और हमारी दिक्कतें कम हो गई है “। भागवत जी ने कहा है कि हम सभी के ” स्व ” राम जी, कृष्ण जी और शिवजी हैं। राम जी लोगों को उत्तर से दक्षिण जोड़ते हैं, राम जी राष्ट्र है। कृष्ण जी लोगों को पूर्व से पश्चिम जोड़ते हैं, कृष्ण जी राष्ट्र हैं और शिवजी भारत के  कण – कण में हैं।

 

            विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे जी और लोकसभा में विपक्षी नेता  राहुल गांधी इस बयान को ‘ देशद्रोही ‘ और ‘ राज्यद्रोही ‘ कह रहे हैं । उन लोगों  का  आक्षेप  है  राष्ट्रीय  स्वयंसेवक  संघ समर्पित भाजपा ने सभी संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा कर  लिया है !

 

               भारत लोकतांत्रिक और संवैधानिक लोकतांत्रिक राज्य है। भारत के प्रत्येक नागरिक और व्यक्ति को भयविहीन होकर संविधान द्वारा अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता है। मोहन भागवत विवेकी और गंभीर व्यक्तित्व हैं, उनके बयान का लोकतांत्रिक एवं सांस्कृतिक  आशय है । मोहन भागवत ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन को ‘ सच्ची स्वतंत्रता’ का दिवस  बताकर  अपने पूर्ववर्ती बयान को  संवैधानिकता प्रदान की है।

 

                 भागवत जी ने वर्तमान में यह बयान  देकर भाजपा और संघ के बीच पिछले कुछ महीनो से चल रही तनातनी को समाप्त करने की कोशिश की हैं । लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी को अब संघ की आवश्यकता नहीं है तो इससे दोनों के रिश्ते में तनाव दिखा था। भागवत ने एक तरफ बीजेपी से संघ के रिश्ते को  सामान्य करने की कोशिश की है तो दूसरी तरफ हिंदुत्व समर्थकों को स्पष्ट संकेत दिया है कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की  लौ की वजह से भारतीय जनता पार्टी को राज्यों में सफलता मिल रही है। यह बयान हिंदुत्व समर्थकों के लिए उत्प्रेरक है कि देश में अपने विचारधारा की सरकार चाहिए तो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की लहर को धीमा ना होने दे।

 

                   राहुल गांधी ने अपने भाषण में ‘ इंडियन स्टेट’ से लड़ने की बात कही है। इसको लेकर उनकी आलोचना हो रही है। राहुल गांधी भागवत पर     ‘देशद्रोह’ का आरोप लगा रहे हैं लेकिन ‘ इंडियन स्टेट’ से लड़ने की बात कर के वह स्वयं सवालों के घेरे में हैं। राहुल गांधी का ‘ इंडियन स्टेट’ के खिलाफ बयान राजनीतिक शब्दावली हैं। आपातकाल के दौरान स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने      ‘ इंडियन स्टेट’ के सारे उपकरणों पर बलात कब्जा कर लिया था। प्रत्येक व्यक्ति को बौद्धिक व्यक्तियों के बयान को सामाजिक सद्भाव के अर्थों में लेने की आवश्यकता है। राहुल गांधी प्रत्येक तथ्य को तोड़ मरोड़ कर राज्य की एकता और अखंडता को चुनौती दे रहे हैं।

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