जैसा मौसम, वैसा खान-पान

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कहते हैं कि तंदुरूस्ती खुदा की हजार नियामतों में से एक है और जिसका तन स्वस्थ रहता है उसका मन भी स्वस्थ रहता है। स्वस्थ नागरिक ही किसी भी देश की ताकत होते हैं। दुर्भाग्य से आज की इस भागदौड़ भरी जीवनचर्या, खान-पान में आए बदलाव, बढ़ते हुए तनाव से शरीर बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जिन्दगी के कई रंग होते हैं। जो इन रंगों को पहचान लेता है उसका जीवन महक उठता है।
विकास का अर्थ सिर्फ भौतिक संपत्तियों में वृद्धि नहीं है बल्कि इसमें व्यक्तित्व और आत्मा दोनों ही शामिल होते हैं, अतः भौतिकवाद से बचें। अपनी आत्मा की पवित्राता का विचार करें। खाएं-पिएं, घूमे-फिरें किंतु संस्कार, सभ्यता और संस्कृति को न भूलें।   जिन्दगी की किताब पढ़ें और तय करें कि आपको क्या चाहिए। रिश्ते ऐसे चुनें कि कुम्हलाएं नहीं।
अनावश्यक तनाव पैदा न करें। कांटों की चुभन सिखाती है खिलने का सुख। गुलाब की तरह खिलें और अपने रचनात्मक कार्यों से घर-आंगन, समाज और देश को महकाएं। एक महानगरीय जिंदगी कई तरह की त्रासदी भी लाती है और इन त्रासदियों के बीच फुर्सत के पल खोजना असंभव नहीं तो कठिन तो जरूर है।
प्रकृति के बीच जाने का प्रयास कीजिए। प्रकृति से बड़ा कोई सर्जक नहीं है। याद रहे गणित नहीं है जिन्दगी। मौसम के अनुरूप पहनावा भी जरूरी है और खान-पान भी। मौसम के खास अंदाज में ढलने के लिए उसके खान-पान को समझना और उस पर विशेष ध्यान देना जरूरी होता है। तभी आप स्वस्थ रहकर उसका लुत्फ उठा सकते हैं।
फरवरी महीने तक मौसम सुहाना ही रहेगा। यही मौसम स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे अनुकूल मौसम माना गया है।
ठंड के मौसम में हम ऊनी वस्त्रों के द्वारा शरीर को संपूर्ण सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करते हैं। कोल्ड क्रीम लगाकर अपनी त्वचा को भी उज्ज्वल रखते हैं। जरूरी है इस दौरान खान-पान पर विशेष ध्यान देना ताकि शरीर को पौष्टिक खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिल सके। ठंड के मौसम में हरी साग-सब्जियां, फल, सलाद, दूध, दही प्रचुर मात्रा में मिलता है।
आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां, प्रोटीन, विटामिनयुक्त भोजन के सेवन का सर्वोत्तम समय दिसम्बर-फरवरी का समय ही माना गया है। सुबह की सैर का लुत्फ भी इसी मौसम में उठाया जा सकता है। पर्यटन के लिए भी नवम्बर से फरवरी का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि शरीर को अन्दर और बाहर दोनों ओर से सरीखा सुन्दर एवं स्वस्थ बनाने का यही सर्वश्रेष्ठ मौसम है।
बदलते हुए मौसम के मिजाज के अनुकूल ही अपनी दिनचर्या में बदलाव लाइये। दवाओं और टॉनिक पर निर्भर रहने की बजाए अनुशासित जीवन जीने की आदत डालिए। खान-पान में सावधानियां निरोगी रहने का प्रथम मंत्रा हैं।
याद रहे कि आपको जीने के लिए खाना है, खाने के लिए जीना नहीं है। फैसला आपको करना है। शरीर आपका है और उसे सुन्दर एवं स्वस्थ रखना यह आपकी अपनी नैतिक जिम्मेदारी है।
फिर आप किसी अन्य पर उपकार थोड़े ही कर रहे हैं। अपनी परवाह यदि आप स्वयं नहीं करेंगे तो दूसरे को थोड़े परवाह होगी कि वह आपका ध्यान रखे। मौसम के अनुकूल रहन-सहन, खान-पान की आदत ही आपको सुन्दर एवं स्वस्थ रखेगी।