आजकल शादी-ब्याह का सीजन बड़े जोर -शोर से जोरों पर चल रहा है और शादियों में भोजन करने वाले अतिथिगण प्लास्टिक से बने दोने- पत्तल व गिलासों का जमकर उपयोग कर रहे हैं किंतु शायद उन्हें यह मालूम नहीं है कि यह हमारे बेशकीमती शरीर के लिए काफी घातक होते हैं। इस विषय में हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि यूं तो हम सदा हर कार्यक्रम में सस्ते, हल्के प्लास्टिक के दोने-पत्तल व गिलासों को खाने-पीने में खूब पसंद करते हैं किंतु थर्माकोल तथा प्लास्टिक से बने प्लेट और गिलास अक्सर खाने-पीने की चीजों में केमिकल छोड़ते हैं जिससे हम बीमार होकर अस्पतालों की शरण में पहुंचने लगते हैं क्योंकि इन प्लास्टिक्स में बाइस्फेनाल ए (बीपीए) नामक केमिकल होता है जो प्लास्टिक आइटम्स में सर्वाधिक प्रयोग होता है। इससे हमारे शरीर के हार्मोंस प्रभावित हो जाते हैं।
वह बताते हैं कि हरेक प्रकार के प्लास्टिक का अपने एक तय समय के उपरांत केमिकल छोड़ना तय होता है परंतु जब हम इनमें गर्म चीज डालते हैं तो प्लास्टिक के कैमिकल्स टूटने शुरू हो जाते हैं। फलस्वरूप, ये खाने-पीने की चीजों में घुलकर गंभीर बीमारियों का कारण बनने लगते हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानते हैं तो इसके जहरीले जहर से पर्यावरण व मिट्टी के साथ-साथ स्वयं को बचाने रखने हेतु सदैव प्लास्टिक से निर्मित चीजों का बहिष्कार करना चाहिए तथा शादी अथवा अन्य प्रयोजनों में थर्माकोल से बनी प्लेट एवं गिलास के विकल्प के तौर पर मिट्टी के कुल्हड़ और ढाक के पत्तों से तैयार प्लेट यानी दोने-पत्तलों को बढ़ावा देने पर अधिक जोर देना चाहिए। यकीनन यह हमारी सेहत के लिए स्वास्थ्यवर्धक और प्रकृति के अनुरूप प्राकृतिक साबित होगा।
आपको यह भी जानकर हैरानी होगी कि हम अक्सर जिन छोटी सी पालिथिन की थैलियों में दुकानों से खरीदकर गर्म चाय लेकर आते हैं और बड़े चाव के संग दोस्तों के साथ बैठकर पीते हैं, वह भी हमारे शरीर हेतु काफी नुकसानदेह होता है जिसका दुष्परिणाम तुरंत तो नहीं, हां कुछ दिनों बाद अवश्य पता चलता है। इसका असर लंबे समय तक लगातार प्रयोग करने पर यह कैंसर के रूप में उभर कर एक खतरे के रूप में हमारे सम्मुख नजर आता है। वाकई यह प्लास्टिक हमारे दैनिक जीवन में बहुत अधिक खतरनाक है।
इसीलिए अनेक पोषाहार विशेषज्ञ अपनी सलाह देते हुए कहते हैं कि इसका रोजमर्रा के कामों में कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए, साथ ही इसमें खाने की चीजें भी नहीं लानी चाहिए अन्यथा इसके भविष्य में आपको कई भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
गौरतलब है कि हमारे देश में 2000 से भी अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है पर बड़ी मुश्किल से हम पाँच प्रकार की वनस्पतियों का ही उपयोग अपने जीवनकाल में कर पाते हैं।
एक नए शोध से पता चला है कि हमारे यहां आम तौर पर केले के पत्तांे से बने दोने-पत्तल में भोजन परोसना भले ही पुराने लोगों को शुभ व सेहतमंद लगता हो लेकिन सच्चाई यही है कि पलाश के पत्तलों में भी भोजन करने से सेहत को कई लाभ होता है।
आयुर्वेद के शब्दों के अनुसार रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों से बचने के लिए आज भी अधिकांश गावों में स्टील के बर्तनों के स्थान पर पलाश के पत्तलों में भोजन करना शरीर के लिए हितकर माना जाता है। यहीं नहीं, पाचन तंत्रा सम्बन्धी रोगों हेतु भी इसका जमकर प्रयोग होता दिखलाई देता है।
आयुर्वेद के मुताबिक लाल फूलों वाले पलाश से तैयार पत्तल में भोजन करने से बवासीर (पाइल्स) के रोगियों को काफी फायदा होता है जबकि जोड़ों के दर्द के लिए करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल बेहद उपयोगी साबित होता है।
राजधानी के बड़े डाक्टरों की बात करें तो वह भी कहते हैं कि इस मामले में पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक फायदेमंद माना जाता है। लकवा (पैरालिसिस) से पीडि़त रोगियों के लिए अमलतास की पत्तियों के बने पत्तलों में खाने से उनका स्वास्थ्य सदैव उत्तम बना रहता है।
इस प्रकार, जिस प्लास्टिक को हम बड़ी शान से अपने जीवन का हिस्सा बनाए हुए हैं, वह धीरे -धीरे हमारी नसों में पैबस्त होकर हमें बीमार बनाता जा रहा है। निस्संदेह, रसायन विज्ञान की यह खोज मानवता के लिए एक धीमा जहर बन चुका है जिसको लेकर अब गंभीर होते हुए आपको सोचना है कि प्लास्टिक से परहेज करके अपनी पीढि़यों को बचाना है या फिर उन्हें उनकी किस्मत पर छोड़ देना है।