तीर्थ , व्रत और पर्व- उत्सव हमें आत्ममंथन और सुधार-परिष्कार का संदेश देते हैं। भिन्न-भिन्न रूपों में प्लास्टिक जीवन के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। प्लास्टिक कचरा पर्यावरण को भी कुरूप कर रहा है। इससे जल एवं खाद्य पदार्थ भी तेजी से प्रदूषित हो रहे हैं. क्या इस महाकुंभ के अवसर पर हम हरित महाकुंभ का संकल्प ले सकते हैं?
144 वर्ष के बाद महायोग के बीच प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है। विगत 2-3 दिन में ही करोड़ों श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगा चुके हैं। छोटे बड़े सैकडों अखाड़े, लाखों संत और करोड़ों भक्त यह भव्य और दिव्य समागम है। इस बार के महाकुंभ में लगभग 50 करोड़ श्रद्धालुओं के सम्मिलित होने का अनुमान है जिसके लिए व्यापक व्यवस्थाएं की गई हैं। प्रयागराज कुंभ इस अर्थ में भी महत्वपूर्ण है कि वहां गंगा,यमुना और सरस्वती का प्रयाग अथवा संगम है। क्या हमने इन पवित्र नदियों को प्रदूषित नहीं किया है? अशोधित सीवरेज,घरेलू कूड़ा एवं प्लास्टिक सीधे नदियों में बह रहा है। क्या हम ऐसे प्रदूषित जल में स्नान कर पाएंगे?
तीर्थ नगरी प्रयागराज सभी का खुले मन से स्वागत तो करती ही है, वह जन-जन को- सब समान, सबका सम्मान का भी संदेश देती है। भारतीय ज्ञान परंपरा में आदि ग्रंथ वेदों से लेकर आज तक जल और जल स्रोतों विशेष रूप से नदियों के संरक्षण- संवर्धन के लिए विशेष चिंता एवं चिंतन मिलता है। नदियों पर अथवा कुंभ जैसे अवसरों पर स्नान के माध्यम से यह संदेश भी निहित है कि हम जल स्रोतों अथवा नदियों को स्वच्छ रखें, उनका संरक्षण- संवर्धन करें। मां गंगा की पवित्रता और आध्यात्मिक महत्व के कारण ही कहा गया है- गंगे तव दर्शनात मुक्ति अर्थात् मां गंगा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है। फिर महाकुंभ में तो लाखों आध्यात्मिक विभूतियां एक साथ साधना एवं गंगा स्नान में लीन रहती हैं। इसलिए वहां स्नान करने वाले सामान्य व्यक्ति को भी पुण्य लाभ मिलता है।
हाल ही में परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिंतानंद सरस्वती ने सभी को कुंभ का संदेश देते हुए यह कहा कि- हमारे मंदिर, धाम, तीर्थ,संत परंपरा और हमारी सनातन संस्कृति प्रकृति-पर्यावरण और श्रेष्ठ परम्पराओं के संरक्षण-संवर्धन का संदेश देते हैं। आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि- आस्था है तो अस्तित्व है, कुंभ श्रद्धा और आस्था की कड़ियों को जोड़ता है, यह भारतवर्ष के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गौरव का प्रतीक है। उन्होंने कुंभ को गंदगी मुक्त, प्लास्टिक मुक्त एवं भाईचारे से युक्त बनाने का आवाह्न किया है।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्लास्टिक बहुत तेजी से प्रवेश कर रहा है। दैनिक जीवन के छोटे-छोटे कार्यों और आवश्यकताओं में भी प्लास्टिक से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। परिणामस्वरूप भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियां और स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां लगातार बढ़ रही हैं। महाकुंभ श्रद्धा, आस्था और अध्यात्म का एक बड़ा केंद्र है। अनुमान के अनुसार इस बार कुंभ में लगभग 50 से 60 लाख टन कूड़े एवं प्लास्टिक आदि कचरे की संभावना है। कई संतों एवं संस्थाओं ने हरित कुंभ का आवाह्न किया है। उनका कहना है कि जब आप कुंभ में आएं तो प्लास्टिक की बोतल अथवा थालियां साथ लेकर न आएं। उन्होंने स्लोगन दिया है- अपनी थाली, अपना थैला। खाने के लिए घर से अपनी स्टील या पीतल की थाली लेकर आएं। अपना सामान और थाली आदि रखने के लिए कपड़े के थैले का प्रयोग करें,प्लास्टिक की थालियों के प्रयोग से बचें। यह हमारी सामान्य आदत में आ चुका है कि हम प्लास्टिक की थालियों में,प्लास्टिक की चम्मच से खाना खाकर उन्हें यहां वहां फेंक देते हैं, थैलियों का प्रयोग भी बहुत अधिक बढ़ा है, यदि हम वहां प्लास्टिक की बोतलें, थैलियां और कूड़ा छोड़ेंगे तो पवित्र कुंभ और नदी के किनारे प्रदूषित हो जाएंगे। हमारे बाद जाने वाले श्रद्धालु फिर साफ और स्वच्छ वातावरण एवं जल में स्नान किस प्रकार कर पाएंगे?
ध्यान रहे कुंभ केवल सागर मंथन ही नहीं है अपितु यह आत्ममंथन की भी यात्रा है। आज के नए भारत को प्रकृति पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प लेना ही होगा, क्योंकि प्रकृति बचेगी तो संस्कृति बचेगी,हमारी संतति बचेगी और हमारा भविष्य बचेगा। इसलिए आइए हरित कुंभ- प्लास्टिक मुक्त जीवन और हरित जीवन का संकल्प लें।