सेवा समर्पण का भाव है। समाज और सामाजिक दायित्वबोध दोनों ही शब्द महत्वपूर्ण है। समाज हमें जीने का तरीका और हमें उससे बंधे रहने का तरीका सिखा देता है। दूसरी ओर सामाजिक दायित्वबोध हमें कितने ही रिश्ते, नाते और कड़ियों से जोड़े रखता है। समाज के हित में ही व्यक्ति का हित छिपा हुआ है। जब व्यक्ति अपने स्वार्थ में लगकर कार्य करता है तो वह जाने-अनजाने, स्वाभाविक रूप से समाज का अहित करता है। उसे यह नहीं पता होता है कि वह अपना भी अहित कर रहा है।
समाज में रहना, समाज के बारे में सोचना, हम सभी की जिम्मेदारी है। जो व्यक्ति सामाजिक दायित्वबोध और सामाजिक रिश्ते, नातों से भागता है, उन्हें तोड़ता है, वह समाज के लिए एक गलत उदाहरण बन जाता है। योग्य व्यक्ति वही है, जो अपने सामाजिक दायित्वबोध के साथ सही तरीके से जीवन शैली को जीता है, उसे निभाते हुआ आगे बढ़ता है, चाहे उसमें कितनी ही बाधा क्यों ने आ जाए। वह उन सभी में से रास्ता निकलता हुआ आगे बढ़ जाता है, परमात्मा भी उसी का साथ देता है। हमारी पारिवारिक परंपरा इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
समाज में हम मानवीय रिश्ते, नातों, मर्यादाओं आदि को मानकर चलते हैं। दूसरी ओर देखें, समझे तो नदी, पर्वत, जंगल, चराचर के जीव-जंतु सभी हमारे समाज का अंग हैं। हमें इनका भी ध्यान रखना है, हमें इनकी भी सुरक्षा करनी है। मां का ध्यान रखना है तो हमें अपनी पृथ्वी मां के बारे में भी सोचना है। उसे भी साफ-सुंदर और सुरक्षित तरीके से रखना है। जिससे कि आने वाली पीढ़ियाँ हमें बहुत अच्छा और सभ्य बता सकें। जो केवल निजी स्वार्थ और निजी कार्यों की पूर्ति में लगा रहता है, उसके जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है।
बचपन में एक कहानी सुनी थी, सुंदर पंखों वाली चिड़िया की कहानी। उस चिड़िया के पंख बहुत सुंदर थे, एक व्यक्ति उसके सुंदर पंखों को देखकर उसे पकड़ लेता है और वह सोचता है कि इस चिड़िया को राजा को बेच दूं तो बहुत सारा धन मिलेगा। यह व्यक्ति का निजी स्वार्थ था। जिसमें वह अंधा होकर एक पंक्षी की स्वतंत्रता को कैद कर देता है। राजा ने चिड़ि या को खरीद लिया। लेकिन चिड़िया टहनी पर बैठी रही और उड़ी नहीं। अब राजा उसके पंख कैसे देखें। राजा ने कहा जो इस चिड़िया को उड़ा देगा और इसके सुंदर पंख दिखा देगा, उसको उचित इनाम मिलेगा। सभी के प्रयास असफल रहे। एक छोटा सा बच्चा स्वार्थ से दूर, भोला-भाला सभी बातों को सुन रहा था। उसने कहा मैं इसे उड़ा सकता हूं। राजा ने कहा उड़ाओ- बच्चे ने उस टहनी को ही काट दिया, जिस टहनी पर वह चिड़िया बैठी थी। चिड़िया तेजी से उड़ गई और उसके सुंदर पंख सभी ने देखे। कहानी में बच्चों के निस्वार्थ भाव, छल रहित जीवन और प्रेम पूर्ण भाव को दिखाया है। दूसरी ओर एक संदेश यह भी है कि जो किसी की टहनी काटता है या जड़ें काटता है वह तो वही रह जाता है। उस छोटे से लालच में फंसकर, लेकिन वह पक्षी कितना ऊपर उड़ जाता है, इसका अंदाजा शायद किसी को भी नहीं होता है। जब समर्पण होता है तो एक मछली नदी की धारा के विपरीत तेजी से चलती है। वह झरने से नीचे गिरने पर भी ऊपर की ओर जल की धारा के विपरीत चढ़ जाती है।
समाज में सभी प्रकार के जीव हैं जो किसी की जड़े काटने में, केवल बस केवल अपना ही अपना हित साधने में लगे हुए हैं। उन्हें यह नहीं पता कि वह इस जीवन जगत में, चराचर में, जीवों की सेवा के लिए यहां आए हैं। माता-पिता की सेवा, भाई-बहनों की सेवा, पत्नी-बच्चों की सेवा, समाज के सभी लोगों की सेवा, इस सेवा के भाव से ही समाज में सेवा भाव जागृत होता है और होता रहेगा। हमारा समाज और देश सेवा के भाव को लेकर आगे चला है। सेवा परमो धर्मः का संकल्प हमने हर कालखंड और युग में बनाकर रखा है। हमें सेवा भाव को अपनी इस पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को हर क्षण बताते हुए चलना है।
भारतीय संस्कृति में दादा-परदादा की बातें खूब होती हैं। इसका सीधा अर्थ है कि वह सभी लोग एक छत के नीचे रहते रहे हैं। उन सभी की सेवा होती रही है। जो इतना सफल जीवन जीकर इस धराधाम से उस परमधाम में पहुंचे हैं। सेवा ही हमारा भाव और जीवन होना चाहिए। इसी के लिए हम बने हैं। यही जीवन का सत्य और भाव है। वृक्ष लगाना और उसे पालन सेवा है। फसल उगाना, उसे काटना सेवा है। फिर इस सेवा से जो हमें प्राप्त होता है वह हम सभी को पता है। हम सभी सेवा के लिए बने हैं, इस बात को मत भूलो।