नेत्रदान जीवन दान है

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नेत्राहीन व्यक्ति तो आजीवन ईश्वर की सर्वोत्तम रचना संसार की चकाचौंध को निहार नहीं पाता। ’प्राणी क्या मेरा क्या तेरा‘ के अनुरूप मानव को सच्चा आनन्द परमार्थ से प्राप्त होता है न कि स्वार्थ से, यद्यपि वह जीवन पर्यन्त अपने स्वयं के स्वार्थ की पूर्ति में ही लिप्त बना रहता है।
यह नश्वर शरीर ’पांच तत्व को तन रचयो‘ हाड़ मांस पांच तत्वों – हवा, पानी, मिट्टी, आग एवं आकाश से निर्मित है जो किसी भी क्षण, पलक झपकते ही राख की ढेरी में परिवर्तित हो जाता है।
’जैसे जल ते बुद-बुदा‘ अर्थात बिना अस्तित्व वाला जल का बुल-बुला क्षण भर में जल के बहते प्रवाह में ही विलीन हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन का पल भर का भी भरोसा नहीं है कि अगली सांस आवे अथवा नहीं, तो फिर मृत्युपरान्त अपने नेत्रों का दान करने में हिचक किस बात की हो रही है।
नेत्रादान से प्राप्त नेत्रों के प्रत्यारोपण से नेत्राहीन व्यक्ति अपनी नेत्रा ज्योति प्राप्त कर संसार की संपूर्ण खुशियों का आनन्द ले सकता है, आवश्यकता है तो केवल पहल एवं समर्पण की।
किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के 6 घण्टे के भीतर-भीतर यदि उसकी आंख से कार्निया निकाल लिया जावे तो वह काम आ सकता है। निकाले हुए कार्निया को 24 से 36 घण्टे के भीतर प्रत्यारोपित किया जाना आवश्यक होता है।
हर कोई व्यक्ति नेत्रादान कर सकता है- मधुमेह का रोगी, बच्चा, बूढ़ा, कमजोर दृष्टि वाला, मोतियाबिंद का रोगी, इत्यादि। बच्चों में अधिकतर पुतली का अन्धपन होता है। प्रत्येक वर्ष 40 से 50 हजार पुतली के अन्धेपन से ग्रसित हो जाते हैं। 10 लाख से भी अधिक व्यक्ति नेत्रादान से दृष्टि पाने की प्रतीक्षा में हैं।
नेत्रादान से चेहरा विकृत नहीं होता है। कार्निया पर न तो आयु का प्रभाव पड़ता है और न ही कार्निया कभी खराब होता है। मरने वालों में से यदि कुछ ही प्रतिशत व्यक्ति नेत्रादान करें तो देश में पूर्ण अंधतानिवारण हो सकता है क्योंकि प्रतिवर्ष लगभग सवा करोड़ व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।
इस समय भारत में 15 मिलियन तथा सम्पूर्ण विश्व में 45 मिलियन लोग नेत्राहीन हैं। आपके द्वारा किया हुआ नेत्रादान किसी के जीवन में उमंग और खुशियां भर सकता है। इससे बड़ा परामर्श क्या हो सकता है। स्वयं नेत्रादान कीजिये और अपने पारिवारिक सदस्योें से नेत्रादान हेतु संकल्प लीजिये। अपने मित्रों, संबंधियों एवं समाज को नेत्रादान हेतु प्रेरित कर परमार्थ के कार्य में सहायक बनें।
नेत्रादान के प्रति आम नागरिकों में व्याप्त भ्रांतियां एवं अंधविश्वासों का निराकरण कर पुनीत कार्य हेतु प्रेेरित करें। जरा सोचो साथ क्या जायेगा, यह नश्वर शरीर तो यही भस्म की ढेरी में परिवर्तित हो जायेगा। नेत्रादान ही श्रेष्ठ दान है, महादान है, जीवनदान है क्योंकि आंखें ही आत्मा का प्रतिबिंब होती हैं।

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