हमारे तीर्थ स्थल- सुरेश्वरी देवी: जहां प्रार्थना कर इन्द्र ने पुनः राज्य पाया
Focus News 15 January 2025 0आदि शक्ति मां जगदम्बा के कई प्रसिद्ध सिद्ध पीठ हैं जहां की महत्ता का वर्णन प्राचीन धर्मग्रन्थों में पुराणों में मिलता है। ऐसा ही एक सिद्ध पीठ है- सुरेश्वरी देवी मन्दिर। इसका वर्णन स्कन्दपुराण के केदार खण्ड में आता है।
हरिद्वार रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से लगभग 8 किमी की दूरी पर स्थित है-प्राचीन सिद्ध पीठ सुरेश्वरी देवी मन्दिर।
वहां पहुंचने के लिए बी.एच. ई. एल. (भेल) होते हुए जाया जाता है। शिवालिक पर्वत माला की तलहटी मंे स्थित इस प्राचीन सिद्ध पीठ के आसपास एक बरसाती नदी बहती है जिसे मुस्सू नदी कहा जाता है। भेल से मन्दिर तक के मार्ग में 4 रपटे पड़ते हैं।
लेखक को भी भाई अजय मोहन शर्मा के साथ इस सिद्ध पीठ जाने का अवसर मिला है। यहां कोलाहल से दूर शान्त सिद्ध पीठ साधना व ध्यान के लिए बहुत ही उत्तम स्थल है।
बरसाती नदी मुस्सू के तट पर बने इस मन्दिर तक पहुँचने के लिए 35 सीढि़यां चढ़कर मन्दिर के आंगन में पहुंचा जाता है। यहाँ दर्शन होते हैं। सुरेश्वर महादेव के इस परिसर मंे स्थित प्राचीन वट वृक्ष इस सिद्ध पीठ की प्राचीनता का साक्षी है।
इस आंगन से छह सीढि़यां ऊपर चढ़कर हम सुरेश्वरी देवी के मुख्य मन्दिर में पहंुच जाते हैं जहां शेर पर सवार मां सुरेश्वरी देवी की लगभग 3 फीट ऊँची नयनाभिराम प्रतिभा के दर्शन होते हैं।
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि जहाँ रात्रि में पहले सिंह माता रानी का दर्शन करने आता था। शान्त नीरव वातावरण में स्थित इस प्राचीन पौराणिक सिद्ध पीठ के महत्त्व के बारे में कहा जाता है कि इस स्थान पर देवराज इन्द्र ने आदि शक्ति की प्रार्थना की थी। सुरेश (देवताओं का राजा) द्वारा प्रार्थना किये जाने से ही इस मन्दिर का नाम सुरेश्वरी देवी मन्दिर पड़ा।
इस मन्दिर में लगे बोर्ड पर उल्लेख है कि इस मन्दिर (स्थान) का वर्णन स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में आता है जिसके अनुसार स्वर्ग से
निपतित तथा राजा बाली के पुत्रांे से भयभीत हुए इन्द्र ने सामान्य पुरूषों की भांति दिव्यवाणी से भगवती सुरेश्वरी देवी की स्तुति की थी जिससे खुश हो देवी ने इन्द्र को वरदान दिया और उसे स्वर्ग का राज्य वापस मिला।
मुख्य मन्दिर के चारों ओर बरामदा है। दाहिनी ओर पुजारी के लिए कमरा बना हुआ है। यहाँ भण्डारे का आयोजन भी होता है। मंदिर परिसर में संगमरमर का फर्श बिछा है। भक्तों व दर्शनार्थियों के बैठने के लिए बंेचंे बनी हुई हैं।
मां सुरेश्वरी देवी मन्दिर की एक प्रबन्ध कर समिति भी बनी हुई है जिसके द्वारा मन्दिर की साज सज्जा व निर्माण का कार्य चलता रहता है। मन्दिर के आसपास कई किलोमीटर के क्षेत्रा में कोई आबादी नहीं है। वन विभाग द्वारा जंगली जानवरों से सावधान रहने के बोर्ड भी यहां लगाये गये हैं।
यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य व मन को शान्ति देने वाला मां का दर्शन, दोनों का लाभ उठाते हुए दर्शनार्थी स्वयं को धन्य मानते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर प्रार्थना करने वाले देवराज इन्द्र की मनोकामना जिस तरह पूरी हुई, उसी तरह साधारण मानव की कामना भी पूरी होती है। इसी कारण भक्त यहां मनौतियों के धागे भी बांधते हैं।
मन्दिर में पहुंचने के लिए जिस जगह से सीढि़यां शुरू होती हैं वहां विभिन्न मन्त्रिायों, अधिकारियों व महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा कई किस्मों के पौधों को लगाया गया है। पौधों के पास लगी उनके नाम की तख्तियां इस स्थान के महत्व की वृद्धि करती हैं।
यहां पर जंगली जानवरों से सुरक्षा का ध्यान रखते हुए लगभग 10 फीट ऊंची तार की बाड़ भी लगायी गयी है। उन पर सावधानी के बोर्ड भी लगे हैं क्यांेकि इधर शिवालिक पर्वतमाला के वन मे जंगली जानवर बड़ी संख्या में हैं।
माता सुरेश्वरी देवी के इस मन्दिर तक पहुंचने के बाद यहां का प्राकृतिक और आध्यात्मिक वातावरण जो सुख देता है उसे अनुभव ही किया जा सकता है। इस मन्दिर के पौराणिक महत्व को ध्यान में रखकर प्रबन्ध समिति जो कार्य कर रही है वह सराहनीय है। जय मां सुरेश्वरी देवी।