भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अब 140 साल की हो गई है। 28 दिसंबर 1885 से लेकर आज तक इसका आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मुझे याद है कि अंग्रेजी शासन की गुलामी से मुक्ति का आंदोलन कांग्रेस ने ही लड़ा था और महात्मा गांधी के नेतृत्व में ही 1947 की आजादी, लोकतंत्र और संविधान भी हम भारत के लोगों को सौंपा था। कांग्रेस देश और दुनिया की सबसे पुरानी पार्टी है और तीसरी दुनिया के अनेक देशों में आजादी और लोकतंत्र की प्रेरणा रही है।
कांग्रेस की लोकप्रियता का ही ये प्रमाण है कि आजादी के बाद 1952 का पहला लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में 364 सीटों पर जीता था। दूसरा 1957 का आम चुनाव भी कांग्रेस ने 371 सीटों पर जीता तो तीसरा लोकसभा चुनाव 361 सीटों से और चौथा चुनाव 1967 में 283 सीटों पर तो 1971 का पांचवां चुनाव 352 सीटों पर जीता था। फिर इंदिरा गांधी ने 1977 में 153 सीटों पर तो 1980 में 351 औैर राजीव गांधी ने 1984 में 415 सीटों से जीता। 2004 और 2009 में भी फिर कांग्रेस ने ही सोनिया गांधी के साथ केंद्र सरकार बनाई।
राजनीति में क्योंकि जीतने वाला ही सिकंदर और सर्वगुण सम्पन्न माना जाता है, इसलिए 2014 में भारतीय जनता पार्टी के 287 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव 303 सीटों से जीतने के बाद कुछ लोग मानने लगे हैं कि अब हम कांग्रेस मुक्त भारत बनाएंगे। क्योंकि मैं भी 1942 से ही कांग्रेस को सुनता-समझता आया हूं। इसलिए मेरा मानना है कि कांग्रेस एक विचारधारा है जो समय के साथ हल्की भारी तो हो सकती है लेकिन आजादी, लोकतंत्र और समता मूलक धर्म निरपेक्ष भारत की कल्पना से अलग नहीं हो सकती।
आज भारत में सैकड़ों राजनैतिक दल हैं लेकिन इनमें तीन पार्टियां ही ऐसी है, कांग्रेस, कम्युनिस्ट और हिंदू राष्ट्रवादी भाजपा जो आने वाले समय में प्रासंगिक और राष्ट्रीय आधार का मुख्य कारण रहेंगी। कांग्रेस ने आजादी के बाद भारत में सबसे अधिक समय तक राज किया है। समझने की बात ये है कि भारत में 1947 के बाद जैसे-जैसे लोकतंत्र का विकास हुआ है वैसे-वैसे धर्म, जाति और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का भी उदय हुआ है और सेवा की राजनीति भी सत्ता व्यवस्था की भूख में बदली है। जिस तरह संघ परिवार (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) से जनसंघ और फिर भाजपा निकली है, उसका 1925 से ही एक उद्देश्य और एजेंडा है भारत को हिंदू बहुमत के राष्ट्रवाद में बदलना । उसी तरह कम्युनिस्टों की भी एक ही विचारधारा रही है कि वो सर्वहारा का समाजवाद लाएगी लेकिन अब भारत ही क्या, पूरी दुनिया में विचारधारा और लोकतंत्र की परिभाषाएं बदल रही हैं जिसे हम ऐसे समझ सकते है कि अब 2024 में लोकतंत्र की गोद से तानाशाह पैदा हो रहे हैं और टैक्नोलौजी और पूंजी के अत्यधिक चुनावी इस्तेमाल से केवल बहुमत के आधार पर एकाधिकारवादी शासन व्यवस्थाएं उभर रही है।
भारत में भाजपा और संघ परिवार ने धर्म और जाति की रथयात्राओं तथा हिंदू बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण से ही 2014 का चुनाव जीता है। इसके पीछे प्रचार की आधुनिक टैक्नोलौजी और उद्योगपतियों की अपार ताकत जुड़ी है। ये पूंजीवादी साम्राज्यवाद का नया रूप है और इसीलिए भाजपा एक नया भारत, हिंदू भारत, आत्मनिर्भर भारत बनाने का अभियान चला रही है। ये छल-बल की राजनीति ही आज भारत में आजादी, लोकतंत्र और संविधान की सबसे अधिक मखौल उड़ा रही है क्योंकि बहुमत की संसद के आगे न्यायपालिका और कार्यपालिका को लगातार विकलांग बनाया जा रहा है। भय, आतंक और नफरत की इस राजनीति ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसा झूठा प्रचार फैलाया है कि जैसे बस आगे दीवार है और प्रतिरोध तथा असहमति के सभी मानवाधिकार बहुमत की सरकार और व्यवस्था के गुलाम है। हम इसीलिए आज देश की सभी पार्टियों से कहना चाहते हैं कि सब एकजुट होकर वर्तमान में बहुमत की तानाशाही का एकजुट होकर मुकाबला करें क्योंकि आज संविधान और लोकतंत्र पर सत्ता का बहुत अधिक हस्तक्षेप है।
कांग्रेस आज भी जिंदा है और उसका अखिल भारतीय जनाधार है, अतः 2024 के आगे का काम विपक्षी दलों को करना चाहिए। ये लोकतंत्र किसी एक दल की जागीर नहीं है। हम कांग्रेस से आज 140 साल बाद भी ये आशा करते हैं कि वो समय की इस चुनौती को गंभीरता से समझे और फिर से देश के हित में लोकतांत्रिक, धर्म निरपेक्ष तथा समाजवादी शक्तियों को एकजुट करें। कांग्रेस आज देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और उसकी कई राज्यों में सरकार है। अतः देर आये-दुरस्त आये, की कहावत ये ही है कि उठो! जागो और भारत में लोकतंत्र एवं संविधान को बचाओ। ये लोकतंत्र भारत को कांग्रेस की देन है और गांधी-नेहरू इसके गवाह है। संघ परिवार और नेहरू गांधी परिवार दोनों ही इस लोकतंत्र से निकले हैं। अतः कांग्रेस की असल लड़ाई-भाजपा की हिंदू साम्प्रदायिकता से है। कांग्रेस को हार-जीत का अनुभव है और उसका भारत के स्वाधीनता संग्राम में अतुल्य योगदान है।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार हैं.लेखक राजस्थान साहित्य अकादमी के दो बार अध्यक्ष भी रह चुके है )