देश पर एक छत्र सर्वाधिक राज करने वाली सबसे पुरानी एवं बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अलग- थलग पड़ गई है। राजनीति में कभी मात्र संसद की दो सीट पाने वाली भाजपा दो दशक से लगातार अपने बल पर सत्तारूढ है। एक समय ऐसा रहा जहां कांग्रेस को सत्ता से हटाने के क्रम में जो राजनीतिक दल एक साथ खड़े रहे हैं, आज वे हीं कांग्रेस के साथ खड़े नजर आ रहे हैं । इस परिवेश में भी अपनी डफली अपना राग की स्थिति बनी हुई है जिससे कांग्रेस के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं । कांग्रेस के लिए गठबंधन करना मजबूरी भी है तो अपने अस्तित्व को बचाए रखना भी जरूरी जहां कांग्रेस का अस्तित्व दिन पर दिन पर खतरे में पड़ता जा रहा है। कांग्रेस के साथ आज खड़े अधिकांश राजनीतिक दल कभी कांग्रेस के विरोध में खड़े होते रहे हैं. जहां पर वे भारी हैं, वहां कांग्रेस की स्थिति अल्पसंख्यक वाली बनी हुई है। ऐसे में कांग्रेस के लिए गठबंधन की राजनीति विपरीत परिवेश बनाती जा रही है। जहां कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए अपने बल पर खड़े होने के लिए मजबूर है, यहीं कांग्रेस के लिए चुनौती है जहां उसे ऐसे परिवेश में हाल हीं में इसी वर्ष के प्रारंभ में होने वाले दिल्ली विधान सभा चुनाव का सामना करना है जहां भाजपा के साथ-साथ उसके साथ खड़ी सत्ताधारी आप भी खड़ी होगी। वर्ष के अंत में बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस गठबंधन के बीच खड़ी रहेगी जबकि दिल्ली एवं बिहार में एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचा पाना मुश्किल लग रहा है।
आज कांग्रेस के लिए गठबंधन मजबूरी भी है तो अपने अस्तित्व को बचाए रखना भी जरूरी है. कांग्रेस अभी हाल हीं में हुए विधान सभा चुनावों का गेम हार चुकी है। आप द्वारा कांग्रेस को गठबंधन से बाहर करने की आवाज सुगबुगाने लगी है। यही कांग्रेस नेतृत्व के लिए नये वर्ष की चुनौती है।