मूत्रवह संस्थान में पथरी का पाया जाना एक आम समस्या है। यह रोग बच्चों व व्यस्कों में समान रुप से पाया जाता है। किडनी की पथरी का अनुपात उच्च वर्ग के लोगों में अधिक है जबकि मूत्राशय में पथरी निम्न वर्ग के बच्चों में अधिक पाई गयी है। किडनी में होनेवाली पथरी का दर्द इतना असहनीय होता है कि वह किडनी को निष्क्रिय बनाकर जानलेवा भी सिद्ध हो सकता है। आधुनिक युग में नए नए जांच के तरीकों से इस रोग का आसानी से निदान तो हो जाता है परंतु समय के साथ इसका उपचार होना भी आवश्यक है।
आयुर्वेद में पथरी को अश्मरी कहते हैं ”अश्मवत ददातीति अश्मरी अर्थात इसकी रचना अश्म या पत्थर के समान होती है, इस कारण इसे अश्मरी कहते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इसका उपाय सिर्फ शल्य क्रिया (ऑपरेशन) ही बताया है पर इस बात की गारंटी नहीं है कि पुन: आपके शरीर में पथरी निर्मित न होगी, पुन: होने की संभावना रहती है।
स्थान भेद के अनुसार अश्मरी के कई प्रकार होते हैं –
1. वृक्कगत अश्मरी (रिनल कैलक्युलस)
2. गविनीगत अश्मरी (युरेटरीक कैलक्युलस)
3. मूत्राशयगत अश्मरी (वेसीकल कैलक्युलस)
4. पित्ताश्मरी (कोलीलिथिसीस)
पथरी की उत्पत्ति में कारणीभूत घटक आहार-विहार-संक्रमण इत्यादि है जैसे आहार में विटामिन ए की कमी, विटामिन डी की अधिकता, भोजन में दूध व दूध से बने पदार्थों का प्रचुरता में सेवन, एसिडिटी कम करने हेतु एंटासिड दवाई का अधिक प्रयोग, बारंबार मूत्रवह संस्थान में संक्रमण (यु.टी.आय), ग्रीष्म ऋतु में यदि पर्याप्त जल नहीं पिया जाए इत्यादि कारणों से पथरी होती है। आयुर्वेदानुसार पथरी उन्हीं को होती है जो असंशोधनशील व अपथ्य आहार करने वाले होते हैं।
आयुर्वेदानुसार पथरी की उत्पत्ति में श्लेष्मा घटक कारणीभूत बताया है। यहॉं पथरी के दोषानुसार भेद किए हैं: वातज, पित्तज, कफज व शु़क्रज। वातज पथरी को ऑक्सलेट, पित्तज को युरिक एसिड व कफज, शुक्रज को फॉस्फेट पथरी कह सकते हैं।
पथरी के लक्षणों में मुख्यत: नाभि, बस्ति, सिवनी में अत्यंत तीव्र पीड़ा की अनुभूति होती है। रोगी दर्द से कराहता है। पेशाब करते वक्त बीच में रुक जाना, कभी-कभी पेशाब के साथ रक्त आना, उल्टी, बुखार, दर्द सहन करते-करते रोगी थक जाता है, पेशाब में जलन व दर्द कमर से मूत्रेन्द्रिय तक आना, कभी-कभी दर्द अचानक कम हो जाता है इसका कारण पथरी का मूत्रमार्ग से हट जाना है, मूत्र कुछ मटमैला होता है। भागने, कूदने, मलत्याग के पश्चात दर्द बढ़ जाता है।
मूत्रथैली में पथरी (वेसीकल कैल्क्युलस) होने पर रात को रुग्ण को बार-बार पेशाब के लिए उठना पड़ता है तथा पूर्ण पेशाब नहीं हुआ ऐसा अहसास होता है, दर्द अक्सर मूत्र त्याग के अंत में होता है।
पथरी का निदान- मूत्राशय की पथरी का निदान अधिकांशत: एक्सरे द्वारा ही हो जाता है। इसके अलावा मूत्र की जांच से उसमें रक्तकोशिका जीवाणु और ऑक्जीलेट क्रिस्टल इत्यादि से भी उसका निदान होता है। साथ ही मूत्राशय में उत्पन्न पथरी से द्वारा जटिलताओं का पता भी एक विशेष प्रकार की दूरबीन से लगाया जाता है।
आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में लाक्षणिक चिकित्सा न होकर पथरी को तोडऩेवाली कई औषधियां उपलब्ध है। आधुनिक चिकित्सा के मतानुसार ऑपरेशन करने से एक बार तो पथरी निकल जाएगी परंतु इसकी जड़ तो शरीर में ही रहती है।
आयुर्वेद पथरी की चिकित्सा दोषानुसार करते हैं। पथरी होने पर पानी का भरपूर सेवन करें। दूध, पनीर जैसी अधिक कैलोरी कैल्शियम की मात्रा वाले पदार्थ, पालक, टमाटर का सेवन बंद करें।
मांसाहार का सेवन अत्यंत अल्प प्रमाण में करें। मूत्रवह संस्थान में होने वाली पथरी में कुलथी का काढ़ा तथा उसके बीजों का चूर्ण मूली के पत्तों के रस के साथ सेवन करना लाभदायी होता है।
इस प्रकार योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में आयुर्वेदिक औषधि व परहेज से पथरी का निवारण सरलता से बिना किसी तकलीफ के होता है।