तेज़ी से बढ़ रहा है ई-कचरा (ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर- 2024 रिपोर्ट)
Focus News 8 January 2025 0आज पूरे विश्व में प्रौद्योगिकी हमारे दैनिक जीवन का एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण हिस्सा हो गई है। हम काम से लेकर मनोरंजन और संचार से लेकर शिक्षा, व्यापार, चिकित्सा तक, लगभग-लगभग हर काम के लिए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों का उपयोग करते हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तीव्र प्रगति के साथ, एक नई समस्या सामने आई है – ई-कचरा। आज दुनिया में ई-कचरा लगातार बढ़ रहा है क्यों कि एक तो तीव्र तकनीकी उन्नति हो रही है, दूसरा यह कि आज विभिन्न कंपनियां उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के नए मॉडल में अपग्रेड करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए करती हैं, जिससे पुराने इलैक्ट्रोनिक सामान एक समय विशेष के बाद उपभोक्ताओं के लिए व्यर्थ हो जाते हैं। आज दुनिया में बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सही तरीके से निपटान कैसे किया जाए, जिसके कारण वे इन उपकरणों को लैंडफिल में फेंक देते हैं और इस तरह से धरती पर ई-कचरा लगातार बढ़ रहा है। इसी संदर्भ में इन दिनों ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2024 की रिपोर्ट काफी चर्चा में है। हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (यूनिटार) ने इसे जारी किया है , जिसमें यह कहा गया है कि दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन दर्ज ई-कचरे के पुनर्चक्रण की तुलना में पांच गुना तेजी से बढ़ रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि यूएनआईटीएआर संयुक्त राष्ट्र की एक प्रशिक्षण शाखा है जो सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों को वैश्विक चुनौतियों पर काबू पाने में मदद करती है। इसकी रिपोर्ट से यह पता चलता है कि वैश्विक ई-कचरा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है , जो 2010 में 34 बिलियन किलोग्राम से बढ़कर 2022 में 62 बिलियन किलोग्राम तक पहुंच गई। रिपोर्ट में यह बात कही गई है यदि यही प्रवृत्ति जारी रहती तो वर्ष 2030 तक यह लगभग 32 प्रतिशत बढ़कर 82 बिलियन किलोग्राम तक पहुंच जाएगी। वर्ष 2022 में जो रिकॉर्ड 62 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ, वह वर्ष 2010 से 82% अधिक है। गौरतलब है कि इस 62 अरब किलोग्राम में से केवल 13.8 अरब किलोग्राम को ही ‘औपचारिक रूप से एकत्रित और पर्यावरण की दृष्टि से उचित तरीके से पुनर्चक्रित’ किया गया । यह भी उल्लेखनीय है कि 62 अरब किलोग्राम ई-कचरे में 31 अरब किलोग्राम धातु, 17 अरब किलोग्राम प्लास्टिक और 14 अरब किलोग्राम अन्य सामग्रियां (खनिज, कांच, मिश्रित सामग्री आदि) शामिल हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि ई-कचरा( इलैक्ट्रोनिक अपशिष्ट) सभी प्रकार के पुराने या त्याग दिए गए विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन व अन्य और ट्युबलाइट, बल्ब व सी.एफ.एल. जैसी अन्य चीजें, मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, विभिन्न घरेलू उपकरण, कार्यालय सूचना और संचार उपकरण,प्लग या बैटरी आदि होते हैं, जो मानव व जीवों के स्वास्थ्य, जैव-विविधता और पर्यावरण के लिए खतरनाक है, क्यों कि इनमें अनेक विषाक्त योजक या पारे, सीसा, कैडमियम तथा निकल जैसी धातुएं तथा अनेक खतरनाक पदार्थ शामिल होते हैं। सच तो यह है कि ई-कचरे के अनुचित प्रबंधन से पर्यावरण में पारा और ब्रोमीनयुक्त अग्निरोधी प्लास्टिक जैसे खतरनाक पदार्थ निकलते हैं , जिससे पर्यावरण, जैव-विविधता और मनुष्य और जीवों के स्वास्थ्य दोनों पर प्रत्यक्ष और गंभीर प्रभाव पड़ता है। यहां यह भी एक तथ्य है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2019 में लगभग 53.6 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ था, जो लगभग 7.3 किलोग्राम प्रति व्यक्ति था।आज भारत समेत दुनिया भर में बहुत बड़ी मात्रा में इलैक्ट्रोनिक कचरा पैदा हो रहा है। एक आंकड़े के अनुसार भारत ने वर्ष 2019 में लगभग 3.2 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न किया, जिसमें से लगभग 90% कचरे का विवरण उपलब्ध नहीं है। वास्तव में इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन में वृद्धि को औद्योगीकरण और शहरीकरण के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की माँग में वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं,बढ़ता हुआ तकनीकी विकास, उच्च खपत दर, विभिन्न इलैक्ट्रोनिक उत्पादों के जीवन चक्र का कम होना, खराब हुए इलैक्ट्रोनिक उपकरणों को ठीक करने के विकल्पों का कम होना, बढ़ता इलैक्ट्रोनिकीकरण, डिजाइन में कमियां और ई-कचरे का सही प्रबंधन नहीं होना जैसे प्रमुख कारण भी हैं।हाल फिलहाल, यदि हम यहां भारत के इलैक्ट्रोनिक कचरे से संबंधित आंकड़ों की बात करें तो भारत वर्तमान में विश्व स्तर पर ई-कचरा पैदा करने वाले सबसे बड़े देशों में तीसरे स्थान पर है, जो केवल चीन और अमेरिका से पीछे है। भारत में ई-कचरे की मात्रा 2021-22 में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ 1.6 मिलियन टन हो गई है। उल्लेखनीय है कि भारत के 65 शहर कुल ई-कचरे का 60% से अधिक उत्पन्न करते हैं, जबकि 10 राज्य कुल ई-कचरे का 70% उत्पन्न करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज ई कचरे के ठीक से प्रबंधन नहीं होने, ई कचरे के ठीक से एकत्रीकरण नहीं किए जाने तथा उसका पुनर्चक्रण नहीं होने के कारण धरती के अनेक मूल्यवान संसाधन बर्बाद हो रहे हैं और इससे दुनिया भर के समुदायों के लिए प्रदूषण का खतरा लगातार बढ़ रहा है। क्या यह गंभीर और संवेदनशील नहीं है कि आज अनौपचारिक पुनर्चक्रण प्रथाओं के कारण हर साल पर्यावरण में 58,000 किलोग्राम पारा और 45 मिलियन किलोग्राम ब्रोमीनयुक्त अग्निरोधी प्लास्टिक छोड़ा जाता है ? यह भी एक तथ्य है कि ई-कचरे के पुनर्चक्रण से भी दुर्लभ पृथ्वी तत्व की मांग का केवल 1% ही पूरा हो पाता है।ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि संग्रहण और पुनर्चक्रण की प्रलेखित दर 2022 में 22.3% से घटकर 2030 तक 20% हो जाएगी, जिसका कारण दुनिया भर में ई-कचरे के उत्पादन में हो रही भारी वृद्धि के सापेक्ष पुनर्चक्रण प्रयासों में बढ़ता अंतर है। बहरहाल, रिपोर्ट के अनुसार यूरोप में ई-कचरे के औपचारिक संग्रहण और पुनर्चक्रण की उच्चतम दर (42.8%) है, जबकि अफ्रीका में ई-कचरा कम मात्रा में उत्पन्न होने के बावजूद पुनर्चक्रण की दर एक प्रतिशत से भी कम है। यहां यह भी एक तथ्य है कि एशिया के देश विश्व का लगभग आधा ई-कचरा (30 अरब किलोग्राम) उत्पन्न करते हैं , लेकिन अपेक्षाकृत उनमें से बहुत कम ने कानून बनाए हैं या स्पष्ट ई-कचरा संग्रहण लक्ष्य निर्धारित किए हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत सहित एशिया, वैश्विक ई-कचरे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उत्पन्न करता है , लेकिन ई-कचरा प्रबंधन में उसने सीमित प्रगति की है। हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार यूरोप (17.6 किग्रा), ओशिनिया (16.1 किग्रा) और अमेरिका (14.1 किग्रा) ने 2022 में प्रति व्यक्ति सबसे अधिक ई-कचरा उत्पन्न किया। हालांकि,इन देशों में प्रति व्यक्ति संग्रहण और पुनर्चक्रण दर भी सबसे अधिक दर्ज की गई है। मसलन,यूरोप में प्रति व्यक्ति 7.53 किग्रा, ओशिनिया में प्रति व्यक्ति 6.66 किग्रा तथा अमेरिका में प्रति व्यक्ति 4.2 किग्रा की दर है और इसके पीछे कारण
उनका संग्रहण और पुनर्चक्रण बुनियादी ढांचा सबसे उन्नत होना बताया गया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि स्क्रीन तथा मॉनिटर,खिलौने, माइक्रोवेव ओवन, वैक्यूम क्लीनर और ई-सिगरेट,छोटे आईटी और दूरसंचार उपकरण – लैपटॉप, मोबाइल फोन, जीपीएस डिवाइस और राउटर काफी मात्रा में ई-कचरा पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट बताती है कि खिलौने, माइक्रोवेव ओवन, वैक्यूम क्लीनर और ई-सिगरेट विश्व के ई-कचरे का एक तिहाई (20 बिलियन किलोग्राम) हिस्सा हैं, इनके लिए पुनर्चक्रण दर वैश्विक स्तर पर बहुत कम 12% है। वहीं दूसरी ओर छोटे आईटी और दूरसंचार उपकरण- लैपटॉप, मोबाइल फोन, जीपीएस डिवाइस और राउटर -5 बिलियन किलोग्राम ई-कचरे पैदा करते हैं, जबकि इसका केवल 22% ही औपचारिक रूप से एकत्रित और पुनर्चक्रित किया गया है। आज विश्व में 81 देशों ने ई-कचरा नीति, कानून या विनियमन अपनाया है। भारत में भी ई-कचरे से निपटने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। मसलन, वर्ष 2011 में, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 द्वारा शासित ई-कचरा (प्रबंधन और हैंडलिंग) विनियम 2010 से संबंधित एक महत्वपूर्ण नोटिस जारी किया गया था। इतना ही नहीं, ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 पेश किए गए, जिसके अंतर्गत 21 से अधिक उत्पाद शामिल किए गए हैं। इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (सीएफएल) और अन्य पारा युक्त लैंप, तथा अन्य उपकरण शामिल थे। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022 को अधिसूचित किया है , जिसका मुख्य उद्देश्य ई-कचरा प्रबंधन प्रक्रिया को डिजिटल बनाना और दृश्यता बढ़ाना है। यह विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विनिर्माण में खतरनाक पदार्थों (जैसे सीसा, पारा और कैडमियम) के उपयोग को भी प्रतिबंधित करता है, जिनका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अंत में यही कहूंगा कि ई-कचरे से हमारे इको-सिस्टम के असंतुलन के साथ ही जल, वायु, भूमि व मृदा और रेडियोसक्रिय प्रदूषण में भी वृद्धि हो रही है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि ई कचरे में सोना, चाँदी, कोबाल्ट और प्लैटिनम के साथ-साथ अन्य दुर्लभ धातुएँ प्राप्त की जा सकती हैं।एक अध्ययन के अनुसार सामान मात्रा में चाँदी अयस्क की अपेक्षा ई-कचरे से अधिक मात्रा में चाँदी प्राप्त की जा सकती है। एक अध्ययन यह भी बताता है कि एक टन सोने के अयस्क की तुलना में एक टन स्मार्ट फोन में 100 गुना अधिक सोना होता है। ई-कचरे का समाधान यह है कि इसके लिए एक वर्तुलाकार अर्थव्यवस्था बनाई जाए।आज जरूरत इस बात की है इलैक्ट्रोनिक प्रोडक्ट्स को इस तरह से डिजाइन किया जाए कि उनका रि-यूज किया जा सके तथा उनकी रिसाइक्लिंग भी संभव हो सके। ‘बाय-बैक’ या ‘रिटर्न ऑफर’ जैसी योजनाएँ ई-कचरा कम करने में लाभकारी साबित हो सकती हैं। विभिन्न समावेशी नीतियों, तरीकों को अपनाकर तथा रिसाइक्लिंग प्रोसेस को बेहतर बनाकर, जागरूक व सचेत रहकर ई-कचरे की समस्या से निपटा जा सकता है।